20160321

चेहरे को रुमाल से ढंक कर बच्चों के साथ क्रिकेट खेलते थे परेश : स्वरूप संपत


स्वरूप संपत लंबे अरसे के बाद बड़े परदे पर वापसी कर रही हैं. और इस बार वे अपने किरदार से बेहद खुश हैं. स्वरूप मानती हैं कि उन्होंने जीवन में जो भी हासिल किया है. वे उसमें बहुत संतुष्ट हैं. उनके चेहरे के तेज से भी यह बात साफ जाहिर होती है. 

 की एंड का में ऐसी क्या खास लगी कि आपने हां कह दिया?
ऐसा नहीं है कि इसके पहले मुझे फिल्में आॅफर नहीं हो रही थीं, लेकिन प्राथमिकताएन्ं अलग थीं. शादी के बाद मेरे बच्चे मेरी प्राथमिकता थे. एक बात मैं हमेशा परेश को मजाकिया अंदाज में कहती हूं कि वह लाउजी टीचर हैं, वह बेहतरीन एक्टर हैं मगर. तो मैंने उनसे कहा कि आप एक्टिंग करो. मैं बच्चों को संभालती हूं. ( हंसते हुए)परेश तो चाय भी नहीं बना पाते. फिर मैंने अपनी पढ़ाई पूरी की. पीएचडी किया. और मुझे लगता है कि जिस वक्त मुझे मां का किरदार निभाने वाले आॅफर आ रहे थे. मैं उस वक्त काफी युवा थी. तो मुझे वह भी पसंद नहीं था. हिंदी फिल्म की यह परेशानी है कि अगर हीरो या हीरोइन नहीं तो मां का ही रोल मिलेगा. तो वह मैं उस वक्त तैयार नहीं थी करने के लिए. मुझे कोई हिस्ट्री नहीं बनानी. हां, मगर मुझे कैमरे से बहुत प्यार है. मुझे काम करना पसंद है. जब भी मैं कैमरे के सामने जाती हंूं तो लगता है कि जन्नत में आ गयी हूं. मैं कैमरा देख कर बहुत खुश होती हूं. मैं काफी मिस करती थी काम करना. लेकिन मुझे स्ट्रगल नहीं करना. इसलिए सही वक्त का इंतजार कर रही थीं.
पीछे मुड़ कर देखती हैं तो कैसा लगता है?
मुझे तो लगता है कि मैंने अच्छा काम किया है. लेकिन थैंक गॉड स्ट्रगल नहीं करना पड़ा. मैं हमेशा टॉप मॉडल रही. मिस इंडिया यूनिवर्स बनी. मुझे उस दौर में ऋषि दा और यशराज से आॅफर आते थे, जो कि बड़े निर्देशकों में से एक रहे. और दोनों ने मुझे लीड के लिए बात की थी. तो उस दौर में भी काम चल कर आता था. तो उस वक्त संघर्ष नहीं किया तो अब तो सवाल ही नहीं उठता.
आपके परिवार की क्या प्रतिक्रिया रही?
मुझे जब रोल आॅफर हुआ तो मैं डर भी रही थी कि ये रोल करूं कि न करूं. 30 साल हो चुके थे. लेकिन मेरे छोटे बेटे आदित्य, जो कि स्क्रीन राइटिंग की पढ़ाई कर रहे हैं. तो उनको मैंने स्क्रीप्ट दी तो उसने ही कहा कि तुम्हें फिल्म करनी चाहिए. ट्रेलर देख कर परेश और दोनों  बेटों की प्रतिक्रिया बहुत अच्छी थी. तो मुझमें भी आत्मविश्वास आया.
घर पर कैसा माहौल रहता है. सभी फिल्मी और थियेटर क्षेत्र से जुड़े हैं?
हमलोग काफी फिल्मों की बातचीत करते हैं. फिल्में देखते हैं. मैं तो बेटों केसाथ बैठ कर काफी वर्ल्ड सिनेमा की फिल्में देखती हूं और फिर हम उस पर चर्चा भी करते हैं. मुझे याद है, शुरुआती दौर में हमने तो मेड भी नहीं रखा था. जब हम दोनों काफी काम करते थे. तो 15-15 दिन बाहर रहते थे. और अगर घर पर रहे भी तो शूट से देर रात लौट कर आते थे. तो सुबह कौन जगे तो उस वक्त मैं और परेश ही मिल कर घर के सारे काम निबटाते थे. परेश साफ सफाई को लेकर बहुत कांसस हैं. आपने अतिथि कब जाओगे देखी होगी. आपको उससे अनुमान लग जायेगा. और परेश की यह खासियत है कि वह यह नहीं सोचते कि मर्द और औरतों वाले काम हैं. हां, वह खाना नहीं बना पाते. लेकिन साफ सफाई का पूरा ध्यान वही रखते हैं.
बतौर पिता बच्चों की परवरिश में परेश की किस तरह की भागीदारी रही?
परेश ने काम और बच्चों के साथ अपने वक्त को काफी अच्छे मैनेज किया हमेशा. वे बच्चों को न सिर्फ संस्कार देते रहे हैं. बल्कि उनके साथ वे क्रिकेट भी खेलते थे. क्योंकि वे जानते थे कि बच्चों को इससे लगाव है. मुझे याद है. रुमाल बांध कर वह चेहरा छिपा कर क्रिकेट खेलते थे. आज भी खेलते हैं. ताकि लोग उन्हें पहचाने न और वे बच्चों के साथ क्वालिटी वक्त बिता सकें. उनकी वजह से ही बच्चे पोयेटरी, साहित्य ऐेसी चीजों से जुड़ पाये हैं और मुझे लगता है कि माता-पिता अगर साहित्य सभ्यता से जुड़े हैं तो बच्चों पर असर होता ही है. प्रभावित होते ही हैं. और यह अच्छी ही बात है न. मेरे बच्चों के लिए थियेटर कुछ अजीब चीज नहीं है. वह जानता है कि वहां की दुनिया कैसी होती है. मेरा बड़ा बेटा अनिरुद्ध नसीर भाई के साथ काम करता है. मुझे लगता है कि वह बेहतरीन प्रोडक् शन अस्टिेंट हैं. फिल्म देखते हैं तो उन पर उनका नजरिया होता है. यह सब माता पिता की वजह से ही मिला है.
और किन किन  चीजों में दिलचस्पी है?
मुझे लोगों से मिलना पसंद है. अनप्रिभलेज्ड चाइल्ड, एजुकेशन को लेकर काम करती हूं तो अच्छा लगता है. 

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