20160212

जिंदगी से राबता जरूरी है एक्टर के लिए : शबाना आजमी

शबाना आजमी मानती हैं कि अगर उन्होंने अपनी जिंदगी कभी  स्टार के रूप में जी होती तो शायद वह कभी जिंदगी से जुड़ ही नहीं पातीं. उन्हें यह बताने में कोई संकोच नहीं कि वह घरेलू कामों में निपुण नहीं हैं. लेकिन इसका यह कतई मतलब नहीं कि वे सशख्त महिला नहीं.वे फिल्म नीरजा में अहम किरदार निभा रही हैं. वे खुश हैं कि इस दौर में ऐसी फिल्में बन रही हैं. 

 किसी फिल्म को हां कहने के लिए आज भी आपका थॉट प्रोसेज क्या होता है?
अलग-अलग थॉट प्रोसेस होता है. कभी कहानी बहुत अच्छी लगती है. कभी ऐसा लगता है कि निर्देशक में  बहुत सलाहियत है. कभी ऐसा लगता है कि एक्टर्स हैं. उनके साथ काम करने में लुत्फ आयेगा. कभी अच्छे पैसे मिल रहे होते हैं. अलग-अलग मुख्तलिफ चीजें होती हैं. लेकिन जाहिर है, आज के दौर में मुझे आजादी है कोई भी चीज करने की या न करने की. वह बिल्कुल अलग है, क्योंकि एक जमाना आता है आपके करियर में कि आपको कुछ च्वाइसेस करने पड़ते हैं कि अच्छा यह बिग बजट है. इसमें मेरा रोल बहुत बड़ा नहीं भी है, मगर यह बिग बजट है तो आपका वैल्यू बढ़ सकती है. तो इस तरह की चीजें होती थीं. अब वैसा नहीं है. अब सिर्फ इसलिए करती हूं, क्योंकि मेरा जी करता है कि करूं. नीरजा की कहानी बहुत अच्छी है. और यह आपको प्रेरित करती है. आपको इस फिल्म के जरिये एक ऐसी लड़की की कहानी पता चलती है, जो साधारण लड़की थी. लेकिन जब उसको एक असाधारण सिचुएशन में डाल दिया गया तो वह डर से आंख मिला कर अपनी हिम्मत बनाती है. और कैसे संघर्ष करती है अपनी डयूटी के दौरान. जाहिर है, ऐसी कहानियां तो दिल को छुएंगी ही. खास बात यह मुझे महसूस हुई इस कहानी में कि वह लड़की शुरू से कोई झांसी की रानी नहीं है. वह आम लड़की है. जैसे कि आप और मैं हूं. और जब यह कहानी सामने आती है तो लगता है कि हम चाहें तो क्या नहीं कर सकते. आज के दौर में बहुत जरूरी है कि हम पोजिटिव इमेजेज दिखायें महिलाओं की. 
जैसा कि आपने कहा कि इन दिनों पोजिटिव इमेज दिखाने जरूरी हैं तो इसकी वजह क्यों महसूस होती है आपको?
जी हां, बिल्कुल क्योंकि हिंदुस्तान एक ऐसा मुल्क है, जो कई सदियों में एक साथ जीता है. तो हमलोग 18वीं  सदी में जीते हैं और हम 21वीं सदी में भी जीते हैं.तो एक तरफ यह भी सच्चाई है कि हमारे यहां औरतें बहुत अच्छे पोजिशन में है तो दूसरी तरफ यह भी हकीकत है कि  आज भी लड़कियों को पैदा होने पर ही दफना दिया जाता है.इसलिए कि उसका गुनाह है कि वह एक लड़की है. तो जहां भी हम यह कर सकते हैं कि लड़की की पोजिटिव इमेज बनाने के लिए. वह हमको करना चाहिए. 
अभी हाल ही में मंदिर में महिलाओं के आगमन को वर्जित करने को लेकर काफी विवाद हो रहा है? इस पर आपकी क्या राय है?
मेरा मानना है कि महिलाओं को संघर्ष करना चाहिए. आवाज उठानी ही चाहिए, क्योंकि ये इंसाफ नहीं है. और अगर हम मानते हैं कि हमारा धर्म इंसाफ पसंद है तो इस बात को आवाज उठानी चाहिए, क्योंकि अगर शुरू से ही यह कह दिया जाता कि जिस तरह की स्थिति वैसी ही रहने दो. तो जितने सारे बदलाव आये हैं. समाज में. वह आते हीं.
आप हमेशा आत्मनिर्भर रही हैं. आपको क्या लगता है कि किन कारणों की वजह से आपने अपनी जिंदगी अपने तरीके से जीने का मौका मिला?
मैं तो बहुत खुशकिस्मत हूं कि मेरी ऐसी परवरिश रही. ऐसे माहौल में पैदाईश  हुई, जहां मेरे माता-पिता ने हमेशा लड़कियों को हमेशा लड़के के बराबर समझा. मेरे भाई को जैसी तालीम मिली. मुझे भी वैसी ही मिली. कभी इस बात का फर्क नहीं किया गया कि ये लड़का है तो इसे अलहायदा किस्म की ट्रेंिनंग होनी चाहिए. मैं तो शायद 19 साल  की थी, जब मुझे पता चला कि जो मैं देखती हूं अपने अतराफ, वह रुल नहीं है, वह एक्सेप् शन है. क्योंकि मैं एक ऐसे जेंडर जस्ट माहौल में पली बढ़ी थी. जहां लोग कम्यूनिष्ट पार्टी के मेंबर थे. मेर अब्बा. और हम छोटे से 200 स्कायर फीट के कमरे में रहते थे. जहां आठ लोग एक बाथरूम और टॉयलेट शेयर करते थे.ऐसा वैसा कुछ नहीं था. लेकिन एक नजरिया था जिंदगी का और जो कि बराबरी का था. चाहे वह औरत और मर्द के बीच की बराबरी हो या अमीर और गरीब के बीच की बराबरी हो.चाहे वह जात की बराबरी  हो या मजहब की बराबरी हो.
आपने मजहब की बात की है, आप यह महसूस करती हैं कि वर्तमान दौर में इनटॉलरेंस के मुद्दे पर अधिक विवाद हो रहे हैं?
मुझे लगता है कि इनटॉलरेंस को हउआ बनाने की कोई जरूरत नहीं है, क्योंकि यह तो हमेशा रहा है. हमेशा रहेगा. जब तक इंसान है. तब तक यह रहेगा. आप इस बात को न भूलें कि सुकरात को जहर पीना पड़ा था. अपने विचारों की वजह से. ग्लेलियो को अपने वर्डस वापस लेने पड़े थे. फैज अहमद फैज को वतन से दूर कर दिया गया था.एमएफ हुसैन को हमने निकाल दिया, तो ऐसे कई उदाहरण है. लेकिन ये अजीब बात है कि अगर मैं अपने मुल्क को चाहती हूं.  लेकिन मुझे यह आजादी नहीं कि मैं यह कह दूँ कि  हां, एशिया का जो सबसे बड़ा स्लम है.धारावी है. वह हिंदुस्तान में है. जब हमारे प्रधानमंत्री कहते हैं कि स्वच्छ भारत अभियान चलाना चाहते हैं तो यह कह रहे हैं न कि  यह बहुत गंदी जगह है. और अगर वे कह रहे हैं कि यह एक गंदी जगह है तो क्या वह एंटी-नेशनल हो गये. तो आप एंटी नेशनल किस बात पर कह देते हैं. किस झगड़े पर. यह गलत है. और अगर लॉ एंड आॅर्डर सिचुएशन की बात कही तो यह सरकार का फर्ज है कि उसको  कंट्रोल में लेकर आये.
जब-जब अभिनेता या फिल्मी कलाकार राजनीति से जुड़ते हैं तो यह बातें होती हैं कि कलाकारों का काम राजनीति नहीं अभिनय है. लेकिन आप जब सांसद बनीं तो आपने काफी आवाज उठाया था. 
मुझे लगता है कि हिंदुस्तान के हर नागरिक को राजनीति में जाने का हक़ है .फिल्म के लोग जाते हैं तो वे इसलिए जाते हैं क्योंकि लोग उनकी बात सुनते हैं.और ऐसा हो सकता है कि वह शुरू में आयें तो वाकिफ न हों कि मुद्दे क्या हैं. लेकिन जब वह जाते हैं पार्लियामेंट तो ऐसा तो नहीं है कि वे वहां कान में रुई डाल कर बैठे रहते हैं.तो बहुत सारी बातें वहां जाकर सीखते हैं. कितनी सारी चीजें मैंने सीखी और चूंकि मैं किसी पॉलिटिकल पार्टी से नहीं थीं. नॉमिनेटेड मेंबर थी. तो मुझे पूरी आजादी थी कि मैं दोनों का नजरिया सुनूं और फिर तय करूं क्योंकि पार्टी की तो बंदिश नहीं थी. आज के दौर में यह कबूल कर लिया गया है कि एक्टर की एक महत्वपूर्ण आवाज है. उस आवाज को रोकने की कोशिश की जायेगी. जब तक आप कैंसर या किसी भी नॉन पोलिटिकल इश्यू के बारे में बात करें तो आपको सराहा जाता है. लेकिन आपने कुछ कहा कि जिसका कोई राजनैतिक रिजल्ट होता है तो वहां आपको रोकने की कोशिश की जायेगी. और आपको डराने की कोशिश की जायेगी कि आपकी सेहत के लिए अच्छा नहीं है. इससे लड़ना चाहिए. हॉलीवुड में तो ऐसा ही होता है. बहुत सारे एक्टर्स हैं, जो टॉप एक्टर्स हैं और उनके पॉलिटिकल पोजिशन हैं. लोग उसको सम्मान देते हैं, यह तो एक षंडयंत्र हैं कि  आप डरा दें क्योंकि उनकी आवाज बूलंद है. ताकि उनका भी मुंह बंद कर दिया जाये.
आप अभिनय की इंस्टीटयूशन मानी जाती हैं. ऐसे में कभी इच्छा रही कि कोई एक्टिंग स्कूल खोलें?
मैं बहुत सारे क्लासेज लेती हूं. अमेरिका में लेती हूं. हावर्ड में पढ़ा चुकी हूं. फिल्म इंस्टीटयूट में जा चुकी हूं. मिशिगन यूनिवर्सिटी में जा चुकी हूं. और मुझे ऐसा जरूर लगता है कि मुझे जो मिला है, उसे वापस दूं. इस तरह से मैं जुड़ी हूं. मुझे वर्तमान दौर की एक्टिंग की ट्रेनिंग से सिर्फ एक ही बात नजर आती है कि इन दिनों सिर्फ ट्रेनिंग शक्ल और जिस्म की होती है. एक्टिंग की नहीं. जिम चले जाते हैं. जिस्म को बना लेते हैं. डांस करना सीख जाते हैं. लेकिन एक्टिंग को भी उतनी ही तवज्जो देना जरूरी है. तो इन दिनों जब मुझे कोई कहता है कि तीन महीने का कोर्स किया है तो मुझे बहुत ही वहशत होती है. मैं तो आज भी एक्टिंग  सीख रही हूं 40 साल काम करने के बाद भी. मैं अभी भी स्टूडेंट हूं. 
आज के दौर की फिल्मों को किस तरह देखती हैं?
मेरा मानना है कि आज के दौर में महिलाएं अच्छा काम कर रही हैं. प्रियंका, दीपिका, विद्या बालन काफी अच्छे रोल कर रही हैं. आज के दौर में एक्टर्स चाहते हैं कि उन्हें अच्छे रोल मिले. मैंने तो सुना है कि इन दिनों अच्छे किरदार हों तो लोग कम पैसे में भी काम करते हैं. उन्हें अच्छे किरदार चाहिए. यह बहुत अच्छी बात है और मैं मानती हूं कि कमिर्शियल सिनेमा या मेनस्ट्रीम सिनेमा के बीच बेमतलब शुरू से ही आर्टिफिशियल रेखा खींची जाती रही है. मैं उसके पक्ष में कभी नहीं रही. मैंने तो हर तरह की फिल्मों में काम किया है.
आपको क्या कहलाना पसंद है? एक्टर या स्टार 
मैं मानती हूं कि स्टार और एक्टर के बीच हमेशा कनफिलिक्ट होता है. मैं तो प्रोफेशनली एक्टर हूं और मुझे तो ये बताया गया था कि एक्टर को सिर्फ तीन चीजों का ज्ञान होना चाहिए. अगर मैं होता तो... मदर टेरेसा, स्लम प्रोसटीटयूट, क्वीन इलेजिबेथ, तबायफ, पॉलिटिशिन कुछ भी. मुझे उसके साथ न्याय करना है. यही तो ट्रेनिंग  है कि आपमें वह सलाहियत होनी चाहिए कि आप कुछ भी कर सकें. तभी आपको एक्टर माना जाये. जब मैंने अर्थ में काम किया था. तो मैं औरतों की परेशानी से जुड़ी. झुग्गी झोपड़ी में रहनेवाले लोगों से जुड़ी कुछ फिल्मों की वजह से.
आपने अपनी जिंदगी में किसे प्रेरणा माना है?
श्याम बेनगल को, जेनिफर कपूर से, जावेद अख्तर से. अर्मत्य सेन से.
आपको अब भी क्या चीजें ऊर्जा देती हैं?
मुझे जिंदगी से जुड़ना पसंद है. किसी भी कलाकार के लिए जिंदगी  से जुड़े ेरहना जरूरी है. एक्टर अपना इंस्ट्रूमेंट खुद होता है. जैसे कि अगर मुझे सितार बजाना है तो यह जरूरी है कि उंगलियां भी अच्छी हों और सितार भी. उसके भी तार ठीक होनी चाहिए.और एक्टर तो अपना सितार खुद ही है, क्योंकि मेरे अंदर जो है, जो मेरे एक्सपीरियंस हैं.मेरी जो आवाज है, सोच है. समझ है. उसी को इस्तेमाल कर सकती हूं. तो आपको जिंदगी से जुड़े रहना जरूरी है.  स्टार बनने पर आप लोगों से हटते जाते हैं. आपके इर्द गिर्द सेक्योरिटी के लोग होत ेहैं, पीआर के लोग होते हैं. तो जिंदगी का एक जीवित इंसान को आप तक पहुंचने के लिए  10 लोगों से गुजरना पड़ता है. तो यह मुमकिन ही नहीं कि आप जिंदगी के रियल तर्जुबात हैं, उससे मेहरुम होते चले जाते हैं. तो आप बनावटी टावर में बस जाते हैं और आपका जिंदगी से ताल्लुक खत्म हो जाता है. तो आपके लिए नुकसानदेह है. 
परिवार के साथ किन बातों पर चर्चा होती है?
खाने पीने के बारे में हम सबसे ज्यादा बातें करते हैं. लेकिन मुझे खाना बनाना नहीं आता. आज भी अगर कोई मुझे कह कर जाये कि जरा देख लेना दो मिनट में आयी. तो खाना जला ही मिलेगा.

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