20160217

मनोज बाजपेयी का तांडव


मनोज बाजपेयी ने हाल ही में देवाशिष मखिजा की शॉर्ट फिल्म तांडव में एक ऐसे पुलिस आॅफिसर की भूमिका निभाई है, जो अपनी आम जिंदगी से बहुत त्रस्त आ चुका है और वह एक दिन जब उसकी सब्र की सीमा टूटती है तो वह मजे में एक पार्टी में डांस करने लगते हैं. निर्देशक ने इसे ही ताडंव के रूप में दर्शाया है. सोशल साइट्स पर इस तरह के कई वीडियो जारी होते रहे हैं, जहां कई पुलिस आॅफिसर कई बार अपने मनोरंजन के लिए कभी कभी थिरकते नजर आने लगते हैं और उन चंद मिनटों में वे यह भूल जाते हैं कि उन्हें इस छोटे से मनोरंजन के लिए अपनी नौकरी भी गंवानी पड़ सकती है. दरअसल, हकीकत यही है कि इंसान ताउम्र खुशी की तलाश में ही अपना पूरा जीवन नष्ट कर देता है. कुछ तो खुद के कारण और कुछ नौकरी और मजबूरियों के कारण और जब उन्हें ऐसे में चंद लम्हे भी खुशियां बांटने को मिलती है तो लोगों को वह भी गंवारा नहीं होता है. यह हकीकत है कि पुलिस वालों की जिंदगी में भी कई दर्द होते हैं. खासतौर से उन सेवकों की जिंदगी में जिसने वाकई कभी रिश्वत नहीं ली है. ऐसे में एक लम्हा होता है, जब उन्हें चंद लम्हों की खुशियों की दरकार होती है. लेकिन यह अवधारणा मात्र बना कर रखना कि पुलिस वाले की जिंदगी में कोई दर्द नहीं. और उन्हें मनोरंजन का हक ही नहीं. सरासर गलत है. रानी मुखर्जी ने फिल्म मर्दानी की शूटिंग के दौरान बताया था कि वे जितने भी अफसरों से मिली हैं. वे किस तरह अपने परिवार को लेकर हमेशा चिंतित रहते हैं कि न जाने अगले पल क्या होगा. उन्हें अपनी हर गतिविधियों पर ध्यान रखना पड़ता है. उनकी जिंदगी में कई जोखिम हैं. लेकिन अगर उसमें उन्हें कभी वाकई थोड़ी खुशियां हासिल करने की इच्छा हो तो तब भी उन्हें कई नियमों में बांध दिया जाता है. मनोज बाजपेयी ने कम समय में ही इस वर्ग के लोगों के दर्द का सजीव चित्रण किया है.

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