20160219

कन्फ़्यूजिंग है ओसामा का किरदार . : अभिषेक शर्मा


अभिषेक शर्मा की फिल्म तेरे बिन लादेन ने पिछली बार दर्शकों का न सिर्फ मनोरंजन किया था, बल्कि एक नजरिया भी दिया था. एक बार फिर से वे इसकी अगली कड़ी लेकर आये हैं. फिल्म का ट्रेलर विश्वास जगाता है. 

  सीक्वल का ख्याल कैसे आया?
इसे पूरी तरह से सीक्वल नहीं कहा जा सकता, क्योंकि यह पहली वाली फिल्म से संबंधित तो हैं. लेकिन दोनों की दुनिया अलग है.वे कैरेक्टर बिल्कुल अलग है.फिल्म देखेंगी तो आपको बहुत कॉम्पलीकेटेड नहीं लगेगा. इसका आइडिया बिन लादेन की मौत से आया था. मैं दरअसल, सबका मजाक उड़ा रहा हूं.खुद का भी मजाक उड़ा रहा हूं. ओबामा, ओसामा, पाकिस्तान, बॉलीवुड हर किसी पर व्यंग्य है.सबसे पहले मैं मानता हूं कि अगर आप अपना मजाक उड़ाते हो तो आपको आजादी मिल जाती है. दरअसल, आप फिल्म देखते हुए इस बात का अनुमान लगा लेंगे कि मनीष के कैरेक्टर के माध्यम से मैंने अपनी धज्जी उड़ाई है. फिल्म का सिंपल सा फंडा यह है कि अमेरिका को पू्रव करना है कि ओसामा मर चुका है और आतंकवादी संगठनों को साबित करना है कि ओसामा जिंदा है, क्योंकि उन्हें ओसामा के नाम पर फंडिंग आती है. इसी के बीच हमारे फिल्म के किरदार मनीष और प्रदुयूमन फंसे हुए हैं.
ओसामा को आप किस तरह देखते हैं?
ओसामा मेरे लिए बहुत कंफ्यूजिंग करेक्टर है. आप देखें तो एक दौर में वह अपना घर छोड़ कर भाग जाता है,जब अफ्गानिस्तान में स्थिति हुई थी. इसने अपने घर के सारे पैसे लगा दिये. फिर यह अमेरिका के खिलाफ हुआ. उस वक्त तक तो वह हीरो था. आप उस वक्त तक हीरो थे. लेकिन जब आप आम आदमी को मारने लगे तो आपने अपनी छवि को बर्बाद कर लिया. चेक ओवारा बन सकता था ओसामा उस दौर में, क्योंकि उसने मुसलिम समाज के कल्याण के लिए काफी कुछ किया. लेकिन  उसने अटैक शुरू किया. आम लोगों को मारना. फिर वह आतंकवादी बना.वहां आप जब जाते हो. टेरेरिस्ट  एक्टिविटी करते हो. तो वह सम्मान खो देते हो. इसी वजह से सिचुएशन बदला और जिहाद का पोस्टर ब्वॉय बना. जबकि वह अगर सही दिशा में काम करता रहता तो वाकई वह उनका हीरो होता. उसने जिस तरह रशिया को खदेड़ा. यह तो हकीकत है. वरना, वहां अंपायर था. उसे उल्टे पांव भगाने में महत्वपूर्ण हाथ रहा है उसका.
हर बार सटीक सटायर लिख पाना कितना कठिन होता है?
दरअसल, सटायर बहुत अंदरुनी चीज होती है. मेरे ख्याल से मेरे अंदर है. जैसे कुछ लोग डार्क फिल्म बना पाते हैं, कुछ लोग रोमांस में बहुत अच्छे हैं. मैं रोमांस में बहुत बुरा हूं. मैं जब जब रोमांटिक सीन लिखता होता हूं तो मैं इसी हद तक लिख पाता कि लड़का लड़की खा रहे होते हैं. सो, मैं उधर जाता ही नहीं हूं. लेकिन व्यंग्य मेरे अंदर कूट-कूट के भरा हुआ है. मेरे ख्याल से मेरी जिंदगी में जैसा हूं. वह निकल के आता है. मैंने इसे सेलेक्ट नहीं किया है.  इसने मुझे सेलेक्ट किया है. इस जॉनर ने. मैं सीरियस लिखते-लिखते व्यंग्य में ही चला जाता हूं. शायद मैं जिंदगी को भी इसी तरीके से देखता हूं. यह भी एक वजह है. मेरा यह भी मानना है कि सटायर लिखने के लिए मेकर का कंट्रेपररी होना भी जरूरी है. जैसे मेरा जन्म 1978 के बाद हुआ है. जब भारत में इमरजेंसी का दौर कट चुका था. लेकिन मैंने 9-11 को देखा, तो उसे लेकर मुझमें रोष होगा. उसे अच्छी तरह लिख पाऊंगा. चूंकि कनेक्ट कर पाऊंगा. मैं इस बात में विश्वास करता हूं. बाकी चीजें हिस्ट्रोरिकल चीजें होती हैं मेरे लिए. 
ेसटायर लिखने के लिए क्या चीजें प्रेरित करती हैं?
दरअसल, मेरा मानना है कि सटायर रोष प्रकट करने का एक जरिया है. क्राइसिस सिचुएशन है. एंगर रियेक् शन है. मेरे अंदर एंगर है. मैं कैसे रियेक्ट करूंगा, अगर मुझे गुस्सा आयेगा तो मैं उसे सटायर के माध्यम से प्रस्तुत करूंगा. सटायर में तंज होता है. सटायर में बिच्छू वाला डंक होता है और यह तभी आता है. जब आपके अंदर जहर  हो और सटायर लिखना चाहते हैं तो यह जहर होना ही चाहिए. जहरीला इंसान ही सटायर लिख सकता है. तेरे बिन लादेन के वक्त बहुत गुस्सा आता था मुझे. जो कुछ 9-11 को हुआ. उस मुद्दे पर काफी गुस्सा आता था मुझेय इस बार  ओसामा को वे बोल रहे हैं कि उन्होंने मार दिया है. लेकिन कोई प्रूव जारी नहीं किया है. और दुनिया का जो इंपैक्ट हुआ है. वह मेरा जहर है. गुस्सा है. आस-पास जो इनटॉलरेंस की बात हो रही है. तो इस तरह के विषय पर ही फिल्म बना पाऊंगा, क्योंकि ये विषय गुस्सा देते हैं. जहर और शराब में 19-20 का ही फर्क होता है. जहरीली शराब बन जाती है. मेरा मानना है कि सटायर जहरीली शराब है. फिर बात आती है कि गुस्से से कॉमेडी कैसे तो. इसका जवाब यह है कि गुस्सा तो इमोशन है, लेकिन जो दृष्टिकोण है दुनिया को देखने का वह तो फनी है. क्योंकि  हुमर का भी अपना दृष्टिकोण होता है. मुमकिन है कि जो मैं देखता हूं. और उसी चीज को आप देख रहे हैं. तो दोनों में अंतर है. तो बस ऐसे ही आती है गुस्से से कॉमेडी. मेरा प्रोसपेक्टीव ऐसा है. आप किसी का उपहास उड़ाते हैं, जो वह फिर ट्रीटमेंट हो जाता है.
सटायर जॉनर में किसे प्रेरणा मानते ?
 सटायर को लेकर तो पूरी तरह से नहीं कहूंगा. लेकिन हां, मुझे हमेशा से ही चार्ली चैप्लीन, हिचकॉक,गुरुदत्त, वुडी एलेन इन्हें मैं निर्देशक के रूप में अपनी प्रेरणा मानता हूं. अगर सटायर के क्षेत्र में कहूं तो अमेरिकन एक मैगजीन आती है. मैड मैगजीन, उसका प्रभाव मुझ पर काफी पड़ा है.
आपने काफी दुनिया देखी है. आप किस नजरिये से देखते हैं इसे?
मुझे यूरोपीय देश पसंद नहीं है. मुझे लगता है कि यूरोप के लोग अपनी पुरानी सोच को लेकर चलते हैं. अगर आप देखेंगे तो यूरोपीय सिनेमा भी बहुत कुछ कर नहीं पाया.हॉलीवुड के सिवा. मुझे अमेरिकन पॉलिसिज से नफरत है तो मुझे उनके कल्चर से उतना ही प्यार है. मेरी दुनिया या तो हिंदुस्तान है या तो अमेरिका है. इसके बीच में यूरोप समझ नहीं आया है. मुझे वहां की सभ्यता से खास लगाव नहीं है. मुझे लगता है कि वर्ल्ड वॉर के पहले से जो कल्चर था. वहां तक तो ठीक था. जब तक रशिया में नाटकों का माहौल था. ब्रिटेन में शेख्सपीयर का तो, पेंटिंग्स का कल्चर था. लेकिन वर्ल्ड वार दो के बाद वहां कुछ हो गया है. कुछ ओरिजनल मटेरियल फिर आया नहीं वहां से. पिकासो के बाद वहां कौन है. फिल्मों में फेलिनी, बर्गमैन रहे हैं. बाकी जो अच्छे फिल्म मेकर थे.सभी हॉलीवुड जाकर फिल्म बना कर आये. कल्चर का बहुत खास महत्व होता है, दुनिया को अपने वश में करने का.जैसे अमेरिका ने हॉलीवुड के जरिये बहुत कुछ कर लिया है. हिंदुस्तान भी बहुत कुछ कर सकता था. 
अमेरिका से इस कदर प्रेम की कोई खास वजह?
मुझे लगता है कि अमेरिका सभ्यता प्रेमी देश है. अमेरिका बहुत आजादी देता है.
मुझे तो लगता है कि भारत में भी काफी कुछ विकल्प थे और इमरजेंसी से पहले तक भारत में भी बहुत अच्छे काम हुए हैं. लेकिन इमरजेंसी के बाद लोगों को अपने हीरो में एंग्रीयंग मैन ही देखना था और वह कल्चर अब तक चला आ रहा है.वरना, उस दौर में ही आनंद भी बनती थी. अमेरिका में अलग अलग मूल्कों से जाकर लोग बसे हैं तो वहां वर्ल्ड कल्चर है. और इस वक्त वहां अमेरिका में हिंदुस्तानी बहुत अच्छा काम कर रहे हैं. मेरे ख्याल से 30 लाख लोग हैं, जिनका बड़ा नाम है. तो मुझे लगता है कि अमेरिका सबका है. अमेरिका में जाकर हिंदुस्तानियों ने भी कंट्रीब्यूट किया है. अमेरिका एक देश नहीं है. अमेरिका एक न्यू वेब है. अमेरिका अपने आपमें एक दुनिया है. इसलिए उससे प्यार है.
आप अपने  किरदारों को किस छवि में प्रस्तुत करना चाहते हैं?
मैं चाहता हूं कि मेरे किरदार बेवकूफ हों, क्योंकि आज की  तारीख में जो स्मार्ट है, वह फूल है. मूर्ख है. पिछली फिल्म में अली थे. इस बार मनीष है. जिसे लगता है कि उसे सब पता है. लेकिन मूर्ख बनते हैं. कहीं न कहीं वह मूर्ख है, क्योंकि वह यह नहीं जानता कि परिस्थितियां आपको कंट्रोल करतीं.  न कि आप खुद. तो मेरा मानना है कि मेरा हीरो मूर्ख होता है. चार्ली चैप्लीन का जो ट्रेंड था कि जो एक कॉमन आदमी है, लेकिन उसे लगता है कि उसे सबकुछ पता है और दरअसल, यह हमारी त्रासदी है कि हम सबको लगता है कि  हमें बहुत कुछ पता है. और हमें पता नहीं होता है.  मेरा मानना है कि कब तक एंग्रीयंगमैन दिखाते रहेंगे. कुछ तो मूर्खों को भी दिखायें. उनसे भी बातें करें. मैं खुद को मूर्ख ही मानता हूं. मुझे लगता है कि बॉलीवुड भी अब तक एल्फा मेल के माध्यम से ही चल रहा. मुझे बॉलीवुड से प्यार है. मुझे 70 तक का सिनेमा बहुत पसंद थी. उसके बाद जो बुरा दौर आया है. अब तक जारी है.
ओसामा के व्यक्तित्व  को वास्तविक जीवन में किस तरह देखते आप ?
ओसामा मेरे लिए बहुत कंफ्यूजिंग करेक्टर है. आप देखें तो एक दौर में वह अपना घर छोड़ कर भाग जाता है,जब अफ्गानिस्तान में स्थिति हुई थी. इसने अपने घर के सारे पैसे लगा दिये. फिर यह अमेरिका के खिलाफ हुआ. उस वक्त तक तो वह हीरो था. आप उस वक्त तक हीरो थे. लेकिन जब आप आम आदमी को मारने लगे तो आपने अपनी छवि को बर्बाद कर लिया. चेक ओवारा बन सकता था ओसामा उस दौर में, क्योंकि उसने मुसलिम समाज के कल्याण के लिए काफी कुछ किया. लेकिन  उसने अटैक शुरू किया. आम लोगों को मारना. फिर वह आतंकवादी बना.वहां आप जब जाते हो. टेरेरिस्ट  एक्टिविटी करते हो. तो वह सम्मान खो देते हो. इसी वजह से सिचुएशन बदला और जिहाद का पोस्टर ब्वॉय बना. जबकि वह अगर सही दिशा में काम करता रहता तो वाकई वह उनका हीरो होता. उसने जिस तरह रशिया को खदेड़ा. यह तो हकीकत है. वरना, वहां अंपायर था. उसे उल्टे पांव भगाने में महत्वपूर्ण हाथ रहा है उसका.

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