20150318

रिश्तों पर आधारित कहानियां प्रभावित करती हैं : मनीष

 

 नागेश कुकनूर द्वारा निर्देशित व मनीष मुंद्रा की फिल्म धनक(रेनबो) ने बर्लिन फिल्म फेस्टिवल में ग्रैंड प्रिक्स फोर बेस्ट फीचर फिल्म का खिताब जीता है. उन्हें यह सम्मान इंटरनेशनल ज्यूरी द्वारा जेनरेशन के प्लस सेक्स फॉर चिल्ड्रेन के अंतर्गत दिया गया है. मनीष की फिल्म आंखों देखी को भी इस वर्ष फिल्मफेयर की तीन श्रेणियों में सम्मानित किया गया है. उनकी ही फिल्म आंखोंदेवी व उमरिका को विश्व स्तर के कई फिल्मोत्सव में सराहा व सम्मानित किया जा चुका है.  उमरिका को भी सनडांस फिल्मोत्सव में सराहना मिली. सिनेमा को लेकर मनीष की यही सोच है कि वे इंडी( स्वतंत्र) और विषयपरक सिनेमा को बढ़ावा देना चाहते हैं.  मनीष का बचपन झारखंड के देवघर में ही गुजरा है. दिलचस्प बात यह है कि मनीष फिल्मों से पेशे की वजह से नहीं, बल्कि सिनेमा को लेकर उनकी सोच, उनके जुनून व इसके प्रति रुचि की वजह से जुड़े हैं.  सिनेमा से जुड़ने की वजह पैसे कमाना नहीं, बल्कि वैसी फिल्मों को सहयोग करना है, जो विषयपरक हैं. मसालाप्रधान नहीं. फिलवक्त वह दुबई में कार्यरत हैं. पेश है  अनुप्रिया अनंत से मनीष मुंद्रा की बातचीत के मुख्य अंश
बचपन
 मेरा जन्म देवघर में हुआ था. फिर माता पिता के साथ जोधपुर चला गया था. लेकिन  स्कूल की पढ़ाई मैंने देवगर में ही पूरी की. सो, वहां से कई यादें जुड़ी हैं. बाबा भोले की नगरी है. खास बात यह है कि मैं आज भी अपने स्कूल के दोस्तों से जुड़ा हुआ हूं. व्हाट्स अप पर हमेशा हमारी बातें होती हैं. कोई मुझसे पूछता है कि मुझे क्या चाहिए. तो  मैं  देवघर के पेड़े ही लाने को कहता हूं. फिल्मों से मेरा लगाव बचपन से ही था. बचपन में जब फिल्में देखता था तो लगता था उसका हिस्सा बनूं. हम उस वक्त छोटे छोटे थियेटर में फिल्में देखने जाते थे. पूरे परिवार के साथ. वह एक पारिवारिक इवेंट की तरह होता था कि फिल्म देखने जाना है. धीरे धीरे जब उम्र बढ़ी तो समझ आया कि फिल्में बनती कैसे हैं और किस तरह हम तक पहुंचती हैं. मुझे यह बातें समझ आयीं. साथ ही यह बातें भी समझ आयीं कि फिल्में बिना पैसे के नहीं बन सकती. सो, पैसे तो चाहिए. इसलिए नौकरी करना जरूरी है. मैं फिल्मों से पैसे कमाने के लिए नहीं जुड़ा हूं. बस अच्छी फिल्में दर्शकों तक पहुंचाऊं. यह उद्देश्य है.
विश्व सिनेमा से जुड़ाव
वर्ष 2002 में ही मैं विदेश चला गया था. अपनी उच्च शिक्षा के लिए.  थाइलैंड चला गया था. बाहर जाने  पर जब विश्व सिनेमा से जुड़ी अलग अलग मिजाज की फिल्में देखने लगा तो समझ आया कि फिल्मों में विषयपरक फिल्मों का होना कितना जरूरी है. विदेशों में सामान्य से सामान्य कहानियों को जिस तरह प्रयोगात्मक तरीके से प्रस्तुत किया जाता है. वही दर्शकों को लुभाती है. मैंने गौर किया है कि वर्ल्ड सिनेमा में रिश्तों की कहानियों को बहुत अहमियत देते हैं. और उसे खूबसूरती से दर्शाते हैं. मुझे वैसी ही फिल्में आकर्षित करती हैं. एक मां बेटी की कहानी. बाप बेटे की कहानी. बहन भाई की कहानी. पति पत् नी की कहानी. बेहद खूबसूरती से दर्शाते हैं. मेरा तो मानना है कि इन रिश्तों की कहानी में ही भारतीयता नजर आती है. हमारे रिश्ते भी कितने खूबसूरत हैं. उन्हें बस रूप देने की जरूरत है. लेकिन अफसोस कि इन दिनों मसाला प्रधान फिल्मों को इस कदर अहमियत मिल रहीं, कि ऐसी फिल्में बन नहीं पातीं. मैं ऐसी ही सिंपल और दिल को छूने वाली कहानियां कहनेवाले स्वतंत्र रूप से काम करने वाले निर्देशकों को सपोर्ट करना चाहता हूं. आप भारत से बाहर आयें और विश्व सिनेमा से जुड़ें तो आपको समझ आयेगा कि विदेशों में किस तरह भारत की फिल्मों का मजाक उड़ाया जाता है. उन्हें हेय दृष्टि से देखा जाता है. ऐसे में मेरी कोशिश है कि ऐसी फिल्में बनाऊं, जो ऐसे स्थानों पर सम्मानित हों. लंचबॉक्स से भारतीय फिल्मों के प्रति सोच बदली है. और आनेवाले समय में भारत की ऐसी विषयपरक फिल्मों को विदेशों में बड़ा मार्केट मिलेगा और मिल रहा है. यह शुभ संकेत हैं. मेरा मानना है कि अब भारतीय दर्शक भी रियल सिनेमा देखना चाहते हैं. और कुछ फिल्ममेकर्स अच्छी कोशिश भी कर रहे हैं.
फिल्म धनक को सम्मान
फिल्म धनक को हाल ही बर्लिन फिल्मोत्सव में ग्रैंड प्रिक्स अवार्ड से सम्मानित किया गया है. यह हमारे लिए गर्व की बात है. खासतौर से संतुष्टि तब मिलती है. जब लोग आपकी फिल्म देखने के बाद आते हैं और कहते हैं कि आपने अच्छी कहानी कही. उन दर्शकों में जर्मनी, अमेरिका हर देश के लोग होते हैं. मेरा मानना है कि आपकी फिल्म अगर वाकई प्रभावित करती है तो निश्चित तौर पर लोग आकर आपसे फिल्म के बारे में बात करेंगे. वह प्रतिक्रिया ही फिल्म की सफलता दर्शाते हैं कि आपने जो कहा, किसी के दिल तक बात पहुंची भी या नहीं. धनक को देखने के बाद किड्स ज्यूरी ने विशेष सराहना की.  धनक दो बच्चों की कहानी है. भाई बहन की कहानी. भाई अंधा है. लेकिन छोटी बहन उसका ख्याल रखती है. भले ही भाई अंधा है, लेकिन उसमें आत्मविश्वास की कोई कमी नहीं है.  वह लाचार नहीं है. आमतौर पर हिंदी फिल्मों में हम दिखाते हैं कि आप अंधे हैं तो लाचार हैं. इस फिल्म में ऐसा नहीं है. दो भाई बहनों की मासूम सी कहानी को दर्शाया गया है और मुझे लगता है कि फिल्म की मासूमियत ही लोगों को आकर्षित कर गयी. इस फिल्म का निर्माण संयोग से हुआ. मेरे पास फिल्म के निर्देशक दूसरी कहानी लेकर आये थे. वह बॉक्सर की कहानी थी.  जाते जाते उन्होंने मुझे धनक की कहानी सुनायी, मैंने कहा कि पहले यह करते हैं. वह भी चौंके कि अभी इस पर काम पूरा नहीं हुआ है. लेकिन मैंने कहा करते हैं इस पर काम. फिर पूरी टीम ने काम किया और जल्द फिल्म बन कर तैयार भी हो गयी और पुरस्कृत भी हुई. मुझे खुशी है कि हमारी कोशिशें सफल हो रही हैं. आंखों देखी के बारे में भी बताना चाहूंगा कि मैंने रजत के टिष्ट्वटर पर एक दिन देखा कि उन्हें फिल्म बनानी है लेकिन निर्माता नहीं मिल रहे. मैंने उन्हें कहा आप बनाएं. मैंने स्क्रिप्ट पढ़ी. वह भी रिश्तों पर आधारित फिल्म थी. अनोखी स्क्रिप्ट थी इस फिल्म की. सो, मैंने कहा बनाइये  फिल्म मैं करूंगा निवेश और आज आंखों देखी सबके सामने हैं. आंखों देखी को भी कई सम्मान मिले. यह हमारे लिए गर्व की बात है.
अपकमिंग प्रोजेक्ट्स
 बहुत सारे प्रोजेक्ट्स पर काम चल रहा है. फिलवक्त नीरज गायवान की मसान है. इसके अलावा अनु मेनन की फिल्म वेटिंग है. रजत कपूर की दो फिल्में पाइपलाइन में हैं. मुझे लगता है 2016 में और भी कई फिल्में आयेंगी.

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