20150318

आर बाल्की के रंग


 आर बाल्की की फिल्में फिल्मी होते हुए भी पूरी तरह फिल्मी नहीं होती. यह आर बाल्की की रचनाशीलता का कमाल है कि वे अपने संवादों में इस कदर जान डालते हैं कि वह याद रह जाते हैं. अमिताभ की जिंदगी में आर बाल्की जैसे निर्देशकों की सख्त जरूरत थी. चूंकि वे अमिताभ को अलग अंदाज में संवारते हैं और दर्शकों के सामने प्रस्तुत करते हैं. आर बाल्की किसी अच्छे दोस्त की तरह अमिताभ को अमिताभ से मिलने का मौका देते हैं. जी हां, न सिर्फ परदे पर बल्कि परदे से इतर. जब हम बाल्की के अमिताभ को देख रहे होते हैं तो कहीं न कहीं हमें वह आॅफ स्क्रीन वाले अमिताभ की छवि भी नजर आती है. बाल्की शायद कोशिश करते हैं कि अमिताभ के दिल के उस कोने में जाकर झांके और लोगों तक वे बातें पहुंचायें, जिससे दर्शक रूबरू नहीं हैं. यह स्पष्ट है कि किसी दौर में अमिताभ बच्चन को उनकी आवाज की वजह से रेडियो में काम नहीं मिला था. बाल्की ने इस बात को फिल्म षमिताभ में बखूबी दर्शाया है और जाहिर सी बात है, जब अमिताभ उस सीन को निभाने रहे होंगे. वे वास्तविक रूप में होंगे. फिल्म पा में  वह एक चंचल बच्चे के रूप में हैं. वे बीमारी से ग्रस्त हैं, लेकिन फिर भी अपनी जिंदगी में आॅरो जिंदादिली के साथ जीता है. अमिताभ की वास्तविक जिंदगी भी कुछ ऐसी ही जिंदादिली से भरी है. फिल्म षमिताभ में अमिताभ के इस हकीकत को आर बाल्की से सही तरीक ेसे प्रस्तुत किया है कि वे आवाज के कारण नकारे गये थे. कहीं न कहीं अमिताभ की पीड़ा को वह समझते होंगे. चूंकि वे अमिताभ के नजदीकी रहे हैं. अभिनय को लेकर दो पीढ़ियों की सोच भी षमिताभ में नजर आती है. एक कलाकार किस आॅरे में जीता है. इसकी भी कहानी दर्शकों को नजर आती है. बाल्की की यही खूबी उन्हें अमिताभ के दिल में विशिष्ट स्थान दिलाती है. 

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