20150130

व्यंग पर हमला


 पेरिस के एक मैग्जीन के दफ्तर में घुस कर पत्रकारों की हत्या की गयी. यह पूरी दुनिया में पत्रकारिता के लिए शर्मनाक है. कार्टून व कार्टूनिस्ट पर इससे भी पहले विवाद होते रहे हैं. भारत में इससे पहले भी कार्टूनिस्टों पर हमले होते रहे हैं. सिर्फ कार्टूनिस्ट नहीं बल्कि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के कई माध्यमों पर विवाद होते रहे हैं. हमले होते रहे हैं. अभी कुछ दिनों पहले ही आनंद पटवर्धन की फिल्म राम के नाम की स्क्रीनिंग पर रोक लगाई गयी. बाद में फिल्म यूटयूब पर जारी की गयी. इन दिनों भारत में सोशल मीडिया नेटवर्क पर कई माध्यमों से राजनीतिज्ञ, पत्रकारों व फिल्मी दुनिया की हस्तियों के मजाक बनाये जा रहे हैं.  एकता कपूर, शाहरुख खान ऐसे व्यंगात्मक धारावाहिकों के मजे लेते हैं. यहां तक की गोलडन केला अवार्ड जैसे पुरस्कार भी स्वीकारते हैं. खुद विनोद दुआ जो कि बेहद लोकप्रिय पत्रकार हैं, उन्होंने हाल में अपने ऊपर बनाये व्यंगात्मक वीडियो को अपने वॉल पर शेयर किया. इससे न सिर्फ यह प्रतीत होता है कि वे इस विधा को समझते हैं. बल्कि यह भी कि वह अभिव्यक्ति की स्वत्रंता की इज्जत भी करते हैं. व्यंग की दुनिया अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के महत्वपूर्ण सूत्र रहे हैं. भारत में आरके लक्ष्मण जैसे कार्टूनिस्ट इसलिए लोकप्रिय और प्रतिष्ठित माने गये. चूंकि उन्हें वह सम्मान दिया गया. लेकिन धर्म के नाम पर जिस तरह दुनिया में दंगे हो रहे. हमले हो रहे. आनेवाले समय के लिए यह कठिन समय है. बेहद जरूरी है कि देश को धर्म निरपेक्ष राज्य के रूप में देखा जाये. वरना, खुदा, ईश्वर के नाम पर यूं ही जान जाती रहेंगी. हकीकत यह है कि फिलवक्त पूरी दुनिया में महज व्यंग ही एकमात्र विधा जिंदा है, जिसके माध्यम से वार किया जा सकता है. ताकि चोट लगे भी हो. लेकिन चोट देने वाले उजागर न हो. यह कठिन समय है. जहां धर्म के नाम पर केवल नकारात्मक घटनाएं घटित हो रही हैं. 

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