20150130

यह तो बस शुरुआत है...


 बॉलीवुड के लिए यह सकारात्मक संकेत हैं. बॉलीवुड को एक बार फिर से नये और अलग मिजाज के लेखक व निर्देशक मिल रहे हैं, जो बॉलीवुड की बने बनाये ढांचे से बाहर निकल कर नया रचने का प्रयास भी कर रहे हैं. उनकी पहली फिल्म से ही वे अपने हुनर को हस्ताक्षर बना रहे. आनेवाले सालों में इन नयी प्रतिभाओं पर निगाहें रहेंगी. 


रामकुमार सिंह( जेड प्लस)
डॉ चंद्रप्रकाश द्विवेदी की फिल्म जेड प्लस की कहानी एक  आम आदमी की कहानी है. असलम नामक एक आम आदमी पंचर की दुकान चलाता है. लेकिन एक दिन उसकी किस्मत पलटती है. देश के प्रधानमंत्री एक पीपल वाले पीर बाबा की दरगाह पर जाते हैं. और वहां उनकी मुलाकात असलम से होती है. असलम उन्हें हिंदी में कुछ कहते हैं और प्रधानमंत्री कुछ और समझ कर असलम को जेड प्लस सेक्योरिटी दे देते हैं. एक आम आदमी की जिंदगी में कितने बदलाव आते हैं. जब उसे जेड प्लस की सेक्योरिटी मिलती है. यही इस फिल्म की कल्पना है. यह फिल्म कल्पना के स्तर पर ही लीक से हट कर है. और यही वजह है कि फिल्म के लेखक रामकुमार सिंह ने अपनी इस परिकल्पना को चंद्रपकाश द्विवेदी की मदद से एक नया आयाम दिया. रामकुमार सिंह का फिल्मी खानदान से कोई वास्ता नहीं. लेकिन उन्होंने एक बेहतरीन फिल्म लिखी है और व्यंग्यात्मक कहानी लिखने में वे माहिर हैं. जेड प्लस यह दर्शाती है. सो, बॉलीवुड में लेखक के रूप में उन्हें और भी मौके मिलने चाहिए. रामकुमार सिंह को इस साल स्क्रीन अवार्ड में बेस्ट स्टोरी की श्रेणी में नॉमिनेट भी किया गया था. राजनीति, राजनीति का खेल, आम आदमी, आम आदमी की मनसा, उसकी लालसा और उसकी भावनाओं को बखूबी पिरोया गया है जेड प्लस में.
उमाशंकर सिंह ( डॉली की डोली)
फिल्म डॉली की डोली महिला दर्शकों को बेहद पसंद आ रही हैं. फिल्म की कहानी एक लुटेरी दुल्हन पर आधारित है. लेकिन फिल्म में एक महिला की सोच को बखूबी दर्शाया गया है. फिल्म के संवाद बेहतरीन हैं. खासियत यह है कि बेहद कम अंतराल में लेखक ने दर्शकों का बखूबी मनोरंजन किया है. फिल्म में ऐसे कई संवाद हैं, जो हिंदी सिनेमा में पहले नहीं सुने गये हैं. बिना भाषणबाजी किये भी आप किस तरह दर्शकों तक संदेश पहुंचा सकते. यह इस फिल्म की कहानी की ताकत है. फिल्मों के अंत को लेकर इन दिनों निर्देशक व लेखक गंभीर नहीं हैं. अधिकतर फिल्में इंटरवल के बाद दिलचस्प नहीं रह जातीं. लेकिन उमाशंकर सिंह बतौर लेखक इसमें कामयाब हुए हैं. फिल्म की नायिका एक जगह कहती हैं कि उन्हें भर्ता केवल लड़कों का बनाना आता है. यह फिल्म के प्रभावशाली संवादों में से एक है. साथ ही दादी मां का किरदार निभा रहीं महिला द्वारा बार बार यह संवाद दोहराना कि बेटी दे दी सबकुछ दे दिया भी कई महत्वपूर्ण पहलुओं पर प्रकाश डाल जाता है.
विभु पुरी ( हवाईजादा)
विभु पुरी की फिल्म हवाईजादा आमतौर पर बनाये जाने वाले विषयों से बिल्कुल इतर सोच के साथ बनाई गयी फिल्म है. फिल्म की कहानी एक ऐसे व्यक्ति पर आधारित है, जिन्होंने दुनिया का पहला हवाई जहाज बनाया था. विभु पुरी ने एक ऐसे विषय का चुनाव किया है, जो मुख्यधारा से बिल्कुल अलग है. विभु पुरी फिल्म इंस्टीटयूट की देन हैं और उन्होंने संजय लीला भंसाली के साथ काफी काम किया है. लेकिन अब वह अपनी पहचान और उड़ान भरने को तैयार हैं.
अभिषेक डोगरा( डॉली की डोली)
अभिषेक डोगरा ने भी बॉलीवुड में अपनी नयी शुरुआत की है. वे फिल्म डॉली की डोली के निर्देशक हैं. अभिषेक ने बताया कि पहले उन्होंने अरबाज खान को कई बार मेसेज किये. लेकिन जवाब नहीं मिले थे. लेकिन एक दिन अरबाज खान ने अभिषेक को बुलाया और नैरेशन सुनने के बाद उन्होंने कह दिया कि कहीं और कहानी मत सुनाना मैं यह फिल्म कर रहा. अभिषेक मानते हैं कि बॉलीवुड में नयी प्रतिभाओं को मौके मिल रहे हैं. अगर वाकई टैलेंट हों और आपकी कहानी में दम हो तो. वे मानते हैं कि अरबाज खान जैसे निर्माता नयी प्रतिभाओं की कद्र करते हैं.

अमित शर्मा( तेवर)
भले ही फिल्म तेवर कामयाब नहीं रही. लेकिन फिल्म के निर्देशक अमित शर्मा काफी चर्चित रहे. अमित लोकप्रिय एड फिल्म मेकर हैं और तेवर से उन्होंने पहली शुरुआत की है. गुगल रीयूनियन के लोकप्रिय विज्ञापन का निर्माण अमित ने किया था.
अभिषेक बर्मन( टू स्टेट्स)
अभिषेक बर्मन की भी टू स्टेट्स पहली फिल्म है. फिल्म चेतन भगत के उपन्यास पर आधारित थी. इस फिल्म को दर्शकों का भरपूर प्यार मिला और फिल्म ने 100 करोड़ क्लब में अपना नाम दर्ज किया. अपनी पहली शुरुआत से ही अभिषेक ने साबित कर दिया कि वे 100 करोड़ क्लब में शामिल होने का हुनर रखते हैं,.
शशांक खेतान( हंप्टी शर्मा की दुल्हनियां)
हंप्टी शर्मा की दुल्हनिया के निर्देशक शशांक खेतान की फिल्म हंप्टी शर्मा की दुल्हनिया को दर्शकों ने काफी पसंद किया. विशेष कर फिल्म में लीड किरदार निभा रहे वरुण धवन और आलिया भट्ट की जोड़ी को बेहद पसंद किया गया. लेखन की दृष्टि से इस फिल्म को बेहद रोचक अंदाज में प्रस्तुत किया था शशांक ने. 

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