20140802

दिलीप साहब की पाठशाला

दिलीप कुमार साहब की आॅटो बायोग्राफी पढ़ रही हूं. दिलीप साहब की जिंदगी से जुड़े कई दिलचस्प पहलू इस किताब के माध्यम से उनके प्रशंसकों तक पहुंच रहे हैं. दिलीप साहब ने अपनी इस आॅटो बायोग्राफी के एक भाग में इस बात का विशेष वर्णन किया है कि किस तरह उनके लिए अभिनय की पहली पाठशाला देविका रानी बनीं. किस तरह देविका रानी उन्हें समझाया करती थीं कि यह हर एक्टर का हक होता है कि वह अपने निर्देशक से तब तक टेक लेने के लिए कहता रहे, जब तक एक एक्टर पूर्ण रूप से अपने काम से संतुष्ट न हो जाये. एक एक्टर का कर्तव्य है कि उसे अभिनय के फाइनल शॉट से पहले कई बार रिहर्सल करना चाहिए. दिलीप साहब ताउम्र इसी बात पर अमल करते रहे. और शायद यही वजह है कि दिलीप कुमार को हिंदी सिनेमा का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता माना जाता है. दिलीप साहब ने अपनी बायोग्राफी में अशोक कुमार जिन्हें वे अशोक भईया कह कर बुलाते थे. उनके साथ अपने अभिनय के अनुभवों को  सांझा करते हुए कहा है कि किस तरह वे दोनों अपने सीन को निभाते हुए पहले से कॉर्डिनेशन रखते थे. दिलीप को कब अशोक को क्यू देना है. किस तरह अशोक कुमार के कहने पर दिलीप साहब भिखारियों को देखने महालक्ष्मी स्टेशन पहुंच गये थे. अभिनय को जिस गंभीरता से दिलीप साहब व अशोक कुमार जैसे अभिनेताओं ने जिंदा रखा था. यह इसी बात से स्पष्ट हो जाता है कि वे किस तरह अपने किरदार को संजीदगी से निभाने के लिए वे अपने काम में डूबे रहते थे. उस दौर में फिल्में कई कई सालों में बनती थीं. शायद इसकी वजह यही रहा करती होगी कि उस वक्त कलाकारों को संतुष्ट होने में वक्त लगता होगा, लेकिन कड़ी मेहनत के बाद जब बड़े परदे पर तालिया बजती थीं तो वाकई उनकी वह लगन और परफेक् शन नजर आती है. आज वह परफेक् शन गौन है. 

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