20140802

रमजान व प्यार


केबीसी के एक विज्ञापन में हिंदू परिवार का लड़का केबीसी में शामिल होता है. जब वह रवाना हो रहा होता है तो पड़ोस के मुसलिम परिवार और लड़के के परिवार में छींटाकशी होती रहती है. लेकिन अचानक केबीसी के फॉन आॅफ फ्रेंड में लड़का उसी मुसलिम परिवार के चाचा को फोन करके पूछता है कि अस सलाम वालेकुम का क्या अर्थ होता है चाचा. मुसलिम पड़ोसी उसे बताते हैं और वह केबीसी जीत जाता है. और दोनों पड़ोसी गले लग जाते हैं. दरअसल, भारत की यही संस्कृति है. हम अकेले जिंदा नहीं रह सकते. सफल नहीं हो सकते. यहां जो इज्जत देवी दुर्गा के आहुवाहन को मिलती है. वही सम्मान खुदा की इबादत को भी मिलनी चाहिए. पिछले दिनों शिवसेना के कुछ कार्यकर्ताओं ने जिस तरह रोजे के दौरान मजदूरों को जबरन रोटी खिलवा कर उनका रोजा तोड़ने की कोशिश की. यह निहायत ही शर्मनाक बात है. भारत लोकतांत्रिक देश है. यहां किसी जाति धर्म पर किसी की जोर जबरदस्ती नहीं चल सकती. लेकिन अफसोस की बात यह है कि ऐसे मुद्दे अब केवल अखबार और मीडिया में गंभीरता से नहीं दिखाये जा रहे. यह मुद्दा मुद्दा ही नहीं बन रहा. ऐसे कई हिंदू हैं जो रोजा रखते हैं. कई फिल्म स्टार्स भी हिंदू होने के बावजूद रमजान में रोजा रखते हैं. इफ्तार के वक्त सब मिल जुल कर, प्यार बांटते हैं. फिर ऐसे में रोजा के साथ यह खिलवाड़ सही नहीं. यह जबरन धर्म को भड़काना है. विज्ञापन इंडस्ट्री की इस बारे में सराहना की जानी चाहिए कि वे लगातार अपने विज्ञापनों के माध्यम से हिंदू मुसलिम एकता की बातें दर्शा रहे हैं. यह बेहद जरूरी है कि ऐसे मुद्दों पर गंभीरता से बात हो. ताकि जो आज हुआ फिर दोबारा न दोहराया जाये. वरना, यह संकेत है कि आनेवाले वक्त में किस तरह फिर से हिंदू मुसलिम हिंसा को बढ़ावा दिया जायेगा.

दर्शकों के लिए ईदी है किक : सलमान

सलमान खान ईद पर दर्शकों के लिए ईदी लेकर आये हैं अपनी फिल्म किक के माध्यम से. इस फिल्म में उन्होंने तीन गाने गाये हैं और उन्हें इस फिल्म के निर्माण में बेहद मजा आया है. 

सलमान आपके फिल्मों के संवाद सबसे ज्यादा लोकप्रिय होते हैं? इसकी कोई खास वजह?
ैमैं नहीं मानता. कि मेरी ही फिल्मों के संवाद लोकप्रिय होते हैं. यह तो कमाल राइटर का होता है कि वह ऐसे क्या शब्द डाल दे और कितने कम शब्दों के इस्तेमाल में वह खुद को स्थापित कर दे. सलीम जावेद जिस तरह के संवाद लिखा करते थे. यह कमाल उनका था. न कि कलाकार का. हां, उसे भलिभांति हम निभाते जरूर हैं. लेकिन यह राइटर की खूबी होती है कि वह किस तरह जगह पर सीन के मुताबिक वह इंपैक्ट क्रियेट करता है.

जुम्मे की रात है गाना बेहद लोकप्रिय है. इस गाने की मेकिंग के बारे में कुछ बताएं?
हां, यह गीत मुझे भी बेहद प्रिय है. इस गाने में डांस करने में मुझे जितना मजा आया है. उतनी ही दिक्कतें निश्चित तौर पर निर्देशक और कोरियोग्राफर को हुई होगी, जिन्होंने  इस गाने की शूटिंग की है. चूंकि आप गाने का लोकेशन देखें.ऐसे गानों के फिल्मांकन में बेहद तकलीफ होती है.

फिल्म में आपने जो बाइक का इस्तेमाल किया है. हमने सुना वह आपके पिताजी की गाड़ी है.
नहीं, वह पापा की गाड़ी नहीं है. दरअसल, वैसी सेम बाइक मेरे फादर के पास है और हम बचपन में उस पर खूब घूमे हैं. सो, इस बाइक से मेरी बहुत सारी मेमोरी जुड़ी है और यह मेरा ही आइडिया था कि इसी मॉडल की बाइक का इस्तेमाल हो. पिछले कुछ दौर में ऐसी बाइक फिल्मों में कम नजर आयी है.

किक का मतलब यहां क्या है?
यह किक फुटबॉल वाली किक नहीं है और न ही मोटरसाइकिल वाली. इस किक का मतलब है कि हर किसी को जिंदगी में एक किक चाहिए जिसे आप आमतौ पर पिक अप कहते हैं कि या फिर कि अरे यहां एक चांस मिल जाये. या एक मौका मिल जाये. यां एक फोर्सिंग फैक्टर जिससे आपमें फिर से चुस्ती आ जाती है. यह वह वाला किक है.
अचानक, फिल्म में गाना गाने की धुन कहां से सवार हुई?
ऐसा कुछ नहीं था कि पहले से कुछ भी तय था. पहले तो सोनू निगम ने ही इन गानों को गाया था. लेकिन फिल्म के म्यूजिक निर्देशक को लगा कि मुझे ये गाना गाना चाहिए. मैंने भी सोचा कि चांदी की डाल पर सोने का मोर गाना गाया तो दर्शकों ने पसंद किया था और मैं खाली वक्त पर बहुत गुनगुनाता भी रहता हूं. लेकिन इस फिल्म में गाने गाये हैं तो इसका यह बिल्कुल मतलब नहीं कि फिर जो फिल्म आयेगी उसमें भी गाऊंगा. मूड था तो गा दिया. वैसे मैं बता दूं कि इसमें मुझे साजिद, वाजिद और कमाल खान(सिंगर) ने मदद की. वह मेरे शब्दों को दुरुस्त कर देते थे. मुझे खुशी है कि अब तकनीक के माध्यम से किसी भी बेसूरे को सूरीला बनाया जा सकता है. सो, जरूरत पड़ने पर कलाकार को सिंगर भी बना दे रहे.

आप जैकलीन और नरगिस की काफी तारीफ कर रहे हैं?
हां, मुझे वे हर व्यक्ति पसंद है, जो काफी मेहनती हैं और मैं महसूस करता हूं कि इन दोनों में टैलेंट है. नरगिस ने क्या डांस किया है और जिस तरह वह स्पार्क के साथ डांस करती हैं वह कमाल है. जैकलीन भी इसी तरह काफी मेहनती हैं. मैं और साजिद इस बात को लेकर क्लीयर थे कि हमें इस फिल्म में मेरे साथ उसे कास्ट करना है, जिसके साथ मैंने पहले काम नहीं किया है. जैकलीन किरदार में फिट बैठ रही थीं. सो, हमने उन्हें लिया. वह अभी भी आश्चर्य करती हैं कि उन्हें ये फिल्म कैसे मिली. लोग भी उन्हें बार बार ताने कस रहे कि जैसे उन पर कोई एहसान हुआ है. लेकिन सच यह है कि मैं जैकलीन को इस फिल्म से पहले से नहीं जानता था. लेकिन इस फिल्म में काम करने का बाद मुझे एहसास हो रहा है कि वह अच्छी और टैलेंटेड अभिनेत्री हैं और किक में कहानी के मुताबिक वही सबसे परफेक्ट मैच थीं.

हमारे यहां छोटा परदा ही है बड़ा परदा : सनम सईद


 जिंदगी पर प्रसारित हो रहा शो जिंदगी गुलजार है इन दिनों दर्शकों के दिलों की धड़कन बन चुका है. खासतौर से कशफ मुतर्जा का किरदार निभा रहीं सनम सईद को दर्शक बेहद पसंद कर रहे हैं. पाकिस्तान को लेकर लोगों के जेहन में कई गलतफहमियां हैं, लेकिन टीवी के इन शोज के माध्यम से दो मूल्क आपस में जुड़ रहे हैं. इसे एक बड़ी सफलता मानती हैं सनम. 

 सनम, पाकिस्तान के साथ साथ भारत में भी दर्शकों से आपको काफी तारीफ सुनने को मिल रही हैं. ऐसी प्रतिक्रिया पर क्या महसूस कर रही हैं आप?
मैं बेहद खुश हूं कि दो मूल्कों को जोड़ने का काम कर रहा है यह चैनल जिंदगी. यह हमारी खुशनसीबी है, कि हमारी इतनी इज्जत अफजाई हो रही है. मुझे लगता है कि दो मूल्कों के जो मसले हैं वे बेफिजूल के गढ़े गये हैं. आपसी प्यार को तो इसी बहाने दर्शकों तक पहुंचाया जा सकता है. इस प्रयास की तारीफ होनी ही चाहिए.
शो में कशफ का जो आप किरदार निभा रही हैं. निजी जिंदगी में आप वैसी हैं या उससे जुदा?
जी बहुत हद तक कशफ से मेल खाती हूं. रिश्तों को लेकर मैं भी काफी इनसेक्योर रहती हूं. कह सकते हैं ओवर प्रोटेक्टीव रहती हूं और जिस तरह कशफ काफी मेहनती और इंडीपेंडेंट हैं. मैं भी अपनी निजी जिंदगी में वैसे ही रहना पसंद करती हूं.
भारत में अब भी फिल्में बड़ा परदा है और टीवी से ज्यादा फिल्मों को अहमियत मिलती है. पाकिस्तान की इंडस्ट्री में क्या स्थिति है.
जी हमारे यहां फिल्मों से अधिक टीवी को इज्जत मिलती है और यही वजह है कि हम लगातार अच्छे शोज का निर्माण कर रहे हैं. भारत में सिनेमा के माध्यम का जिस तरह से इस्तेमाल होता है अलग अलग तरह की कहानियों को कहने में. हमारे यहां हम टीवी के माध्यम से लोगों तक वे बातें पहुंचाते हैं. हमारे यहां फिल्में बेहद कम बनती हैं और यहां थियेटर भी उतने नहीं हैं. सो, हम टीवी पर अपना पूरा ध्यान देते हैं. खास बात यह है कि टीवी के माध्यम से भी खूबसूरत प्रेम कहानियां और समाज से जुड़ी कहानियां दिखाई जा रही हैं. एक खास बात यह भी है कि चूंकि हमारे यहां ामतौर पर जो भाषा बोली जाती है, वह उर्दू है और भाषा साहित्य को उर्दू को खास बना देती है. उसका लेवल बढ़ा देती है तो यह हमें अल्लाह से मिला एक नायाब तोहफा है, सो, हमारी जुबान भी बेहद पसंद आती है.
हम देख रहे हैं कि जितने भी शोज हैं, उनमें महिलाएं अपने पति  से या किसी न किसी रूप में धोखे खाती है. क्या यह वहां के वर्तमान समाज की छवि है?
आप इसे इस नजरिये से देखें कि हमारे यहां औरतें कितनी मजबूत हैं. आप देखेंगे कि किस शोज में औरत को मजबूर नहीं दिखाया गया है. जिंदगी गुलजार में ही मेरी अम्मी का जो किरदार निभा रहीं. उन्होंने अपनी तीन बेटियों को कैसे पढ़ाया. अपने दम पर. तो आप उस नजरिये से देखें और ऐसी बातें कहांं नहीं होतीं.
यह अवधारणा बनी हुई है कि पाकिस्तान में लोगों में संकीर्णता बहुत है. खासतौर से पहनावे को लेकर. आपकी नजर में फैशन के मायने क्या हैं?
नहीं ऐसा नहीं है. हां, यह जरूर है कि हमारे मेकर्स से यह बात कही जाती है कि आप ऐसे लिबाज में अपने कलाकारों को न दिखाएं, जो उत्तेजित करने वाले हैं. हमारे यहां इस बात की सख्ती है कि आप टीवी पूरे परिवार के साथ देख रहे होते हैं तो लिबाज पर नहीं कहानी पर ध्यान जाये. शायद हमारी कहानियां इतनी रिच इसलिए है कि हम कहानियों के सिवा किसी बात पर ध्यान ही नहीं देते. मेरे लिहाज से भी फैशन का मतलब वलगैरिटी तो होनी ही नहीं चाहिए. मैं खुद मॉडल रह चुकी हूं और मैं भी ऐसी चीजों से तौबा करती हूं. मेरे वालिद( जो कि खुद अभिनेता रह चुके हैं) भी तो मेरे शोज देख रहे होते हैं. हमारी सादगी में भी खासियत है और वही बात दर्शकों को छू जाती है.
और अगर मेहनताना की बात की जाये तो. बॉलीवुड हो या टेलीवुड हमारे यहां अब भी पुरुष की तूलना में महिलाओं को कम मेहनताना मिलता है.
हमारे यहां हर लिहाज से औरतों का दर्जा ऊंचा है. हमें पुरुषों से अधिक आमदनी मिलती है. चूंकि यहां भी टीवी पर महिलाओं का ही हक है. हां, कुछ बेहद लोकप्रिय स्टार हैं, वह कुछेक ही हैं. उनके अलावा हमें अपना हक मिलता है. तभी हम ताजगी और ईमानदारी से काम भी कर पाते हैं.
अभिनय के अलावा किन चीजों में दिलचस्पी है?
मुझे बच्चों के बीच रहना अच्छा लगता है, ट्रैवलिंग करना पसंद है, किताबें पढ़ना, कविताएं लिखना, समुद्र देखना अच्छा लगता है. 

कवास हैं हमारे रिलेशनशीप की बातें : आलिया-वरुण

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आलिया भट्ट और वरुण धवन की जोड़ी फिल्म हंप्टी शर्मा की दुल्हनिया में नजर आ रही है. इस फिल्म के दौरान आलिया और वरुण और भी अच्छे दोस्त बन गये हैं. 

 आलिया और वरुण आप दोनों ही धर्मा प्रोडक् शन की खोज हैं. तो एक बार फिर से  इसी प्रोडक् शन की फिल्म करने का अनुभव कैसा रहा?
आलिया : मेरे लिए तो धर्मा प्रोडक् शन घर की तरह है. मुझे जब भी मौका मिलेगा. मैं इस प्रोडक् शन की फिल्म करूंगी. करन मेरे लिए मेरे मेंटर हैं. इसलिए मैं जब भी धर्मा की फिल्म करती हूं. मेरा एक बेबी की तरह ख्याल रखा जाता है.  सो, मेरे लिए यहां की हर फिल्म खास है.
वरुण : (हंसते हुए)मुझे धर्मा प्रोडक् शन की नींबू की चाय बेहद पसंद है. सो, मैं तो धर्मा की कोई भी फिल्म इस चाय के लिए कर सकता. जस्ट किडिंग. अगर सच कहूं तो धर्मा प्रोडक् शन ने ही मुझे पहला चांस दिया. सो, पहली शुरुआत हर किसी के लिए खास ही होती है. करन ने जिस तरह मुझे, आलिया और सिद्धार्थ को मेंटर किया है. यह उसका ही नतीजा है कि हमलोग आगे भी अच्छा काम कर रहे हैं और हमें अच्छे आॅफर मिल रहे हैं.

आप दोनों के रिलेशनशीप के बारे में बताएं? आप दोनों में कौन सी बातें समान हैं. कौन सी अलग?
आलिया : मुझे बहुत हंसी आती है, जब लोग कहते हैं कि मैं और वरुण दोस्त से बढ़ कर किसी और रिश्ते में भी हैं. जबकि इसमें तो जरा भी सच्चाई नहीं है. वरुण मेरे बहुत अच्छे दोस्त हैं. वरुण मुझे इसलिए पसंद हैं, क्योंकि काफी आॅनेस्ट हैं और फिल्मी हीरो जैसे नहीं हैं, रियल लाइफ में. मतलब बिंदास रहते हैं. जो अच्छा लगता है. करते हैं. जो नहीं लगता फट से मुंह पर बोल देते हैं और इसलिए इनसे दोस्ती करना आसान हैं. हां, मगर वे जितने बातूनी हैं. मैं उतनी नहीं हूं. हम दोनों की दोस्ती की वजह यही है कि हम दोनों साथ साथ आये हैं. हमारे फ्रेंड्स कॉमन हैं. हम दोनों ही पहले ज्यादा नर्वस होते थे. अब नहीं होते.
वरुण : सबसे पहले तो मैं बता दूं कि मेरा किसी एक्ट्रेस से अफेयर हो ही नहीं सकता. क्योंकि मैं हर एक्ट्रेस को भाई जैसा लगने लगता हूं. ये बात खुद नरगिस ने पिछली फिल्म के दौरान मेरे बारे में कहा था और मैंने भी तय किया है कि मैं किसी एक्ट्रेस से तो शादी बिल्कुल नहीं करनेवाला. आलिया और मेरी केमेस्ट्री अच्छी है, क्योंकि हमारे बीच कंफर्ट जोन है. लेकिन इस कंफर्ट जोन को लेकर लोग कुछ और बातें बनाने लगते हैं तो ये गलत है. वैसे मुझे आलिया का हंप्टी शर्मा में निभाया गया किरदार काव्या बहुत पसंद है. मैं चाहता हूं कि मुझे काव्या जैसी लड़की मिले रियल लाइफ में जो अपने प्यार को लेकर बेहद कांसस हो.

आलिया आपकी करीना से और वरुण आपकी गोविंदा से काफी तूलना हो रही है. ऐसी तूलना होने पर आप लोग कैसा महसूस करते हैं?
आलिया : मैं ये सुन कर पक चुकी हूं. मैंने कहा था कि हां, मैं करीना की फैन हूं. लेकिन उनकी तरह ही बनना चाहती हूं. कभी नहीं कहा. अब चूंकि इस फिल्म में भी मैंने करीना की फैन का किरदार निभाया है तो लोगों को और लगने लगा है कि मैं करीना बनने की कोशिश कर रही हूं. वे मुझसे सीनियर हैं और अभी तो मुझे बहुत कुछ सीखना है.
वरुण : हां, मेरी पिछली फिल्म देख कर लोगों ने ये कहना शुरू कर दिया था. लेकिन मेरे लिए गर्व की बात होगी अगर गोविंदा जी की थोड़ी भी खूबी मुझमें आ जाये. मैं उनके ह्मुर का फैन रहा हूं. और मुझे अभी वह सब करने में वक्त लगेगा. हम न्यू कमर हैं तो ऐसी तुलनाएं होती रहेंगी. मैं इसे टेक इट इजी ही लेता हूं.

आप दोनों के ही पिता इंडस्ट्री में स्थापित नाम हैं. तो आपको कभी ऐसा महसूस होता है कि उनकी वजह से आपको थोड़ी प्राथमिकता मिलती है यहां? और पापा के साथ फिल्में करना चाहेंगे?
आलिया : मैंने अपनी फिल्म आॅडिशन देकर ही हासिल की थी. बाद में करन को पता चला था कि मैं महेश भट्ट की बेटी हूं और अगर पापा की वजह से फिल्में मिल रही होतीं तो विशेष फिल्म्स ही करती न. हां, बस सपोर्ट ये मिलता है कि लोग औरों की तूलना में हमसे प्यार से बातें करते थे.बाकी तो आपको मेहनत दिखानी ही होती है. पापा के साथ फिलहाल कोई फिल्म नहीं कर रही. लेकिन इच्छा है कि उनकी निर्देशित फिल्म में काम करूं.
वरुण : मुझे शुरुआती दौर में बस यही फायदे हुए कि लोग मुझसे औरों की तूलना में ज्यादा वक्त देकर बातें करते थे. लेकिन अगर मैं सही तरीके से काम करने में असफल होता तो मुझे फिल्में नहीं मिलती. आफ्टर आॅल आपका हार्ड वर्क ही वर्क करता है.एक फिल्म में काम कर चुका हूं. जल्द ही दूसरी में भी करूंगा.

आप दोनों की आनेवाली फिल्में ?
आलिया : मुझे अभी अपनी आनेवाली फिल्म के बारे में कुछ भी न कहने को कहा गया है
वरुण : एबीसीडी 2 के बाद पापा की एक फिल्म करूंगा

कहानियों को वीजा नहीं लगता : शैलजा


एक ख्वाब था जो अधूरा रह गया था. उन्हें दो मूल्कों को करीब लाना था. उन्होंने कोशिशें भी की थी. लेकिन उस वक्त वह अधूरी रह गयी. लेकिन उन्होंने हौंसला नहीं हारा. कई वर्षों पहले टेलीविजन के माध्यम से दो मूल्कों को जोड़ने की वह कोशिश अब जाकर कामयाब हुई जिंदगी के रूप में. जिंदगी को दर्शकों का भरपूर प्यार मिल रहा है. वर्षों बाद वाकई टेलीविजन ने सांस ली है. सांस है नये अंदाज व कलेवर के धारावाहिकों की. पाकिस्तान के खास शोज को बिना किसी विजा के भारत तक लाने के इस सफर में सोच और मेहनत लगी है शैलजा केजरीवाल की. जिंदगी को किस तरह जिंदगी प्रदान की शैलजा ने. अनुप्रिया अनंत से उन्होंने अपने अनुभव सांझा किये

अधूरा था जो सपना
 मैं हमेशा से इन दो मूल्कों को इस माध्यम से जोड़ना चाहती थी. चूंकि मैं जानती हूं कि दोनों ही मूल्कों के लोग एक दूसरे के बारे में जानना चाहते हैं. उन्हें समझना चाहते हैं. उनकी जिंदगी से वाकिफ होना चाहते हंै. इसकी शुुरुआत कई सालों पहले की थी. वर्ष 1999  में एक शो आया था तन्हा. हसीना मोइन ने लिखा था वह शो. लेकिन उस वक्त राजनैतिक दबार की वजह से सीरियल का टेलीकास्ट बंद करना पड़ा था. फिर मैं केबीसी और बाकी कामों में व्यस्त हो गयी थी. लेकिन एक दर्शक के रूप जब मैंने अपनी तरफ देखा तो मैंने महसूस किया कि मैं खुद वही चीजें परोसत परोसते बोर सो चुकी हूं. खुद का काम बुरा लग रहा था. इसी दौरान मेरे वे दोस्त जो पाकिस्तान में रहते हैं. वहां के शोज की सीडीज मुझे भेजते रहते थे.  और मैंने जब सारे शोज देखने शुरू किये तो मुझे फिर से आइडिया आया कि मुझे इस पर काम करना चाहिए. मैं पाकिस्तान गयी. वहां के लोगों से मिली और जो मुझे वहां के लोगों से बेइतहां प्यार मिला कि मैं न्योछावर हो गयी. मैं इंडिया आयी. फिर मैं यहां के लगभग 37 छोटे शहरों में गयी. भारत के लोगों को मैंने सीडी दिखाई इन शोज के. मैं आश्चर्यचकित थी कि उन्हें वे सारे शोज कितने पसंद आये. तब जाकर मैं ब्रॉडकास्टर से मिली. जी से बात की. उन्हें कनविंस किया कि कोई भी दर्शक एक मूड से कोई चैनल देखता है. तो सिर्फ एक स्लॉट से बात नहीं बनेगी और अंतत: मेहनत रंग लायी. जिंदगी चैनल अस्तित्व में आया.

जिंदगी का नाम
हमने इस चैनल का नाम जिंदगी इसलिए रखा चूंकि जिंदगी शब्द से हर कोई रूबरू है और हर कोई जिंदगी शब्द से कनेक्ट कर पायेगा. साथ ही इसमें जी टीवी का जेड भी आ जाता है. मेरा मानना था कि जिंदगी में कोई बॉर्डर नहीं होते. ये सबसे सहज नाम है. मैंने तय किया कि मैंने ऐसे भी इस चैनल की शुरुआत कर एक चांस ही लिया था तो मैंने गिव लाइफ अ चांस की फिलॉसफी पर अमल किया और इसे जिंदगी नाम दे दिया,
मैच्योर हुए हैं दर्शक
जब यह कांसप्ट लेकर मैं जी के पास गयी थी, तो उस वक्त हममें काफी डिबेट हुए. मुझे भी इस बात की चिंता थी कि हमें कोई थ्रेट न मिले, कोई राजनीतिक पचड़ों में हम न फंसे. मैं इस बात से भी डरी थी कि पता नहीं दर्शकों की क्या प्रतिक्रिया होगी. लेकिन जिस तरह जिंदगी चैनल को प्यार मिल रहा है और लोग इसके फ्रेशनेस की बात कर रहे हैं. मैं बेहद खुश हूं.

लव हेट रिलेशनशीप
 दरअसल, दोनों मूल्कों में लव हेट रिलेशनशीप है. वहां के लोग यहां के लोगों से बेहद प्यार करते हैं. लेकिन दिखाते नहीं हैं. दुख होता है ये सोच कर कि पहले ये दो मूल्क एक देश थे. लेकिन अब वहां क्या हो रहा. हम नहीं जानते. दूसरी बात है कि पाकिस्तान के लोग तो बॉलीवुड के माध्यम से भारत को देख लेते हैं. लेकिन भारत के लोगों के मन में पाकिस्तान को लेकर डर बना हुआ है. चूंकि वे पाकिस्तान की वही दुनिया देखते हैं जो न्यूज में दिखाया जाता है. सो, यह बेहद जरूरी था कि अलग पाकिस्तान की छवि प्रस्तुत की जाये. आज जब लोग कह रहे कि यह चैनल वाकई क्रांति लेकर आया है.कई सालों बाद सास बहू, शादी ब्याह, नाच गाने से इतर कुछ नयी चीजें सामने आयी हैं तो बेहद खुशी मिल रही है.लोग कह रहे कि इस चैनल से वे नयी जुबान सीख रहे. खुशी है कि अपनी कोशिश में कामयाब हुई

हाथ टूटने की वजह से बना एक्टर : अली फैजल


अली फैजल ने कम समय में ही बॉलीवुड में खुद को स्थापित कर लिया है. आॅल्वेज कभी कभी, फुकरे के बाद वे फिल्म बॉबी जासूस में विद्या बालन के साथ अहम भूमिका निभा रहे हैं. 

फिल्म बॉबी जासूस में सिर्फ विद्या ही विद्या नजर आ रही हैं. तो ऐसे में आपने फिल्म को हां क्यों कहा?
क्योंकि मुझे इसमें विद्या बालन के साथ काम करने का मौका मिल रहा था. लोगों को ऐसा लग रहा है कि फिल्म में मेरा कोई किरदार ही नहीं, लेकिन आप फिल्म देखें तो आपको ये बात समझ आयेगी कि मेरा फिल्म में कितना अहम किरदार है.  दरअसल, मैंने पहले फिल्म को न ही कह दिया था. लेकिन बाद में जब मैंने पूरी स्क्रिप्ट लिखी. मैं कहानी का फैन हो गया. फिल्म में बॉबी को प्रेरित करने में मेरे किरदार का अहम रोल है. मैं फिल्म में  तव्वसुर सेन का किरदार निभा रहा हूं, जो उसी मोहल्ले का रहनेवाला है. और उसकी अपनी सपनों की दुनिया है. इसी बीच वह बॉबी से टकराता है और वह बॉबी को भी आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करता है.

विद्या के साथ काम करने का अनुभव कैसा रहा और क्या क्या सीखा विद्या से?
विद्या उन चुनिंदा लोगों में से एक हैं, जिन्हें लोगों को प्यार देना आता है. तो व्यक्तिगत तौर पर मैंने उनसे लोगों को प्यार देना सीखा. काम की बात करें तो मैं और विद्या दोनों में एक खूबी है कि हम दोनों ही अच्छे आॅर्ब्जबर हैं. और अभिनय में इसकी बहुत जरूरत होती है. फिल्म में एक सीन था, जिसमें विद्या को मुझे मारना था. विद्या वह सीन करने में काफी तनाव में थीं. चूंकि उन्हें बार बार ऐसा लगता था कि कहीं मुझे जोर से लग न जाये. फिर गाने वाले सारे सीन, जिसमें संवाद नहीं कहने थे. आंखों से अभिनय करना था. वह काफी कठिन था. लेकिन हम दोनों इसके लिए काफी मेहनत करते थे. खासबात यह थी कि फिल्म की शूटिंग खत्म होने के बाद हमने गानों की शूटिंग की थी. तो हमारे पास काफी वक्त था कि हम सिर्फ गाने पर फोकस करें.और इशांअल्लाह गाना क्या खूब निकल कर आया है.

अली, शुरू से ही सोच रखा था फिल्मों में ही आना है?
नहीं, दरअसल, मैं यूं ही अचानक से हीरो बन गया. मैं शुरू से बोर्डिंग स्कूल में था और बोर्डिंग स्कूल में कुछ न कुछ एक्टिविटीज होती ही रहती थी. मुझे बास्केट बॉल में काफी दिलचस्पी थी और मैं खूब खेला भी करता था. लेकिन एक दिन खेलते खेलते मेरे हाथ टूट गये. उसके बाद सबने कहा कि चलो बास्केट बॉल नहीं तो थियेटर करो. तुम अच्छे दिखते भी हो और एक्टिंग भी ठीक ठाक कर लेते हो. तो, बस वही से थियेटर शुरू किया और अभिनय की शुरुआत हुई.

खाली वक्त में क्या करना पसंद है?
मुझे फिल्में देखने का बेहद शौक है. और मैं स्पोर्ट्स काफी खेलता और देखता हूं. फिल्मों में तो मैं हिंदी और अंगरेजी हर तरह की फिल्म देख सकता हूं.

आपकी फिल्म फास्ट एंड फ्यूरियस के बारे में बताएं? साथ ही यह भी बताएं कि कैसा रहा इस फिल्म में काम करने का अनुभव 
यह मेरे लिए बड़ी उपलब्धि थी कि मुझे कैमियो ही सही लेकिन इस फिल्म से जुड़ने का मौका मिला. फिल्म में छोटा लेकिन अहम है मेरा किरदार. मुझे हॉलीवुड और बॉलीवुड में एक ही अंतर महसूस हुआ कि वे लोग प्लानिंग पर बहुत ज्यादा ध्यान देते हैं. उनकी फिल्मों में प्री प्रोडक् शन और पोस्ट प्रोडक् शन पर सबसे ज्यादा मेहनत होती है. वे शूटिंग पर उतना वक्त नहीं देते. शायद यही वजह है कि उनकी तकनीक से हम अब तक तालमेल नहीं बिठा पाये हैं. वैसे हर फिल्म इंडस्ट्री का काम करने का अपना अपना तरीका होता है. वहां के एक्टर्स टेक्नीकल एक्टर्स होते हैं. उन्हें तकनीक के अनुसार अभिनय करना होता है. ताकि बाद में उसे आप
आपको लगातार बड़े बैनर की फिल्में मिली हैं. क्या आपको लगता है कि बैनर महत्व रखता है?
हां, एक न्यू कमर के लिए बैनर तो महत्व रखता है. लेकिन एंड आॅफ द डे आप कामयाब तभी हो सकते हैं, जब आपमें हुनर है. यह परफॉरमेंस वर्ल्ड है.

आपकी आनेवाली फिल्में?
जल्द ही खामोशियां में नजर आऊंगा. खामोशियां विशेष फिल्म्स की फिल्म है. और वाकई इसमें अब तक निभाये गये सारे किरदारों से अलग अंदाज में नजर आऊंगा. फिल्म में एक् शन, इमोशन ड्रामा सबकुछ है.

अपनी इमेज बदलना चाहती हूं : सनी


ेसनी लियोने फिल्मों के साथ साथ टीवी पर भी छाई हैं. वे इन दिनों स्पिलिट्सविला में नजर आ रही हैं. टेलीविजन पर अपनी दूसरी  शुरुआत से वे बेहद खुश हैं. 
स्पिलिट्सविला से जुड़ने की खास वजह क्या रही और शो को जिस तरह से प्रतिक्रिया मिल रही है. आपकी क्या राय है?
मैं बेहद खुश हूं कि मुझे इस तरह के शो से जुड़ने का मौका मिला. इस शो के माध्यम से मैं अपनी छवि बदलने में कामयाब हो रही हूं. चूंकि मैं अपनी इमेज को बदलना चाहती हूं और मैं मानती हूं कि टेलीविजन बेहतरीन मौका है. मुझे टेलीविजन के शो बिग बॉस से ही पहला मौका मिला और अब फिर से ये शो कर रही हूं. ज्यादा से ज्यादा लोगों से जुड़ने का मौका मिल रहा है. मुझे अच्छी प्रतिक्रिया मिल रही है.

आपकी हिंदी काफी अच्छी हो गयी है.
हां, मैंने इस पर काफी मेहनत की है और मुझे खुशी होती है कि लोग मेरी हिंदी सुनते हैं तो कहते हैं कि सनी मेहनत कर रही हैं और मैं सच बताऊं तो मैंने काफी मेहनत की है. इसकी वजह यही है कि मुझे अब भारत में आये वक्त हो गया है और मैं जिस इंडस्ट्री का हिस्सा हूं यहां हिंदी को ठीक करना जरूरी  है. वरना, मुझे हर कोई हिंदी सिखाने लग जाता था. और मुझे बेवकूफ भी समझता था. यहां तक कि मुझे बेवकूफ बनाता भी था. तो मैंने इसे चैलेंज के रूप में लिया और लोगों को दिखा दिया कि मैं बेवकूफ नहीं हूं. हालांकि मैं अब भी पूरी तरह से ट्रेंड नहीं हुई हैं. लेकिन धीरे धीरे सीख जाऊंगी.

क्या इस शो के माध्यम से सनी का दूसरा पहलू भी दर्शकों तक पहुंच रहा है?
जी हां, बिल्कुल चूंकि ये शो रियलिटी शो है तो जाहिर सी बात है कि लोग वही देख रहे हैं जो वाकई में मेरा स्वभाव है. इस शो के माध्यम से मैं अपने ओरिजनल रूप को लेकर दर्शकों के सामने आ रही हूं और यह बेहद जरूरी है. इस शो की यह खूबी है कि मुझे कई फिल्मी दुनिया से बाहर के लोगों के बीच रहने का मौका मिल रहा है. मैं इस शो में एंकरिंग कर रही हूं और यह मेरे जॉनर से बिल्कुल अलग चीज है. क्रियेटिव भी है. कई बार एंकर को अपना सेंस आॅफ ह्मुमर और प्रेजेंस आॅफ माइंड इस्तेमाल करना होता है, जैसा मैं कर रही हूं तो काफी मजा आ रहा है. इस शो में सेलिब्रिटी के रूप में नहीं हूं. मैं मानती हूं कि स्पिलिट्सविला के काफी फैन फॉलोइंग हैं. और मैं इसे और खास बनाने की कोशिश कर रही हूं.

बिग बॉस ने आपकी दुनिया बदली,क्या आप मानती हैं?
हां, बिल्कुल छोटे परदे के शो  बिग बॉस की वजह से ही मुझे बड़े परदे की दुनिया देखने का मौका मिला और ऐसी दुनिया जो कि बेहद खूबसूरत है. सो, मैं छोटे परदे की शुक्रगुजार हूं और जब भी मौका मिलेगा. मैं छोटे परदे का हिस्सा बनती रहूंगी. मुझे तो छोटे परदे के शोज पर जाना बेहद पसंद है. फिल्मों के प्रोमोशन के लिए. वहां अलग दुनिया देखने को मिलती है. खासतौर से कॉमेडी नाइट्स विद कपिल  जैसे शो मेरे फेवरिट शो हैं.

सनी क्या आप मानती हैं कि आपकी गुजरी जिंदगी की इमेज की वजह से आपको कई बार परेशानियों का सामना करना पड़ता है?
जी हां, बिल्कुल कई लोग तो पहले मुझसे ये कहते हैं कि मैं हॉलीवुड से आयी हूं. जो कि लोगों को समझना होगा कि विदेशी फिल्में का मतलब सिर्फ हॉलीवुड नहीं और लोगों को लगता है कि चूंकि मैं पॉर्न स्टार थी इसलिए मुझे ये मौके मिले. हकीकत यह है कि मैंने पॉर्न स्टार का काम बहुत पहले छोड़ दिया था और कई सालों के बाद मैं भारत आयी. लेकिन लोग इन बातों को स्वीकारते नहीं हैं. भारत में मुझे इस वजह से काम मांगने में बहुत दिक्कतें आती हैं. लोग मुझे उसी छवि से देखते हैं. हां, वह मेरा पास्ट था. लेकिन अब मैं आगे बढ़ गयी हूं और अब अलग तरह की फिल्में और टेलीविजन शोज करना चाहती हूं.

स्पिलिट्सविला के अलावा कौन कौन सी फिल्में कर रही हैं आप?
मैं फिलवक्त टीना और लोलो और मस्तीजादे कर रही हूं.

आदित्य का रुमानी अंदाज

आदित्य चोपड़ा और रानी मुखर्जी के व्याह के बाद रानी मुखर्जी द्वारा दिये कई इंटरव्यू में आदित्य चोपड़ा का जिक्र करना नहीं भूल रहीं. रानी के ही बहाने आदित्य चोपड़ा की जिंदगी के कई पहलू सामने आ रहे हैं. यह बात जगजाहिर है कि आदित्य को मीडिया से मिलना पसंद नहीं और वह अपनी तसवीरें भी अखबारों में देखना पसंद नहीं करते. मीडिया वाले आदित्य को कई सालों से इस बात के लिए कोसते आ रहे हैं. लेकिन आदित्य ने इस बात की परवाह नहीं की है. और आदित्य के इस व्यवहार की वजह से मीडिया ने यह गलतफहमी पाल ली है कि आदित्य काफी अकड़ू हैं. चूंकि मीडिया वर्तमान में वह स्थान हासिल कर चुकी है कि वह अपना निर्णय और सोच लोगों पर थोप सकती है. अपनी रिपोर्टिंग से मीडिया से साबित कर सकती है कि किसी व्यक्ति का क्या व्यक्तित्व है. और विडंबना यह है कि मीडिया ने जो आंखें हमें दी हैं. हम उसी को आंखों देखी मानने लगे हैं. लेकिन रानी मुखर्जी के माध्यम से आदित्य के व्यक्तित्व की जो झलकियां जानने को मिल रही हैं. उससे यही प्रतीत होता है कि आदित्य एक आम इंसान की तरह बिल्कुल सामान्य जिंदगी जीना पसंद करते हैं. यशराज के मालिक होने के बावजूद उन्हें शोर शराबे और दिखावे में दिलचस्पी नहीं. लेकिन अपनी जीवनशैली को पूरी जिंदागानी के साथ जीता है. रानी के अनुसार आदित्य बहुत फूडी हैं और वे रानी को दुनिया के हर बेस्ट रेस्टोरेंट का खाना खिलाना चाहते हैं. उनका सेंस आॅफ ह्मुमर अच्छा है. रानी के कहने पर ही उन्होंने बांग्ला अंदाज में व्याह रचाया. वह फैंटेसी दुनिया में विश्वास रखते हैं. एक प्रैक्टिल निर्माता होने के बावजूद निजी जिंदगी में स्वप्नीली जिंदगी में रहना, रिश्तों में विश्वास करना, प्यार में विश्वास करना दर्शाता है कि वाकई एक व्यक्ति चाहे तो दिखावे की बजाय भी खुशी के साथ जिंदगी निर्वाह कर सकता है. 

सलमान भाई व जान


 सलमान खान की फिल्म किक भी 100 करोड़ क्लब में शामिल हो चुकी है. बॉलीवुड में अब तक 100 करोड़ क्लब में शामिल होनेवाली फिल्मों में लगभग 7 फिल्में सलमान खान की हैं. फिल्म ट्रेड पंडितों के अनुसार सलमान सुपरस्टार्स में 100 करोड़ में शामिल होनेवाले में सबसे ऊंची श्रेणी में हैं. सलमान की फिल्म की रिलीज  से पहले ही ट्रेड पंडित यह घोषणा कर चुके थे कि सलमान की फिल्म तीन दिनों में अच्छी कमाई कर लेगी. सलमान भी इस बात से अवगत हैं कि उनकी फैन फॉलोइंग किस हद तक है. सलमान खान के फैन पिछले 20 सालों में बढ़े हैं. महेश भट्ट ने अपनी फिल्म अर्थ के बारे में कहा कि अगर किसी अर्थ जैसी फिल्म पर फ्रंट सीट पर बैठी पब्लिक ने सीटी बजा दी और तालियां बजा दी तो समझ लो कि आपकी फिल्म हिट है. सलमान की हर फिल्म फ्रंट सीटर की फिल्म है. सलमान भी यह जानते हैं. इसलिए वह मुंबई में अन्य कलाकारों की तरह पीवीआर में नहीं जाते. वे गेइटी गैलेक्सी में जाते हैं. सलमान के लिए फिल्म किक का 100 करोड़ क्लब में शामिल होना उनके करियर की किक नहीं है. चूंकि सलमान इस बात  से वाकिफ हैं कि उनका जादू किस तरह बरकरार है. हर ईद पर सलमान खान अपनी बालकनी से हाथ ंिहलाते हैं और अपने फैन से मुखातिब होते हैं. उनके चाहनेवालों के लिए यही ईदी है. हर वर्ष की तरह इस बार भी ईद के दौरान उनके घर गैलेक्सी अपार्टमेंट के पास का नजारा देखा. सलमान को लेकर उनके प्रशंसकों में जो बातें होती हैं. वह यही कि वह सबकी जान है. वह सबक ेजान हैं. सब उन्हें भाईजान कह कर ही बुला रहे थे.  सलमान की अगली फिल्म के शीर्षक में भी भाईजान जुड़ा है. चूंकि निर्देशक व निर्माता जानते हैं कि सिर्फ भाईजान नाम जोड़ देने भर से भी किस तरह सलमान के प्रशंसक फिल्म से कनेक्ट हो जायेंगे.

मनमुताबिक कलाकार व सपने

सुजोय घोष काफी दिनों से फिल्म दुर्गा रानी सिंह के लिए नायिका की खोज कर रहे हैं. चूंकि सुजोय को पहले पूरा यकीन था कि विद्या बालन उनके आॅफर को नहीं ठुकरायेंगी. लेकिन किसी वजह से विद्या ने फिल्म को न कहा और उस वक्त से सुजोय कई नायिकाओं को यह फिल्म आॅफर कर चुके हैं. लेकिन कंगना और करीना ने भी फिल्म को न ही कहा है. सो, सुजोय ने फिल्म को फिलहाल होल्ड पर रख दिया है और वह अपनी दूसरी फिल्म की तैयारी में जुट गये हैं. निश्चित तौर पर सुजोय के जेहन में जो कहानी है. और वह इसे जिस रूप में प्रस्तुत करना चाहते हैं. इसके लिए उन्हें कंगना, करीना या विद्या मार्फत अभिनेत्री की ही जरूरत होंगी. कुछ इसी तरह तिग्मांशु धूलिया पिछले काफी सालों से समारू बेगम पर फिल्म बनाना चाह रहे हैं. उनका यह ड्रीम प्रोजेक्ट है. लेकिन अब तक किसी अभिनेत्री ने इसे हां नहीं कहा है. उनकी इच्छा थी कि फिल्म में रानी मुखर्जी मुख्य किरदार निभायें. लेकिन रानी ने फिल्म की स्क्रिप्ट की अंतरंगता को देखते हुए फिल्म से दरकिनार कर लिया. कई सालों से सही कलाकार की खोज न हो पाने की वजह से शेखर कपूर पानी का निर्माण नहीं कर पा रहे थे. खबर तो यह भी है कि आशुतोष ग्वारिकर ने बुद्धा वाली फिल्म से इसलिए खुद को दूर कर लिया, क्योंकि उन्हें मनमुताबिक कलाकार नहीं मिले. करन जौहर की फिल्म शुद्धि बार बार टाली जा रही थी. दरअसल, स्क्रिप्ट अगर किसी एक भूमिका के केंद्र में रख कर लिखी जा रही हो तो कलाकार की भूमिका अहम हो जाती है और जो निर्देशक इसके साथ समझौते नहीं करते. वे फिल्म किसी अन्य कलाकार को लेकर बनाने की बजाय उसे न बनाना ही उचित समझते हैं. यह निर्देशक की सृजनशैली के अंदाज को भी बयां करता है. एक निर्देशक अपनी शैली के साथ कितने समझौते करता है. कितने नहीं

ब्लेम गेम

सैफ अली खान ने हाल ही में एक अख़बार को दिए इंटरव्यू में स्वीकारा है कि हम्सकलस करना उनकी गलती थी।  उन्होंने इस फिल्म के बारे में कहा कि फिल्म में जिस तरह की कॉमेडी दिखाई गई है।  वह वैसी कॉमेडी में विश्वास नहीं करते।  जबकि  इसी फिल्म के प्रोमोशन के दौरान वे बार बार कह रहे थे कि उन्हें साजिद के साथ काम करके और उनके अंदाज़ की कॉमेडी करने में काफी मजा आया।  चूँकि फिल्म की भद हर जगह उड़ चुकी है. सो, सैफ इससे पलड़ा झाड़ रहे हैं।  बॉलीवुड में ये पहली बार नहीं हो रहा।  वर्षों से फिल्मों के सफलता का श्रेय खुद लेना और असफलता का श्रेय दूसरों पर मढ़ने का दौर जारी रहा है. पाकीज़ा जब रिलीज हुई थी।  रिलीज़ वाले हफ्ते में  कमाई  नहीं कर पाई थी।  लेकिन मीणा कुमारी की मौत के बाद अचानक फिल्म कामयाब हुई।  दर्शक बढ़ने लगे।  चूँकि सभी इस बेहतरीन अदाकारा को आखिरी बार बड़े परदे  चाहते थे।  कमाल को इस बात से तकलीफ हुई थी। उन्होंने इस बात की घोषणा करवाई कि उनकी फिल्म फिल्म के कंटेंट की वजह से चली है।  न कि किसी और वजह से. मीना कुमारी जो यह मानती थी कि कमाल ने पाकीज़ा फिल्म बनाकर उन्हें ताजमहल की तरह तोहफा दिया है।  शायद यह सुनकर उनका सारा प्यार बेईमानी लगता। अक्षय कुमार ने फिल्म जोकर का प्रोमोशन नहीं किया।  चूँकि फिल्म के निर्माण के कुछ दिनों बाद ही अक्षय समझ चुके थे कि फिल्म में जान नहीं है।  यही वजह रही कि उनकी दूरी फराह और साजिद से बढ़ी।  दरअसल हकीकत यही है कि हिंदी सिनेमा की दुनिया में हर शुक्रवार केवल फिल्मों का नहीं फ़िल्मी रिश्तों का पैरामीटर भी आँका जाता है। अजय देवगन को इस बात से तकलीफ जरूर हुई थी कि हिम्मतवाला उनकी सबसे असफल फिल्म रही।  लेकिन उन्होंने सार्वजनिक रूप से इसे कभी उजागर नहीं किया।  चूँकि साजिद अजय के स्कूल के दोस्त रह चुके हैं। वरना उन्हें भी तकलीफ थी।  दरअसल फिल्म का सृजन का दोष वाकई केवल निर्देशक पे नहीं मढ़ा जाना चाहिए।  चूँकि अगर आपने फिल्म साइन की है।  इसका मतलब है कि आप उस विषय में यकीं करते हो।  हलाकि कई बार कछ स्टार्स मज़बूरी में भी फिल्में करते हैं।  अमिताभ बच्चन ने लाल बादशाह और सूर्यवंशम जिस वक़्त की उनकी अलग मजबूरियां थी और यही वजह है कि अमिताभ उसे मिस्टेक नहीं मानते। 

आलिया की भूख

आलिया भट्ट अपने पिता महेश भट्ट के साथ अनुपम खेर के शो में आयीं. चूंकि आलिया अनुपम खेर को भी बचपन से जानती हैं,सो, वहां उन्होंने खुल कर बातचीत की. स्टार्स वही स्वभाविक बातें करते हैं, जिन्हें वे जानते हैं. फिर चाहे आप उनसे कोई भी प्रश्न कितने भी सलीके से पूछें, यह उनके मूड पर निर्भर करता है. आलिया की पहली फिल्म स्टूडेंट आॅफ द ईयर के दौरान भी उनसे बातें हुई थीं. और अब वह चार फिल्में पुरानी हो चुकी हैं. इन चार मुलाकातों में आलिया के बर्ताव व व्यवहार में बहुत अंतर हैं. अपनी पहली फिल्म को लेकर उनमें जो हिचक थी. अब वह दूर हो चुकी है. आलिया ने इस बात को स्वीकारा है कि इन दिनों वह खुद को लॉस्ट महसूस कर रही हैं. इसकी बड़ी वजह शायद यही है कि उनकी सारी फिल्में कामयाब हो रही हैं और वे लगातार अपनी अभिनय शैली के लिए सराही जा रही हैं. आलिया में अब वह बेबाकी आ चुकी है. वे बिंदास होकर बातें कर रही हैं. अनुपम ने आलिया के बारे में कहा कि वह टिपिकल हीरोइन नहीं हैं. चूंकि वह हीरोइनों की तरह नाजो नखरे नहीं दिखा रहे. आलिया की यही स्वभाविकता परदे पर भी नजर आ रही है. निस्संदेह वह आज की लड़की हैं, तो फैशनेबल हैं. मॉर्डन हैं. लेकिन आम हीरोइनों की तरह वह हर वक्त मेकअप ओढ़े नहीं रह रहीं. वे खुद से जुड़ी अफवाहों पर भी बातें करती हैं. आलिया ने शायद यह बेबाकीपन अपने पिता महेश भट्ट से ही हासिल की है. आमतौर पर अभिनेत्रियां कहती हैं कि हां, उन्हें अपने पिता की तरह ही पति चाहिए. लेकिन आलिया ने स्पष्ट किया कि उन्हें महेश भट्ट की तरह पति नहीं चाहिए. शायद आलिया की यह चाहत होगी कि उन्हें वैसा पति मिले, जिसे सिर्फ और सिर्फ उनसे प्यार हो. चूंकि उन्हें सबसे अजीज होना पसंद है और उनकी यही भूख उनसे लगातार अच्छा काम करवा रही है

दिलीप साहब की पाठशाला

दिलीप कुमार साहब की आॅटो बायोग्राफी पढ़ रही हूं. दिलीप साहब की जिंदगी से जुड़े कई दिलचस्प पहलू इस किताब के माध्यम से उनके प्रशंसकों तक पहुंच रहे हैं. दिलीप साहब ने अपनी इस आॅटो बायोग्राफी के एक भाग में इस बात का विशेष वर्णन किया है कि किस तरह उनके लिए अभिनय की पहली पाठशाला देविका रानी बनीं. किस तरह देविका रानी उन्हें समझाया करती थीं कि यह हर एक्टर का हक होता है कि वह अपने निर्देशक से तब तक टेक लेने के लिए कहता रहे, जब तक एक एक्टर पूर्ण रूप से अपने काम से संतुष्ट न हो जाये. एक एक्टर का कर्तव्य है कि उसे अभिनय के फाइनल शॉट से पहले कई बार रिहर्सल करना चाहिए. दिलीप साहब ताउम्र इसी बात पर अमल करते रहे. और शायद यही वजह है कि दिलीप कुमार को हिंदी सिनेमा का सर्वश्रेष्ठ अभिनेता माना जाता है. दिलीप साहब ने अपनी बायोग्राफी में अशोक कुमार जिन्हें वे अशोक भईया कह कर बुलाते थे. उनके साथ अपने अभिनय के अनुभवों को  सांझा करते हुए कहा है कि किस तरह वे दोनों अपने सीन को निभाते हुए पहले से कॉर्डिनेशन रखते थे. दिलीप को कब अशोक को क्यू देना है. किस तरह अशोक कुमार के कहने पर दिलीप साहब भिखारियों को देखने महालक्ष्मी स्टेशन पहुंच गये थे. अभिनय को जिस गंभीरता से दिलीप साहब व अशोक कुमार जैसे अभिनेताओं ने जिंदा रखा था. यह इसी बात से स्पष्ट हो जाता है कि वे किस तरह अपने किरदार को संजीदगी से निभाने के लिए वे अपने काम में डूबे रहते थे. उस दौर में फिल्में कई कई सालों में बनती थीं. शायद इसकी वजह यही रहा करती होगी कि उस वक्त कलाकारों को संतुष्ट होने में वक्त लगता होगा, लेकिन कड़ी मेहनत के बाद जब बड़े परदे पर तालिया बजती थीं तो वाकई उनकी वह लगन और परफेक् शन नजर आती है. आज वह परफेक् शन गौन है. 

रीमेक में संतान

  अनिल कपूर के प्रोडक् शन की नयी फिल्म खूबसूरत के रीमेक में रतना पाठक दीना पाठक वाला किरदार निभा रही हैं. फिल्म के मेकर्स ने यह अच्छी परिकल्पना की है. उन्होंने एक बेटी को उनकी मां का किरदार दिया है.फिल्म उमराव जान के रीमेक में भी जेपी दत्ता ने शबाना आजिमी को शौकत आजिमी वाला किरदार निभाने का मौका दिया था. और शबाना ने उस किरदार को बखूबी निभाया भी है. शबाना की तरह ही रतना पाठक सशक्त कलाकार हैं और वे भी इस भूमिका को बखूबी निभायेंगी. इसमें शक की कोई गुंजाईश नहीं है. फिल्म के ट्रेलर से ही यह स्पष्ट है. रतना में दीना पाठक के कई भाव स्वभाविक रूप से हैं. उसी तरह शबाना में शौकत की तरह संवाद अदायगी का अंदाज है. सो, जब परदे पर रील किरदार को रियल किरदार में दर्शाते हैं तो उसमें एक मौलिकता नजर आती है, जो दर्शकों को लुभाती है. रीमेक के इस दौर में किरदारों के चयन में यह ध्यान रखना रीमेक को और दिलचस्प बना देता है. चूंकि हर वह कलाकार जिनका परिवार अभिनय की दुनिया से जुड़ा है. उसके मन में यह लालसा होती है कि कभी उन्हें अपने पिता या मां के किरदार निभाने के मौके मिले. अभिषेक बच्चन कई बार अपनी यह इच्छा प्रकट कर चुके हैं कि उन्हें अपने पिता अमिताभ बच्चन की किसी पुरानी फिल्म के रीमेक में पिता द्वारा निभाया गया किरदार निभाने का मौका मिले.लेकिन यह संयोग ही है कि सबसे ज्यादा रीमेक फिल्में अमिताभ की फिल्मों की ही बनी है. लेकिन अब तक अभिषेक को यह मौका नहीं मिला है. रणबीर कपूर के अभिनय में  कई बार उनके दादाजी राज कपूर के अभिनय की छाप नजर आती है. शाहिद कपूर के बारे में लोग कह रहे हैं कि वे हैदर में अपने पिता की नकल करते नजर आ रहे. हमें यह समझना चाहिए कि पिता के गुण व भाव बेटे में आना स्वभाविक है. इसे नकल नहीं कहा जा सकता

अभिनेत्री का मेहनताना

रितिक रोशन ने आशुतोष ग्वारिकर की फिल्म मोहनजोदाड़ो के लिए 50 करोड़ रुपये फीस मेहनताना के रूप में मांगा है. खबर है कि रितिक ने फीस के रूप में इतनी बड़ी रकम इसलिए मांगा है, क्योंकि वे फिल्म की प्रॉफिट में कोई हिस्सा नहीं लेंगे. अगर यह खबर वाकई सच होती है तो रितिक रोशन सबसे महंगे अभिनेता में से एक हो जायेंगे. खबर यह भी है कि दीपिका पादुकोण जल्द ही एक फिल्म के लिए 5 करोड़ रुपये मेहनताना के रूप में ले रही हैं. फिल्म ट्रेड एनालिस्ट कोमल नहाटा बताते हैं कि 90 के दशक में अमिताभ बच्चन ने पहली बार अभिनेताओं के मेहनताना में इजाफा करवाया. उससे पहले अभिनेता लाख में काम करते थे. लेकिन अमिताभ ने अपनी फीस 1 करोड़ तय की और उसक े बाद लगातार अभिनेताओं की फीस में इजाफा ही हो रहा है. गौरतलब है कि अब तक अभिनेत्रियों को इतना मेहनताना नहीं मिल रहा. लेकिन चूंकि दीपिका, कैट और टॉप की एक्ट्रेस ने अब मुंह खोलना शुरू किया है. सो, उनके मेहनताने में थोड़ा सुधार जरूर हैं. हाल ही में पाकिस्तानी अभिनेत्री सनम सईद से बातचीत हुई. उन्होंने इस बात पर विशेष जोर डालते हुए कहा कि हमारे यहां एक्ट्रेस और एक्टर में फीस को लेकर कोई अंतर नहीं है. भारत में तो टेलीवुड, बॉलीवुड, बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री या यूं कहें कि पूरी फिल्म इंडस्ट्री की यही दास्तां हैं. हर जगह अभिनेत्रियां अब भी कम ही आंकी जाती हैं. भारत में अब भी अभिनेत्री को टॉप पद पर स्थापित करने में हिचकिचाहट है. अभिनेत्रियां आमतौर पर होने वाले सर्वे में ही सर्वोच्च स्थान पाकर संतुष्ट हो जाती हैं. अब भी मेहनताना को लेकर बहुत बातें नहीं होतीं. उनसे इस संदर्भ में बातें भी करो तो वह सवालों को टालती नजर आती हैं. सिवाय विद्या बालन के जो कि इस बात से बिल्कुल सहमत नहीं कि भारत में अब भी यह फर्क है. 

करन की शुद्धि

सलमान खान ने करन जौहर की फिल्म शुद्धि के लिए हामी भरी है. करन का ड्रीम प्रोजेक्ट है शुद्धि. पिछले कई दिनों से इस फिल्म को लेकर चर्चा चल रही थी. रितिक रोशन और करीना कपूर ने इस फिल्म से जबसे दरकिनार किया. लगातार खबरें आती रहीं कि आमिर खान या शाहरुख खान फिल्म में मुख्य किरदार निभायेंगे. लेकिन अंतत: सलमान खान के नाम पर मुहर लगी है. सलमान खान इन दिनों बेहद सक्रिय हैं. वे अपने मिजाज की फिल्मों के अलावा उन फिल्मों पर भी गौर कर रहे हैं, जो उनकी इमेज बदलने में सार्थक साबित हों. सूरज बड़जात्या की फिल्म के बाद कबीर खान की फिल्म के लिए उन्होंने हां कहा है. और कबीर की एक और रोमांटिक फिल्म वह करेंगे. करन की शुद्धि को हां कहने की भी बड़ी वजह यही रही होगी. चूंकि अब वह मौके गवाना नहीं चाहते. निस्संदेह वह सुपरस्टार हैं और छोटे शहरों में सबसे अधिक लोकप्रिय सुपरस्टार में से एक सलमान ही हैं. लेकिन यह चाहत उनमें भी है कि वे वर्सेटाइल भूमिकाएं निभायें. करन भी कई दिनों इच्छा जाहिर कर रहे थे कि सलमान धर्मा के साथ काम करें. और शुद्धि चूंकि एक ऐसा विषय है, जिसमें वे अपने ही घराने के नवोदित कलाकारों का चयन नहीं कर सकते थे. वे आमिर तो कभी शाहरुख के दरवाजे खटखटाते रहे. चूंकि शुद्धि में जितनी जरूरत स्थापित कलाकार को दिखाने की है, उतनी ही जरूरत लार्जर देन लाइफ की हैसियत रखने वाले स्टार को दर्शाने की भी जरूरत है. हिंदी फिल्मों में वर्तमान में ऐसी तसवीर रितिक, सलमान और अमिताभ प्रस्तुत कर सकते हैं. चूंकि ये कलाकार शारीरिक रूप से भी फिट हैं. सो, करन का यह निर्णय बेहद सही है. अगर वाकई शुद्धि जिस रूप में उपन्यास में रची गयी है. उस तरह बड़े परदे पर चित्रित होती है कि हिंदी सिनेमा की खास फिल्मों में से एक होगी. 

मैरी कॉम व प्रियंका

फिल्म मैरी कॉम के दो पोस्टर जारी हो चुके हैं और दोनों ही पोस्टर में प्रियंका बिल्कुल अलग अवतार में नजर आ रही हैं. उनकी मांसपेशियां देख कर बॉलीवुड जगत के कई कलाकार चौंक रहे हैं. तारीफों के पुल बांधे जा रहे हैं. निस्संदेह तसवीर में जो बात नजर आ रही है. अगर वह हकीकत है तो प्रियंका चोपड़ा की जिंदगी की यह महत्वपूर्ण फिल्मों में से एक होगी. वह पहली बार किसी बायोपिक फिल्म का हिस्सा बन रही हैं. हिंदी फिल्म जगत में बायोपिक फिल्में कलाकार के लिए लकी साबित हुई है. विद्या बालन की जिंदगी में द डर्टी पिक्चर्स सबसे अहम फिल्म है तो राजकुमार राव को फिल्म शाहिद ने स्थापित किया. फरहान अख्तर ने फिल्म भाग मिल्खा भाग में मिल्खा सिंह का किरदार निभा कर  साबित कर दिया कि वे श्रेष्ठ कलाकारों में से एक हैं. सो, उस लिहाज से प्रियंका के लिए मैरी कॉम महत्वपूर्ण है. निस्संदेह जब एक स्पोर्ट्स से जुड़े शख्सियत की जिंदगी को परदे पर उतारा जाता है. तो कलाकार को मानसिक रूप से ही नहीं शारीरिक रूप से भी कई तैयारियां करनी पड़ती है. प्रियंका ने इस फिल्म में अभिनय के लिए वक्त दिया है. उन्होंने मैरी कॉम के साथ वक्त बिताया है. उनकी जिंदगी के कई पहलुओं को मैरी के घर में रह कर समझने की कोशिश की है. सो, पूरी उम्मीद है कि  वह कामयाब रहेंगी. प्रियंका ने पिछले कुछ सालों में कुछेक फिल्मों को छोड़ दें तो विभिन्नताओं वाले ही किरदार निभाये हैं. सात खून माफ भले ही दर्शकों को पसंद नहीं आयी. लेकिन वह अलग मायने में कामयाब फिल्में हैं. हिंदी फिल्मों में नायिकाओं की झोली में वैसे किरदार कम ही आते हैं. इसके अलावा बर्फी की झिलमिल किसी की आंखों से ओझिल नहीं हो सकती. सो, प्रियंका से बेहद उम्मीदें हैं. साथ ही निर्देशक से भी कि वे मैरी की जिंदगी की कहानी से न्याय कर पायें.

किरदार में स्टार


 हाल ही में एक अखबार को दिये इंटरव्यू में अजय देवगन ने स्वीकारा है कि उन्होंने अब तक जितने भी किरदार निभाये हैं. फिल्म जख्म का किरदार उनके लिए बेहद खास था और वह चाहते हंै कि उन्हें वैसी स्क्रिप्ट मिले. लेकिन उन्हें वैसी स्क्रिप्ट नहीं मिल पा रही है. उन्होंने इस इंटरव्यू में जिक्र किया है कि इस फिल्म की स्क्रिप्ट उन्हें इतनी अच्छी लगी थी कि उन्होंने महेश भट्ट से इजाजत मांगी थी. वह उन्हें इस किरदार में खुद ढल जाने दें. उनसे एक्टिंग न करायें. और यही वजह है कि अजय इसे बखूबी निभा पाये और इस फिल्म के लिए उन्हें राष्टÑीय पुरस्कार भी मिला. दिलीप कुमार ने एक दौर के बाद ट्रेजिडी वाली फिल्में इसलिए करनी बंद कर दी थी, क्योंकि वे किरदार से बाहर नहीं निकल पाते थे. फिल्म की शूटिंग के  बाद भी वे निजी जिंदगी में दुखी रहने लगे थे. चूंकि वह किरदार को जीने लगते थे. हाल के दौर में विद्या बालन किरदारों में खुद को डुबोना पसंद करती हैं. वे मानती हैं कि उन्हें द डर्टी पिक्चर्स के किरदार में खुद को ढालने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी थी.चूंकि रेफरेंस बहुत सारे मौजूद नहीं थे. फिल्म कहानी के लिए शूटिंग करने के दौरान उन्होंने यह महसूस किया कि कोई मां जब अपने बच्चे को कोख में ही खो देती है तो उसका दर्द क्या होता है. वह काफी दिन तक उस किरदार से बाहर नहीं निकल पाई थीं. दरअसल, हकीकत यही है कि एक कलाकार के लिए वे ही किरदार उनके अहम और खास किरदार हो जाते हैं, जिसे उन्होंने शिद्दत से जीने की कोशिश की हो. शाहरुख खान स्वीकारते हैं कि चख दे इंडिया में उन्होंने खुद को अपने पिता की जगह रख कर उस किरदार को निभाया था. चूंकि उनके पिता हॉकी के शौकीन थे. फिल्म तलाश के बाद आमिर पैरानॉर्मल एक्ट के बारे में काफी जानकारी हासिल करने लगे थे. इससे स्पष्ट होता है कि किरदार आपको प्रभावित करते हैं

मीडिया- स्टार बदतमीजी

अभी कुछ दिनों पहले श्रद्धा कपूर ने मुंबई के फोटोग्राफर को पोज देने से मना कर दिया था और गुस्से में आकर मुंबई के सारे फोटोग्राफर एकजुट हो गये और उन्होंने तय किया कि वे श्रद्धा की तसवीरें नहीं लेंगे. अंतत: श्रद्धा को माफी मांगनी पड़ी. लेकिन फोटोग्राफर फिर भी नहीं माने. उसके कुछ दिनों बाद ही सलमान खान के बाउंसर ने एक फोटोग्राफर को थप्पड़ मारा और वह फोटोग्राफर जख्मी हो गये. फोटोग्राफर्स ने भी एकजुटता दिखायी और तय किया कि वे सलमान की तसवीरें नहीं लेंगे. उन्होंने सलमान को बैन कर दिया. लेकिन सलमान ने टिष्ट्वटर पर इस बात का माखौल उड़ाया है. उन्होंने साफ कर दिया है कि वे मान जायेंगे अगर मीडिया वाकई उनकी तसवीरें नहीं लेगी तो.सलमान खान इस बात से वाकिफ हैं कि वे सुपरस्टार्स हैं और उनके बिना अखबारों की सुर्खियां कम हो जायेंगी. लेकिन उनका जो यह बर्ताव है. इसके बाद वाकई मीडिया को भी अपनी ताकत दिखानी चाहिए. यह पहली बार नहीं ,जब सलमान के साथ मीडिया की ऐसी स्थिति हुई हो. सलमान चाहते तो दोनों के बीच सेतु का काम कर मामले को रफा दफा कर सकते थे. लेकिन वे मीडिया को हल्के में ले रहे हैं. जो कि सरासर गलत है. फिल्मी मीडिया की भी अपनी इज्जत है. अपना सम्मान है.  अमिताभ बच्चन को भी फोटोग्राफर्स ने कुछ सालों पहले बैन किया था. लेकिन अमिताभ बच्चन ने फोटोग्राफर्स से माफी मांग ली थी. यहां तक कि उनके बेटे अभिषेक बच्चन को भी मीडिया से माफी मांगनी पड़ी थी. दरअसल, बात यहां माफी मांगने या न मांगने की नहीं है. बात सही और गलत की है. मीडिया का काम है, उन्हें उसी तरीके से तसवीरें लेनी पड़ती है. आप उन्हें मना कर सकते. लेकिन हाथ नहीं उठा सकते. सलमान अपनी जिंदादिली दिखाते और वाकई मीडिया का साथ देते तो उचित होता.

अभिनेत्री व अकेलापन


फिल्म किक में मुख्य किरदार निभा रहीं जैकलीन फर्नांडीस से मुलाकात हुई. जैकलीन ने जब फिल्मों में शुरुआत की थी. उस वक्त वे यही सोच कर आयी थीं कि एक अभिनेत्री बनना ज्यादा मुश्किल काम नहीं है. एक एक्ट्रेस बनने के लिए आपको सिर्फ अच्छा दिखना होता है, कुछ डायलॉग बोलने पड़ते हैं और आप कामयाब हो जाती हैं. लेकिन धीरे धीरे उन्हें सिनेमा की समझ हुई और उन्होंने अभिनय की गहराई को समझा. जैकलीन पिछले कुछ सालों में बुरे दौर से गुजरीं. उन्हें फिल्में नहीं मिल रही थीं. और लोगों ने मान लिया था कि अब वह पैकअप करके वापिस श्रीलंका चली जायेंगी. दरअसल, इसकी बड़ी वजह यह भी है कि बॉलीवुड में बाहर से आयी अभिनेत्रियों का करियर बहुत छलांग नहीं पाया है. फिल्म लव आजकल से बड़े बैनर पर लांच हुई गिसेल फिल्मों से तौबा कर चुकी हैं. नरगिस फाकरी को भी खास फिल्में नहीं मिल रहीं. और यही वजह है कि जैकलीन के बारे में भी लोगों का यही नजरिया बन चुका था. जैकलीन ने बताया कि वह खुद बहुत नेगेटिव हो चुकी थीं. और वह स्वीकारती हैं कि एक अभिनेत्री की उम्र बॉलीवुड में बेहद कम हो जाती हैं. यहां सर्वाइव करना बेहद मुश्किल होता है. लेकिन इसी बीच अगर उन्हें अच्छे लोगों का साथ मिले. तो वे स्थिर हो जाती हैं. जैकलीन मानती हैं कि हम अक्सर सुनते हैं कि अभिनेत्री ने आत्महत्या कर ली. दरअसल, अकेलापन एक अभिनेत्री के लिए बहुत बड़ी सजा बन जाती है. लेकिन अगर कुछ अच्छे दोस्त मिल जायें तो आप उससे छुटकारा पा सकते हैं. खासतौर से जब आपका परिवार आपके साथ न हो. दरअसल, यह हकीकत है कि ग्लैमर की दुनिया में कदम रखने के बाद चकाचौंध से दूरी बर्दाश्त कर पाना किसी सेलिब्रिटी के लिए संभव नहीं होता. सो, वे तनाव में आकर कई गलत कदम उठाते हैं. 

इमेज में गिरफ्त

किकू शारदा कॉमेडी नाइट्स विद कपिल में पलक की भूमिका निभा रहे हैं और डांस रियलिटी शो में भी वह किकू शारदा बन कर नहीं बल्कि पलक बन कर इस शो का हिस्सा बने हैं. निस्संदेह किकू को लोकप्रियता पलक के किरदार से ही मिली है. लेकिन वे इस तरह इस किरदार की गिरफ्त में आ चुके हैं कि वे बाकी शोज में भी पलक के लाउड किरदार में ंही नजर आते हैं. फिर चाहे वह अकबर बीरबल हो या फिर एफआइआर. स्पष्ट है कि किकू इस बात से पूरी तरह वाकिफ हैं कि यही सही वक्त है और वे अपनी पलक वाली इमेज को हर तरीके से भुना सकते हैं. हर कलाकार के पास ये मौके उनकी करियर के किसी न किसी मोड़ पर जरूर आते हैं. जब उन्हें ढेर सारे मौके मिलते रहते हैं. शायद यही वजह है कि किकू इस बात से कोई परेशानी नहीं कि झलक में जबकि बाकी सारे प्रतिभागी अपनी वास्तविक छवि में दर्शकों के सामने परफॉर्म करते हैं. वे तब भी पलक बन कर ही रहते हैं. ग्लैमर इंडस्ट्री के ये नुकसान भी हैं, वे कई बार इस कदर किसी किरदार या नाम को लोकप्रिय बना देता है कि चाह कर भी वह कलाकार उससे बाहर नहीं निकल पाते. कुछ साल पहले रमेश सिप्पी से मेरी मुलाकात हुई थी. वह पहली मुलाकात थी. मेरे जेहन में उनकी शोले की ही इमेज थी. सो, मैंने शोले से संबंधित प्रश्न पूछने प्रारंभ किये.उन्होंने बहुत खिझते हुए कहा कि मैं शोले के बारे में बात करके थक चुका हूं. अब उससे बाहर निकलना चाहता हूं. आज भी अमिताभ बच्चन के गिने चुने वही संवाद बार बार दोहराये जाते हैं. लेकिन किसी कलाकार के लिए यह घातक ही साबित होता है. गब्बर सिंह उर्फ अमजेद खान कभी गब्बर की इमेज से बाहर नहीं आ पाये. अमरीश पुरी ने अपनी इमेज तोड़ी और आज वर्तमान में कोई एक इमेज में बंध कर रहना नहीं चाहता, क्योंकि इससे दर्शक ऊब जाते हैं.

निर्देशक कलाकार का रिश्ता

दीपिका पादुकोण का मानना है कि इम्तियाज अली उन्हें उनसे भी बेहतर तरीके से जानते हैं. वे इम्तियाज पर पूरा विश्वास करती हैं. और उनकी वजह से ही वह फिर से रणबीर कपूर के साथ फिल्म करने के लिए तैयार हुई हैं. इम्तियाज ने ही दीपिका को फिल्म कॉकटेल में वेरोनिका का किरदार निभाने के लिए प्रेरित किया था. परिणीति चोपड़ा मानती हैं कि उन्हें हबीब फैजल जितनी बखूबी जानते हैं. उतना कोई नहीं. हबीब फैजल की फिल्म इशकजादे से ही उन्होंने मुख्यधारा की फिल्मों में प्रवेश किया. फिल्म लूटेरा की कामयाबी का पूरा श्रेय निर्देशक विक्रामादित्य मोटवाणे को मिला. सबने इस बात पर हामी भरी कि विक्रमादित्य ने ही सोनाक्षी से इतना बेहतरीन अभिनय कराया. सोनाक्षी की छवि इस फिल्म ने पूरी तरह से बदल कर रख दी थी. आशा पारेख ने हमेशा अपनी सफलता का श्रेय नासीर हुसैन को दिया. वहीदा रहमान गुरुदत्त के फिल्म मेकिंग की फैन थीं. दरअसल, हकीकत यही है कि फिल्में केवल अच्छी कहानियों से ही नहीं बनती. एक कलाकार को एक निर्देशक का वीजन समझना भी उतना ही अनिवार्य है. जितना कि फिल्म की कहानी को समझना. शाहरुख खान ने हाल  ही में एक चैट शो में बताया कि किस तरह हेमा मालिनी ने उन्हें सिर्फ उनकी नाक की वजह से नायक बना दिया. दरअसल, जब निर्देशक के माध्यम से फिल्में दर्शकों तक पहुंचती हैं तो दर्शक भी कहीं न कहीं उससे मोहित होता ही है. निर्देशन का यही सममोहन होता है. विद्या बालन मानती हैं कि फिल्म कहानी में उन्हें भी पूरी कहानी मालूम नहीं थी. लेकिन जिस तरह सुजोय ने कहानी को रचा. विद्या बालन विद्या बागची बनीं. यह पूरी परिकल्पना सुजोय की थी. कभी कभी किसी निर्देशक की अति दर्शकों को चुभती जरूर है. लेकिन यह बेहद जरूरी है कि एक कलाकार और निर्देशक के बीच ऐसा रिश्ता कायम हो.

इफ्तार मिलन


एक बार फिर सलमान खान और शाहरुख खान बाबा सिद्दिकी की इफ्तार पार्टी में गले मिले. और फिर से चारों तरफ यही चर्चा हो रही है. पिछली बार जब सलमान और शाहरुख आमने सामने आये थे तो खास बात यह थी कि दोनों की लड़ाई के बाद पहली बार दोनों आमने सामने खड़े हुए थे. सो, लोगों ने कयास लगाने शुरू कर दिये थे कि अब दोनों दोबारा दोस्त बन जायेंगे. लेकिन पिछले एक साल के दरमियां ऐसा कुछ भी नहीं हुआ. फिर से दोनों का आमना सामना इसी इफ्तार पार्टी में हुआ. जिंदगी चैनल के धारावाहिक में अपने पिता से नाराज बेटी कहती है कि दुश्मनी वह नहीं होती, जो वक्त के साथ खत्म हो जाये या बदल जाये. दरअसल, दुश्मनी के भी अपने रंग रूप होते हैं. यह निर्भर करता है,  कि निभाने वाले इसे किस तरह निभा रहे. सलमान और शाहरुख का दोबारा इफ्तार पार्टी में मिलना इस बार महज एक इत्तेफाक  नहीं हो सकता. इफ्तार के बहाने ही सही अगर दोनों कम से कम साल में एक बार ही सही इस पाक महीने में एक दूसरे को गले लगाते हैं तो कम से कम थोड़ी सकारात्मकता तो दोनों आपस में बांटते ही हैं. यह बात जगजाहिर है कि कभी भी सलमान खान या शाहरुख खान ने मीडिया में सार्वजनिक रूप से एक दूसरे के लिए आग नहीं उगला. आज भी सलमान को जब भी मौका मिलता है. वह शाहरुख की तारीफ करते नहीं थकते. इससे यह तो स्पष्ट है कि कम से कम अब दोनों के मन में एक दूसरे के लिए कड़वी बातें नहीं. भले ही दोनों के संबंध एक से न हों. लेकिन दोनों दुश्मनी भी बखूबी निभा रहे हैं. दोनों पर कटाक्ष करने की बजाय एक दूसरे को अपने काम से हरा जीता रहे हैं. खान बंधू के इन चाहनेवालों के लिए और मीडिया के लिए अब सलमान खान की फिल्मों के इंतजार के साथ ही हर साल बाबा सिद्दिकी की इफ्तार पार्टी का इंतजार जरूर रहेगा. 

'वीडियो एलबम का वह दौर

कुछ दिनों पहले पीवीआर जूहू से लौटने के दौरान एक महिला सेलिब्रिटी पर नजर गयी.  हेमा सरदेसाई के गीत पिया से मिल के आये नैन में वे नजर आयी थीं. बाद में कुछ फिल्मों में भी नजर आयीं. उसी दिन उसी जगह एक और अभिनेत्री पर नजर गयीं. इन्हें आपने हाथों में लिख दे मेहंदी से सजना का नाम...में देखा है. इन दो अभिनेत्रियों को देखने के बाद वाकई मैं अचानक उस दौर में चली गयीं, जब वीडियो एलबम बेहद लोकप्रिय हुआ करते थे. डीवीडी या सीडी का दौर नहीं था वह. कैसेट हुआ करते थे. मैं उस वक्त स्कूल में थी. बोकारो में. मेरा पूरा परिवार और मेरे पड़ोस की सहेलियों में उन वीडियो एलबम के बारे में ही चर्चा होती रहती थी. लकी अली, सोनू निगम, बाली सागु, जैसे कई नाम हैं, जिनसे मेरा जुड़ाव वीडियो एलबम के माध्यम से ही हुआ. वीडियो एलबम देख कर ही एहसास हुआ कि प्यार के कितने रूप हो सकते हैं. चूंकि अधिकतर एलबम प्रेम पर आधारित होते थे. शाहिद कपूर की पहली झलक वीडियो एलबम से ही मिली. मुझे अच्छी तरह याद है, उस वक्त प्रेमी युगल जो अपनी बात अपनी प्रेमिका तक पहुंचाना चाहते थे. वे इन्हीं वीडियो एलबम के कलेक् शन के कैसेट गिफ्ट किया करते थे. इसी दौर में जॉन अब्राह्म पहली बार परदे पर नजर आये थे. पकंज उधास के छम छम करके कहते हैं पायलिया के बोल..., चांदी जैसा रंग है तेरा...जैसे गीत लोकप्रिय हुए. सच कहूं तो संगीत की दुनिया से जुड़ने की शुरुआत इन्हीं वजहों से हुई. मलायैका अरोड़ा जैसी तमाम अभिनेत्रियों ने अपनी पहचान इसी माध्यम से बनायी. फिल्मों में एंट्री का यह खास माध्यम होता था. स्मृति ईरानी, द्रष्टि धामी समेत कई टीवी अभिनेत्रियां आपको पुराने वीडियोज में नजर आ जायेंगी. वह दौर भी गीत संगीत का बेहतरीन दौर था. यह सुनापन अब भी छोटे परदे पर कचोटता है. क्षति है ये हमारी

प्रीति का माखौल


प्रीति जिंटा पिछले कई हफ्तों से चर्चे में है. चर्चे की वजह यह है कि उन्होंने अपने पूर्व प्रेमी के खिलाफ मुकदमा किया है. प्रीति के अनुसार नेस वाडिया ने उनसे बदतमीजी और छेड़खानी करने की कोशिश की है. प्रीति लगातार सोशल नेटवर्किंग साइट्स पर भी चर्चा का विषय बनी हुई हैं. कई लोगों ने प्रीति के विरोध में अपने फेसबुक स्टेट्स भी अपडेट किये हैं तो कई ने प्रीति का मजाक भी उड़ाया है. मीडिया में भी उनकी खिल्ली ही उड़ाई जा रही है कि वे ये सब सिर्फ पब्लिसिटी के लिए कर रही हैं. दरअसल, हकीकत यही है कि कोई महिला सेलिब्रिटी या कोई भी महिला जब इस तरह आकर एक बड़ा कदम उठाती हैं तो उन्हें इस तरह के ताने झेलने ही पड़ते हैं. शायद यही वजह है कि तनु शर्मा जैसी महिलाएं मजबूर हो जाती हैं और अंत में उनकी सच्चाई सबके सामने आती हैं. चूंकि ज्यादातर मामलों में लड़कियों का मजाक ही बनाया जाता है. और सबसे पहले तो महिलाओं के चरित्र पर ही उंगली उठा दी जाती है. प्रीति ने अपने टिष्ट्वट में साफ किया है कि उनके लिए पब्लिसिटी कभी खास मुद्दा नहीं रहा. हालांकि कोई इस बात पर विश्वास नहीं करेगा. चूंकि मरते दम तक पब्लिसिटी  स्टार का पीछा नहीं छोड़ती. लेकिन कम से कम प्रीति के अब से पहले भी उठाये गये महत्वपूर्ण कदम को याद रखा जाना चाहिए. प्रीति कभी भी चुप नहीं रहीं. उन्होंने हमेशा ठोस और कठोर कदम उठाये. और ऐसा भी नहीं है कि उनकी आदत बात बात में मुकदमा करने की है. आप पूर्व प्रेमी हैं तो क्या? डराने धमकाने का हक आपको किसी ने नहीं दिया. एक महिला के साथ की गयी बदसलूकी कानूनन अपराध है. सो, प्रीति के इस कदम की सराहना होनी चाहिए कि वे शांत न रह कर टक्कर ले रही हैं. अन्य अभिनेत्रियों को भी उनसे सीख लेनी चाहिए.वह निडर हैं. तो उस निडरता का सम्मान किया जाना चाहिए.

अनुपम का नया शो


अनुपान जल्द ही कुछ भी हो सकता है नामक शो लेकर कलर्स चैनल पर आ रहे हैं।  इस शो में हमारे लिए सेलिब्रिटी अनुपम के लिए उनके दोस्त नजर आएंगे।  पहले एपिसोड में शाहरुख़ खान आ रहे हैं।  शो की लॉन्चिंग के दौरान अनुपम ने बताया कि वे इस शो में फ़िल्मी हस्तियों की निजी जिंदगी से जुड़े किसी भी विवाद के बारे में बातें नहीं करेंगे।  चूँकि इस शो का मकसद ऐसी बातों को जानना है जिसके बारे में आम लोगों को जानकारी नहीं मिल पाती है।  जैसे शाहरुख़ ने बताया कि उन्हें जिंदगी में एक बात से काफी डर लगता है की वे बार बार अपनी बाहें फैलाते रहते हैं।  उन्हें डर लगता है कि कोई उनकी बाहें आकर न कांट दें।  वाकई शाहरुख़ जैसे सुपरस्टार के मुख से सुनी ये बात हम मजाकिया तौर पे ले सकते हैं।  लेकिन हकीकत यही है कि खास लोगों की जिंदगी में डर ऐसे ही अजीबोगरीब होते हैं।  आमिर खान बताते हैं कि वे जब काम कर रहे हो और अचानक किरण का फोन आ जाए तो वो चौंक जाते हैं।  चूँकि वे जानते हैं कि किरण काम पर उन्हें परेशान नहीं करतीं और अगर फोन आया है तो निशिचित्तौर कोई बात हो सकती है।  खुद अनुपम ने बताया कि उन्हें अपनी याददाश्त चले जाने का डर सताता है।  मैंने गांधी तो नहीं मारा के दौरान उन्होंने अल्जाइमर के बारे में इतना ज्यादा रिसर्च कर लिया था कि वे डरने लगे थे कि कही उन्हें भी ये बीमारी न हो जाए।  एक दिन सुबह उन्हें मन्त्र याद नहीं आरहे थे तो वे मान बैठे कि वे याददाश्त  खो बैठे हैं।  तो इस शो के माध्यम से कुछ ऐसी ही चुनिंदा बातें दर्शकों के सामने लाने की कोशिश है अनुपम की।  मैंने एक सवाल अनुपम से पूछा कि ऐसी क्या वजह है की जब करन जोहर कोई सवाल पूछते हैं या अनुपम खेर कोई शो लेके आते हैं तो सेलेब्रिटीज हर सवाल का जवाब देते हैं।  लेकिन अगर मीडिया ये सवाल करे तो वो नाराज हो जाते हैं।  उनका जवाब था चूँकि हम दोस्त हैं आप खुल कर किसी से तभी अपनी बातें शेयर करते हैं जब आप उनके दोस्त बन जाते हैं।   जरुरी है।  दरअसल यह सच्चाई है की हम उनसे ही अपनी बातें शेयर करते हैं जिन्हे हम दोस्त मानने लग जाते हैं।  पूरी उम्मीद है की अनुपम इस शो  माधयम से हमें और भी कई नयी बातों से अवगत कराएँगे 

बॉलीवुड व bhagya ke सितारें


आयुष्माना खुराना को फिल्म विकी डोनर से बॉलीवुड में एंट्री मिली. न सिर्फ एंट्री मिली, बल्कि इस फिल्म ने कामयाबी हासिल की और प्रयोगात्मक सिनेमा में नया अध्याय जोड़ा. इसी साल फिल्म इशकजादे के लिए परिणीति चोपड़ा को उस साल के हर अवार्ड समारोह में नवोदित अभिनेत्री के लिए कई अवार्डस मिले. और फिलवक्त ये दोनों कलाकार एक साथ किसी फिल्म में काम नहीं कर रहे. मगर जी सिने स्टार की खोज में वे मेंटर के रूप में नजर आ रहे हैं. आयुष्मान ने इसी शो की लांचिंग में बताया कि किस तरह उन्हें इसी शो के पहले संस्करण में रिजेक्ट कर दिया गया था. और आज उसी शो में वे मेंटर के रूप में उपस्थित हैं. वाकई आयुष्मान के साथ बिल्कुल किसी फिल्म की कहानी की तरह टिष्ट्वस्ट आया. वही दूसरी तरफ परिणीति चोपड़ा कभी अभिनेत्री बनने का ख्वाब नहीं देखती थीं. लेकिन एक दिन आदित्य चोपड़ा की नजर गयी और वह अभिनेत्री बन गयीं. इन दोनों कलाकारों की कहानियों को देखें, तो दोनों ही कहानियां दरअसल, बॉलीवुड की दुनिया की सच्चाई को दर्शाते हैं कि यहां किसी के लिए मेहनत से आगे बढ़ना लिखा है तो किसी के लिए लक है. मसलन, सितारों की दुनिया में शामिल होने के लिए मेहनत के साथ साथ भाग्य भी अहम हैं. हां, सितारों की दुनिया में शामिल होने के लिए आपके सितारों का बुलंद होना भी जरूरी है. बहरहाल, जी सिने स्टार ने यह बेहतरीन निर्णय लिया है कि वे प्रतिभागियों को इंडस्ट्री में सक्रिय कलाकारों से बातचीत करायेंगे. ताकि वह अवगत हो सकें. चूंकि वर्तमान में यह बेहद जरूरी है कि आप थ्योरी नहीं, प्रैक्टिकल में दुनिया देखें. यह जानना बेहद जरूरी है कि इंडस्ट्री में किस तरह काम होता है. फिल्में जब फ्लोर पर जाती हैं तो एक कलाकार को कितनी मेहनत करनी होती है. सो, सक्रिय कलाकारों के अनुभव उन्हें जानने ही चाहिए.

जिंदगी गुलजार है


 वक्त रात के 1 बज रहे. टीवी का रिमोट हाथ में. अचानक हाथ एक चैनल पर ठहरता है. वजह 10 मिनट में  ही उस चैनल में नयेपन का एहसास होता है. कोई शोर शराबा नहीं. कोई चकाचौंध नहीं. जबरन तड़का परोसने की भी कोशिश नहीं और उन्हीं चंद लम्हों में दिल जीत लिया. जीटीवी की नयी पेशकश जिंदगी वाकई छोटे परदे के नियमित दर्शकों को जिंदगी प्रदान कर रही. सच है कि आंखों को वीजा नहीं लगता. सरहद पार की कहानियों को जो रास्ता जीटीवी और जिंदगी चैनल की सोच रखने वाली शैलजा केजरीवाल ने की है. दरअसल, कई सालों के बाद वास्तविकता में यह नयी क्रांति आयी है. इसे क्रांति कहते हैं. शैलजा ने उन तमाम लोगों के चेहरे पर तमाचा लगाया जो कहते फिरते हैं कि दर्शक यही देखना चाहते. पिछले कई सालों से छोटे परदे पर ग्लैमर के नाम पर केवल भव्य सेट का दर्शन करानेवाले मेकर्स को अब सतर्क होना चाहिए. जिंदगी ने दस्तक दे दी है. जिंदगी चैनल के पास तहजीब है, सोच है. टीवी के लिए एक नयी जुबान है. शैलजा के इस सोच की तारीफ होनी चाहिए कि उन्होंने पाकिस्तान और भारत के बीच की खाई को मिटाने के लिए इतनी बेहतरीन नींव रखी. गौर करें तो पाकिस्तान के धारावाहिकों में या तो प्रेम कहानी, परिवार की कहानी या फिर समाज की कहानी दिखा रहे. इससे प्रतीत होता है कि वहां के मेकर्स की सोच इस बात को कितनी अच्छी तरह व्यक्त करते हैं कि हां, सिनेमा और टीवी का एक फर्ज समाज के लिए सोचना और समाज की कहानियों को दिखाना भी है. वहां के शोज देखें. वहां के शोज के सेट, कलाकारों की अदाकारी. उनके पहनावे. कोई दिखावा नहीं. सिर्फ ज्यों का त्यो हम तक एक सच्चाई पहुंच रही. और हमें इसे जरूर स्वीकारना चाहिए. वर्षों बाद एक नयी कली और उम्मीद की किरण लेकर आयी है ये जिंदगी. तहे दिल से स्वागत करें.

सलीम खान का प्रयास


हाल ही में लीजेंडरी लेखक सलीम खान के बारे में एक और जानकारी मिली. उन्होंने बैंड स्टैंड को साफ करने के लिए एक अलग जिम्मेदारी उठाई है. उन्होंने तय किया है कि वे किसी सरकार का इंतजार नहीं करेंगे. उन्होंने वहां कचरा उठाने वाले दो लड़कों को एक दिन अपने घर पर बुला कर कहा कि अगर वे सही तरीके से साफ सफाई करते हैं तो वे उन्हें आम तौर पर मिलने वाले मेहनताना देंगे और वे खुश हैं कि उन्हें कामयाबी भी मिल रही है. सलीम खान का मानना है कि उन्हें सिनेमा ने बहुत कुछ दिया है. और अब उनके पास काफी वक्त है. और वह उस वक्त का इस्तेमाल अब समाज के लिए करना चाहते हैं. उनका समाज सेवा करने का अंदाज औरों से अलग है. उनका मानना है कि हमें शुरुआत खुद से ही करनी होगी. बैंड स्टैंड मुंबई के उसी इलाके में स्थित है, जहां बॉलीवुड के ही नहीं, बल्कि कई रयिशों के घर हैं. वहां लोग पैसों से अमीर हैं. मगर शायद दिल से नहीं.वे सभी मिल कर भी अगर चाहें तो वे इस जगह को और खूबसूरत बना सकते हैं. लेकिन मुंबई में लोगों के पास वक्त नहीं...ऐसा यहां के लोग मानते हैं. अक्षय कुमार भी आये दिन उन लोगों को आगाह करते हैं, जो सड़कों पर गंदगी फैलाते हैं. और वे भी कुछ प्रयास करते रहते हैं. चूंकि सलीम खान इस प्रयास में आगे आये हैं तो उन्हें अब कई लोगों का साथ मिल रहा है. सलमान ने एक बार कहा था कि मछली के बच्चों को कोई तैरना नहीं सिखाता. यह हकीकत है कि सलीम खान के जीन में ही समाज सेवा है और वे छोटे प्रयासों से आगे बढ़ना और बढ़ाना चाहते हैं. दरअसल, वर्तमान में यह जरूरत है कि बॉलीवुड के सेलिब्रिटिज ऐसे कामों के लिए आगे आयें. तभी ज्यादा से ज्यादा लोग उन्हें सुनेंगे और उस पर अमल करने की कोशिश करेंगे. सो, इस सोच को और आगे ले जाने की जरूरत है.

विश्वास का रिश्ता


रणबीर कपूर ने एक बार अपनी बातचीत में इस बात का जिक्र किया कि उनके चाचा राजीव कपूर रणबीर के कितने अच्छे दोस्त हैं. और दोनों में कितनी ज्यादा बातचीत होती है. राजीव किस तरह रणबीर कपूर का ख्याल रखते हैं और केवल रणबीर का ही नहीं बल्कि परिवार के हर बच्चे का ख्याल वह सबसे ज्यादा रखते हैं. नवोदित कलाकार अरमान जैन, जिनकी फिल्म लेकर हम दीवाना दिल भी जल्दी ही रिलीज होनेवाली है. उन्होंने भी बताया कि वे घर में सबसे करीब अपने मामा राजीव के ही हैं. उन्होंने राजीव को ही सबसे पहले बताया कि वह अभिनेता बनना चाहते हैं. अरमान की फिल्म के म्यूजिक लांच पर वे मौजूद भी थे और उनके चेहरे के भाव बता रहे थे कि वे कितने खुश हैं. दरअसल, राजीव के अपने बच्चे नहीं हैं. लेकिन उनमें वह पिता का प्यार, अपनों के लिए अपनापन कम नहीं हुआ है. वह इसे नकारात्मक तरीके से लेने की बजाय सकारात्मक तरीके से ही लेते हैं और वे कामयाब व्यक्ति की भूमिका निभा रहे हैं. हर परिवार में आपका कोई न कोई हमराज, दोस्त होता है. जिससे आप अपने सारे सुख दुख बांटते हैं. यह रिश्ता खून के आधार पर नहीं, विश्वास के आधार पर बनता है. राजीव ने अपने परिवार के बच्चों के साथ वही विश्वास कायम किया है. भले ही वह फिल्मों में कामयाब नहीं रहे. लेकिन इसका यह कतई अर्थ नहीं है कि वे कामयाब व्यक्ति नहीं. उनकी यह सफलता ही है कि उनके परिवार के बच्चे उनकी इतनी तारीफ कर रहे. इसका अर्थ है कि अच्छे इंसान हंै वह. कुछ इसी तरह अर्जुन कपूर उनकी बहन और सोनम कपूर के बेहद करीब उनके चाचा संजय कपूर हैं. वे भी फिल्मों में नाकामयाब हैं. लेकिन वे अपने परिवार का लाड़ले हैं. आमतौर पर इन नाकामयाब अभिनेताओं के बारे में हमें जानने की दिलचस्पी ही नहीं होती. और हम उनके इस अच्छे पक्ष से अज्ञात ही रह जाते हैं.

काबुलीवाला का लौटना


फ्रेंच पटकथा लेखक जीन क्लोडे कैरीइरे ने प्रोडयूसर सुनील ढोशी, अनुराग कश्यप, शर्मिला टैगोर और एड मेकर पीयूष पांडे के संयोजन में निर्णय लिया है कि वे पुरानी लघुकथाओं को कहानियों का रूप देंगे. जीन का मानना है कि अगर शेक्सपीयर के काम को बार बार एडॉप्ट किया जा सकता है और बार बार उन पर नयी फिल्में बन सकती हैं तो फिर टैगोर की कहानियों को हम नया रूप क्यों नहीं दे सकते. जीन ने तय किया है कि रवींद्रनाथ टैगोर की कहानी काबुलीवाला को वह परदे पर जीवित रूप प्रदान करेंगे. और इसी तरह वे और भी कहानियों को बड़े परदे पर उतारेंगे. निस्संदेह यह बेहतरीन शुरुआत है. अच्छी बात यह है कि जैसे हिंदी फिल्ममेकर शेख्सपीयर से बहुत ज्यादा प्रभावित रहते हैं. भारत से बाहर भारतीय लेखकों को पसंद किया जाता है. जीन ने टैगोर की कहानियों की अहमियत को समझा है. यह शुुरुआत एक अच्छी शुुरुआत है. चूंकि ऐसी कई कहानियां हैं, जो हमसे अछूती हैं. उन्हें इस माध्यम से हम तक पहुंचाया जायेगा. यूटयूब पर इन दिनों कबीर के दोहे, वाणी को नीरज पांडे कबीर कैफे के रूप में एक नया रूप दे रहे हैं. इसे म्यूजिकल रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है और यह भी बेहद रोचक है. भारत में ऐसे सृजनात्मक पहल की जरूरत है. चूंकि यह बेहद जरूरी है कि हम पुरानी बातों, किस्से कहानियों को याद करें. भले ही उसके नये कलेवर में प्रस्तुत किया जाये. लेकिन मूल बातें वही रहें.कुछ सालों पहले रीमिक्स गानों का चलन शुरू हुआ था. इससे वे गाने भी लोकप्रिय हुए, जिनके ओरिजनल गीत लोगों ने देखे सुने ही नहीं थे. कुछ लिहाज में भले ही रीमिक्स ने संगीत की दुनिया को हानि पहुंचायी. लेकिन अगर इस लिहाज से देखें तो उन्होंने पुरानी यादों को तरोताजा किया. इन दिनों तो प्रासंगिकता को बरकरार रखते हुए नये कलेवर में अच्छी चीजें परोसी जा रहीं.

अभिनेत्री का हक


बिपाशा बसु को इस बात से तकलीफ हुई है कि उन्हें फिल्म हमशकल्स में खास भूमिका नहीं मिली. उन्होंने अपने गुस्से का इजहार टिष्ट्वटर पर किया तो फिल्म के निर्माता वासु भगनानी ने घोषणा कर दी कि वे भविष्य में कभी बिपाशा के साथ काम नहीं करेंगे. हालांकि बिपाशा को फिल्म में उतने ही दृश्य मिले हैं, जितने बाकी दो अन्य अभिनेत्रियों को. चूंकि सच्चाई यह है कि हिंदी फिल्मों में अभी भी महिला प्रधान फिल्म न हो तो सारे दृश्य अभिनेताओं के खाते में ही जाते हैं. फिल्म धूम 3 में गौर करें तो कट्रीना को कितने दृश्य मिले हैं. उन्हें फिल्म के गानों में प्राथमिकता से दिखाया गया है. लेकिन फिल्म में नहीं. पूरी फिल्म में आमिर ही आमिर नजर आये हैं. फिल्म हॉलीडे में भी सोनाक्षी सिन्हा केवल नाच गाने के लिए ही नजर आती हैं. फिल्म बुलेट राजा में भी उनका काम बस गानों तक ही सीमित था. हिंदी फिल्मों में आप एक सुपरस्टार अभिनेता के साथ एक सुपरस्टार अभिनेत्री को चंद दृश्यों में देख सकते हैं. लेकिन किसी भी महिला प्रधान फिल्म में अब तक किसी सुपरस्टार ने काम नहीं किया है और आगे भी वे नहीं करेंगे. बिपाशा बसु ही नहीं, बल्कि हर अभिनेत्री को वाकई बराबरी का दर्जा मांगना ही चाहिए. ऐसे में अगर परिणीति चोपड़ा और विद्या बालन जैसी अभिनेत्रियों ने ठान लिया है कि वे बड़े स्टार्स के साथ काम नहीं करेंगी तो उनका निर्णय बिल्कुल सही है. कट्रीना कैफ और खासतौर से  सोनाक्षी सिन्हा को जरूर सीख लेनी चाहिए. चूंकि एक के बाद एक सोनाक्षी फिल्मों में केवल कठपुतलियों की तरह ही नजर आ रही हैं. अभिनेत्रियों को स्थान मिलेगा. जब सारी अभिनेत्रियां स्टार्स को अहमियत देना छोड़ेंगी. वरना, स्थिति कुछेक दृश्यों तक ही सिमट जायेगी. जो काम बिपाशा ने किया है. वही बात अगर कोई सुपरस्टार कहता तो क्या वासु की यही प्रतिक्रिया होती. शायद नहीं.