20140218

अंतरराष्टÑीय स्तर की सोच


 पिछले दिनों रेल से सफर करते हुए एक बेहतरीन शख्स से दोस्ती हुई. वह पेशे से तो मार्केटिंग के क्षेत्र में हैं. लेकिन उन्हें शौक शहरों को घूमने और एंटिक्स एकत्रित करने का है. उनका यही शौक उन्हें हर बार ऐसे स्थानों पर लिये जाता है, जहां वे एंटिक्स संग्रहित कर सकें. वे पेशे को खुद पर हावी नहीं होने देते. बातचीत के दौरान उनसे कई फिल्मों पर भी बातचीत हुई. फिल्मों को लेकर उनकी एक बात जो मुझे बेहद सटीक लगी वह यह कि उन्होंने जिस तरह अनुराग कश्यप की फिल्में और अनुराग कश्यप को परिभाषित किया. शायद ही इससे बेहतरीन जवाब मैंने आज तक किसी से सुना था. उन्होंने कहा कि अनुराग कश्यप हिंदी सिनेमा के वास्तविकता में लीक से अलग हट कर काम करनेवालों में से हैं. औैर अनुराग कश्यप का दिमाग उतना ही टिष्ट्वस्टेड है, जितना हॉलीवुड के निर्देशकों का होता है. और अनुराग की यह कोशिश होती है कि भारत के दर्शक भी उनके उस टिष्ट्वस्ट को समझें और उनकी फिल्मों को स्वीकारें. लेकिन चूंकि आज भी भारत में खासतौर से हिंदी सिनेमा में वैसे दर्शक बन नहीं पाये हैं. इसलिए अनुराग अब भी आम लोगों के निर्देशक नहीं बन पाये हैं. वाकई, उन्होंने एक अच्छा नजरिया प्रस्तुत किया. अनुराग आज अंतरराष्टÑीय स्तर पर इसलिए कामयाब हैं, चूंकि वे  घूमावदार (टिष्ट्वस्टेड) फिल्में बनाते हैं . उनकी फिल्में सीधे तौर पर कोई बात नहीं कहती. लेकिन अगर आप गौर करें और गहराई में जायें तो वे बारिकियों से कई बातों को कह जाते हैं. हां, यह सच है कि उनकी फिल्में हिंदी सिनेमा के दर्शक समझ नहीं पा रहे. हालांकि गैंग्स आॅफ वासेपुर बहुत हद तक आम दर्शकों को भी अच्छी लगी. लेकिन हिंदी सिनेमा वह चुनिंदा निर्देशकों में हैं, जिन्हें फिल्मों की समझ है और जो वाकई आम फिल्मों से जुदा कुछ फिल्में बनाने में यकीन रखते हैं.

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