20130629

अम्माजी की इमेज को तोड़ना चाहती हूं : मेघना


लोग उन्हें अम्मा जी के रूप में ही जानते हैं. लेकिन इन दिनों जिस तरह वे झलक दिखला जा के मंच पर धमाल मचा रही हैं. जज के साथ साथ दर्शक भी चकित हैं. दरअसल, मेघना मल्लिक खुद चाहती हंै कि वह अम्माजी की इमेज तोड़ कर और भी कई प्रयोग करें. पेश है उनसे हुई बातचीत के मुख्य अंश
मे  घना ने अपने पिछले परफॉरमेंस से तीनों दर्शकों का दिल जीता. आखिर झलक दिखला जा चुनने की क्या थी वजह. बता रही हैं खुद मेघना
कुछ नया करने की कोशिश
निस्संदेह मुझे अम्माजी के किरदार से जो लोकप्रियता मिली और झलक दिखला जा जैसे शो मुझे आॅफर हुए. इसकी वजह साफ है कि इसी शो ने मुझे असल पहचान दिलायी. लेकिन अब मैं अपने काम और अभिनय के साथ थोड़ा प्रयोग करना चाहती हूं. चाहती हूं कि किरदार थोड़ा अलग हो. और अब कुछ नया ट्राइ करूं. यही वजह रही कि मुझे जब यह शो आॅफर हुआ तो मैंने तुरंत हां कह दी. क्योंकि डांस एक ऐसा फॉर्म है, जो आपको खुशी देता है. मुझे डांस करना हमेशा से पसंद है और झलक से बेहतर और कौन सा मंच होता . सो, मैंने फौरन हां कह दी.
तीनों जज के कमेंट से हुई खुश
पिछले हफ्ते मैंने झलक में जो परफॉरमेंस दिया. दर्शकों को और खासतौर से तीनों जज को बेहद पसंद आया. मैंने आंटीजी पर किया था परफॉर्म. अब अगर यह बातचीत प्रकाशित होते होते मैं शो से बाहर भी हो जाऊं तो तकलीफ नहीं होगी. क्योंकि माधुरी दीक्षित जैसी अभिनेत्री आपके काम की तारीफ करती है तो सुकून मिलता है. करन जौहर ने मुझे बताया कि उनकी मम्मी को मेरा शो काफी पसंद था और मेरा किरदार भी तो मुझे बेहद खुशी हुई. रेमो सर तो डांस के मास्टर हैं. उन्होंने मुझे और सेवियो को बहुत अच्छे रिमार्कस दिये हैं. मैं डांसर नहीं. लेकिन जिस तरह मुझे अच्छे कांप्लीमेंट मिल रहे हैं. मैं लगातार अच्छा करने की कोशिश करती रहूंगी.
टीवी में आॅप्शन कम
मैं मानती हूं कि टेलीविजन में आप अपने किरदार को बहुत दिनों तक जीवित नहीं रख पाते. चूंकि लोग धीरे धीरे आपको भूलने लगते हैं. मैंने खुद राधी की बेटियां से करियर शुरू किया, फिर हर घर कुछ कहता है, तुझको है सलाम जिंदगी, कागज की कश्ती जैसे शोज किये. लेकिन पहचान लाडो ने ही दिलायी. लाडो जैसे शो बार बार नहीं बनते. सो, डेली सोप अभी दिमाग में नहीं है.
पड़ीं कई गालियां
अम्माजी के किरदार ने मुझे जितनी लोकप्रियता दी. उतनी गालियां भी पड़ी. कई लोग मुझे वास्तविक जिंदगी में भी यही समझने लगे कि मैं खड़ूस हूं. कई एनजीओ की महिलाओं ने मुझे डराया धमकाया भी था.व्यक्तिगत रूप से. मैं एक मॉल में थी. जब एक महिला ने आकर मुझे खूब खरी खोटी सुनाई थी कि मैं लड़कियों के साथ ठीक नहीं करती. उस वक्त खुशी मिलती थी कि मेरा काम इस कदर लोगों को प्रभावित कर रहा है. लोग नफरत के रूप में ही सही मुझे प्यार ही दे रहे हैं. 

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