20130429

सिनेमा ने कैसे शहर गढ़े


अनुप्रिया -उर्मिला


गब्बर सिंह जब घोड़े पर सवार होकर आता था तो रामगढ़ में सन्नाटा छा जाता था. वर्ष 1975 से पहले रामगढ़ रांची के निकट स्थापित एक छोटे से स्थान का ही नाम था. जिससे पूरी दुनिया वाकिफ नहीं थी. लेकिन फिल्म शोले के बाद रामगढ़ शोले के रामगढ़ के रूप में विख्यात हुआ. शोले बनने के बाद अब जब भी रामगढ़ की चर्चा होती, लोग उसे शोले का रामगढ़ ही मानते हैं. फिल्म गुलाम के हिट गीत आती क्या खंडाला से पहले मुंबई व महाराष्टÑ से दूर रहनेवालों को शायद ही जानकारी थी कि खंडाला नामक कोई स्थान भी है. लेकिन फिल्म के एक गीत ने इस स्थान को लोकप्रिय बना दिया. सज्जनपुर , पालनखेत, मांडवा जैसे ऐसे कई स्थान हैं, जो सिनेमा की ही देन हैं. इन स्थानों को लोग आमतौर पर नहीं जानते थे. लेकिन फिल्मों ने इन शहरों को गढ़ा है. कुछ स्थान तो वाकई थे, लेकिन परिचित नहीं थे. सिनेमा ने उन्हें परिचित बनाया तो कुछ शहरों को फिल्मों ने खुद गढ़ा है. दरअसल, हिंदी सिनेमा में निर्देशकों ने अपनी सहुलियत और फिल्म की कहानी के मुताबिक सिनेमेटिक लिबर्टी लेते हुए इन स्थानों का इस्तेमाल किया. कुछ वास्तविक स्थान रहे तो कुछ नाम गढ़े गये. दरअसल, किसी भी फिल्म के महत्वपूर्ण तत्व में शहर की अहम भूमिका है. चूंकि कोई भी फिल्म किसी शहर की पृष्ठभूमि के बगैर अपनी कहानी नहीं कहता. निस्संदेह मुंबई व दिल्ली हमेशा से ही फिल्मकारों का पसंदीदा शहर रहा है. लेकिन ऐसे भी कई अनोखे और अलग तरह के शहर रहे, जिन्हें फिल्मकारों ने अपनी फिल्मों के लिए चुना और ये फिल्म ही उन शहरों की पर्याय बनी. हाल ही में अपने दोस्तों के साथ हमें अलीबाग जाने का मौका मिला अलीबाग मुंबई के टूरिस्ट प्लेसेज में से एक है. अलीबाग जाने के लिए मांडवा के बंदरगाह पर ही मुंबई से जानेवाली शीप रुकती है. हमारे साथ शीप में मौजूद लगभग सभी लोग मांडवा का नाम बार बार पुकार रहे थे और फिल्म अग्निपथ के सारे संवाद दोहरा रहे थे. यह फिल्म अग्निपथ में मांडवा गांव के इस्तेमाल का ही नतीजा था कि आज भी दर्शक मांडवा के नाम का जिक्र होते ही फिल्म की कहानी में खो जाते हैं. यह फिल्म की लोकप्रियता का ही कारण है कि आज अलीबाग के साथ साथ मांडवा का गांव भी हर किसी की जुबां पर है. सिनेमा के 100 सालों में वाकई सैकड़ों शहरों के नाम ऐसे हैं, जो फिल्मों की वजह से अस्तित्व में आये. कुछ नाम आज भी  स्थापित हैं
 शोले का रामगढ़
रमेश सिप्पी ने  कर्नाटक का रम्मनागढ़ स्थान फिल्म शोले के लिए चुना. इसकी खास वजह यह थी कि यह स्थान पूरी तरह से पहाड़ों से घिरा था और शोले की कहानी के मुताबिक यह स्थान बिल्कुल उपयुक्त था. चूंकि फिल्म में डाकू व गांव वालों की कहानी कहनी थी. और ऐसे माहौल के लिए यह स्थान बिल्कुल उपयुक्त था. फिल्म शोले की पूरी शूटिंग इसी स्थान पर हुई थी. रमेश सिप्पी ने ही इसे रामगढ़ का नाम दिया था. आर्ट  डायरेक्टर राम येड़कर ने शोले का पूरा सेट तैयार किया था. फिल्म में नैचुरल लाइट की भी जरूरत थी, जो इस स्थान पर पूरी तरह से मौजूद थी. उस वक्त हाइवे से रम्ननागढ़ के लिए सड़क बनवाई गयी थी. ताकि सभी आसानी से शूटिंग के लिए पहुंच पायें. रमेश सिप्पी के इसी काम की वजह से वहां के लोगों ने उस स्थान का सिप्पी नगर दे दिया था. एक  आम स्थान को देश व्यापी पहचान शोले ने ही दिलायी. आज यह लोगों के लिए टूरिस्ट प्लेस है. हाल ही में शाहिद कपूर यहां गये थे. सिर्फ यह देखने कि आखिर शोले का रामगढ़ कैसा नजर आता है. शोले की पूरी शूटिंग इस स्थान पर हुई थी. सिवाय जेल के शॉट के. वे शॉट केवल मुंबई के राज कमल स्टूडियो में फिल्माया गया है. फिल्म में जहां गब्बर का डैन था. उसके पीछे ही ठाकुर की हवेली तैयार की गयी थी. फिल्म बनने के बाद भी रामगढ़ दर्शकों के जेहन में जिंदा थी. फिल्म बनने के बाद भी लोग जब भी इस स्थान पर जाते. वे अपने टूरिस्ट गाइड को सबसे अधिक पैसे इसी स्थान पर जाने के लिए देते थे. कर्नाटक सरकार जल्द ही इस स्थान को थीम पार्क में बदल रही है. इस स्थान पर जो भी इसकी देख रेख के लिए स्टाफ सभी गब्बर के गेटअप में ही नजर आयेंगे. रामगढ़ के शोले, रामगढ़ की मौसी, रामगढ़ की धन्नो और रामगढ़ के जय वीरू और बसंती हिंदी सिनेमा में हमेशा याद किये जाते रहेंगे.
मांडवा
नाम: विजय दीनानाथ चौहान, गांव मांडवा
फिल्म अग्निपथ में मांडवा गांव को लेने की खास वजह यह थी कि विजय दीनानाथ चौहान का किरदार बहुत हद तक वास्तविक मुंबई के डॉन मान्या सुर्वे पर आधारित था और वास्तविकता में मान्या सुर्वे मांडवा बंदरगाह का इस्तेमाल अपने काले धंधे के लिए इस्तेमाल करता था. मान्या ही नहीं. ब्रिटिश सरकार भी मांडवा बंदरगाह का इस्तेनाल इसलिए करती थी, क्योंकि मांडवा मुंबई के निकट भी है लेकिन छोटे से गांव होने की वजह से यह कानून की नजरों से दूर था. यहां कानून की नाक के नीचे धंधे होते थे. लेकिन कानून को जानकारी नहीं होती थी. यही वजह थी कि फिल्म में भी इसी स्थान का नाम इस्तेमाल किया गया. जबकि पुराने अग्निपथ की शूटिंग गोवा में हुई थी और अग्निपथ के नये संस्करण की शूटिंग दमन में की गयी थी.  इतिहासकार भी मानते हैं कि उस मांडवा फोर्ट का इस्तेमाल ब्रिटिश भी करते रहे थे.
खंडाला
 वर्ष 1998 में आमिर खान ने फिल्म गुलाम के एक गीत में रानी मुखर्जी से पूछा था कि आती क्या खंडाला...पूरे देश  में अचानक खंडाला लोकप्रिय हो गया. छोटे छोटे शहरों के लोगों ने भी जानकारी हासिल कर ली थी कि खंडाला नाम का भी कोई स्थान है. दरअसल, गीतकार  समीर ने अपने गीत में ही खंडाला की खूबसूरती दर्शा दी थी कि बरसात के सीजन में ही खंडाला का असली मजा है. इस गीत से पहले लोग खंडाला नामक स्थान से वाकिफ नहीं थे. लेकिन इस गाने के लोकप्रिय होने के बाद गली मोहल्ले के हर टपोरी अपनी प्रेमिका को यही गीत गाकर रिझाते थे. इस गाने का ही यह प्रभाव था कि इसके बाद मुंबई आनेवाले टूरिस्ट खंडाला की सैर किये बगैर नहीं लौटते थे. गाने का ही असर है कि आज खंडाला आकर्षक टूरिस्ट स्पॉट बन चुका है.
और पहलगांव बना बेताब वैली
राहुल रवेल की फिल्म बेताब से सनी देओल और अमृता सिंह ने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की थी. इस फिल्म पूरी शूटिंग कश्मीर के पहलगांव में हुई थी. इस फिल्म की शूटिंग के बाद इस स्थान का नाम बेताब वैली रख दिया गया था. पहलगांव से ही कुछ दूरी पर स्थित गुलमर्ग में ही एक स्थान में बर्फबारी होती है  और वहां बीचोबीच एक मंदिर स्थित है, जहां फिल्म आप की कसम  जय जय शिव शंकर...फिल्माया गया था. वहां के लोग आज भी इसे जय जय शिव शंकर मंदिर के नाम से ही जानते हैं. फिल्म बॉबी का गीत हम तुम एक कमरे में बंद हो...इस गाने की शूटिंग भी जिस कॉटेज में हुई थी. उस स्थान का नाम ही रख दिया गया है बॉबी हट . वहां के टूरिस्ट आज भी इन स्थानों की सैर कराना नहीं भूलते.
सज्जनपुर गांव
सज्जनपुर यूं तो मध्य प्रदेश के रेवा डिविजन का हिस्सा है. लेकिन श्याम बेनेगल की फिल्म वेलकम टू सज्जनपुर के बाद सज्जनपुर लोकप्रिय स्थानों में से एक हो गया. हालांकि फिल्म में श्याम बेनेगल ने सिनेमेटिक लिबर्टी लेते हुए इसे उत्तर प्रदेश का गांव दिखाया है. लेकिन वास्तविकता में यह मध्य प्रदेश का एक गांव हैं.
पीपली गांव
पीपली उत्तर प्रदेश और हरियाणा के बीच स्थित एक छोटा सा गांव हैं, जो कभी अस्तित्व में रहते होते हुए भी चर्चे का विषय नहीं था. लेकिन आमिर खान की फिल्म पीपली लाइव के बाद से यह स्थान अचानक चर्चे में आ गया. वहां फिल्म की रिलीज के बाद ही वहां की जमीन के दाम में 33 प्रतिशत इजाफा हो गया था. वहां के सरपंच गिरिराज सिंह के शब्दों में मैं खुद हैरत में था कि आखिर अचानक लोग यहां फार्म लैंड्स खरीदने में दिलचस्पी क्यों ले रहे हैं. बाद में मुझे समझने में आया कि यह फिल्म पीपली लाइव का असर है. और दिलचस्प बात यह थी कि पीपली लाइव के मेकर्स या आमिर खान को भी इस बात की जानकारी नहीं थी कि वाकई पीपली नामक कोई स्थान है. उन्होंने तो इसे सिनेमेटिक लिबर्टी लेते हुए गढ़ लिया था. इस फिल्म की शूटिंग मध्य प्रदेश के बदवई में हुई थी. जबकि पीपली वाकई अस्तित्व में है.
वाई
जब प्रकाश झा ने फिल्म मृत्युदंड की शूटिंग वाई में की थी. उस वक्त वहां केवल एक होटल थे. सारे स्टार्स फिल्म की शूटिंग के बाद पंचगनी जाते थे. लेकिन प्रकाश झा की फिल्में मृत्युदंड, गंगाजल, अपहरण के बाद यह स्थान बॉलीवुड के निर्देशकों की नजर में आया. फिलवक्त बॉलीवुड की अधिकतर फिल्मों की शूटिंग वाई में हो रही है. यह स्थान मुंबई से काफी नजदीक है और यहां के सारे लोकेशन फिल्म की कहानियों से मेल खाते हैं. फिलवक्त चेन्नई एक्सप्रेस, दबंग1, दबंग 2, गुलाब गैंग,  मेंटल जैसी आधी दर्जन फिल्मों की शूटिंग यही होती है. आज वहां 10 से 12 होटलों की शुरुआत हो चुकी है. वर्तमान में यह बॉलीवुड का पसंदीदा शूटिंग लोकेशन में से एक है.
पालनखेत
पालनखेत एक लोकप्रिय हिल स्टेशन है. लेकिन फिल्म राजा हिंदुस्तानी ने इसे और भी लोकप्रिय बना दिया. इसके बाद कई फिल्मों की शूटिंग यहां शुरू हो गयी.
काशीपुरा गांव
बड़ौदा जिले के काशीपुरा गांव में मदर इंडिया की शूटिंग हुई थी. यह स्थान सुनील दत्त को इतनी पसंद आयी थी कि उन्होंने अपनी दूसरी फिल्म डाकू और जवान की शूटिंग इसी स्थान पर की थी. सुनील दत्त ने इस गांव के लिए विकास के लिए भी काफी कुछ किया था. यही नहीं वे अपने बच्चों को लेकर जाते थे. इस कदर सुनील दत्त को उस गांव से लगाव हो गया था कि वहां के एक व्यक्ति की मौत पर दत्त साहब उस गांव में गये थे. वहां के गांव वालों के लिए वह फेस्टिव सीजन होता था. जब वहां फिल्मों की शूटिंग होती थी. दत्त परिवार के लिए यह गांव परिवार बन चुका था.
अररिया
फिल्म तीसरी कसम की पृष्ठभूमि में अररिया गांव दर्शाया गया है. यह गांव वाकई बिहार का वास्तविक गांव है.इस फिल्म के बाद यह गांव अचानक दर्शकों की जुबां पर चढ़ गया था. हालांकि इस फिल्म की शूटिंग बिहार के ही पुर्णिया के नजदीक स्थित भोकराया गांव में की गयी थी. कई सालों बाद फिर इसी गांव में हालिया रिलीज हुई फिल्म  जीना है तो ठोक डाल की शूटिंग यहां की गयी.

 भिंडी बाजार ( भेंडी बाजार)
दरअसल, मुंबई का यह स्थान भेंडी बाजार है. लेकिन बॉलीवुड ने ही इस स्थान को भेंडी से भिंडी बाजार बना दिया और लोगों ने इसे इसी नाम से पुकारना शुरू कर दिया.भिंडी बाजार आमतौर पर मुंबई का एक आपराधिक स्थानों में से एक माना जाता है. फिल्म भिंडी बाजार में भी इसकी यही छवि प्रस्तुत की गयी है. लेकिन दरअसल भेंडी बाजार एक गायिकी का घराना है. खासबात यह है कि इस घराने का बॉलीवुड से कनेक् शन रहा है. उस्ताद अमद अली खान से स्वर कोकिला लता मंगेशकर, मन्ना डे ने शिक्षा ली है. वही आशा भोंसले व पंकज उदास ने मास्टर नवरंग से, पंडित रमेश नांदकरणी से महेंद्र कपूर ने तालिम ली है.
धोबी घाट
किरन राव की फिल्म धोबी घाट के बाद से मुंबई के महालक्ष्मी के निकट स्थित धोबी घाट बेहद लोकप्रिय हो गया. हाल ही में शूटआउट  एट वडाला की शूटिंग यही हुई है.
इनके अलावा फिल्म शांघाई में दिखाया गया भारतनगर( मुंबई के बीकेसी इलाके में स्थित), गैंग्स आॅफ वासेपुर ( धनबाद के इलाके में मौजूद वासेपुर इलाका अब हर किसी की जुबां पर हैं.




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