20130429

हम जूनियर...बोल रहे हैं




अनुप्रिया अनंत 
फिल्म डुप्लीकेट में शाहरुख खान के डबल रोल थे. शाहरुख खान ने इस फिल्म के प्रोमोशन के दौरान बार बार यही संवाद दोहराया था कि डबल शाहरुख सिंगल रे...ये है मेरा डुप्लीकेट ...दरअसल, शाहरुख का यह संवाद उन तमाम डुप्लीकेट की जिंदगी को बयां करता है, जो हिंदी सिनेमा के सुपरस्टार की हमशक्ल  हैं तो लेकिन सुपरस्टार और उनके हमशक्ल के बीच एक सिंगल रे है. यानी एक रेखा है. और यही रेखा एक सुपरस्टार और उनके हमशक्ल के बीच की खाई को दर्शाती है. जी हां, हम बात कर रहे हैं हिंदी सिनेमा के सुपरस्टार्स के हमशक्ल यानी उनके डुप्लीकेट कहे जानेवाले हमशक्ल की, जिन्होंने शक्ल तो हूबहू सुपरस्टार की मिली. लेकिन किस्मत नहीं. मगर इन्होंने खुद की किस्मत खुद से बनायी. ये डुप्लीकेट हम आपमें से ही एक थे, सुपरस्टार के फैन. हिंदी सिनेमा के 100 साल पूरे होने के अवसर पर अनुप्रिया अनंत ने जमीन के कुछ ऐसे ही सुपरस्टार्स की जिंदगी में झांकने की कोशिश की और जानने की कोशिश की कि आखिर  कैसे ये उनकी आम जिंदगी फिल्मी हो गयी. आखिर कैसे वे किसी और के नाम की जिंदगी जीने लगे. क्या शक्ल भर मिल जाने से आपको सुपरसितारा हैसियत भी मिल जाती है.
हम उन्हें जूनियर शाहरुख़...जूनियर अमिताभ...जूनियर अनिल... के नाम से जानते हैं. कुछ लोग इन्हें डुप्लीकेट भी बुलाते हैं. ये हमें कहीं भी रास्ते पर नजर आते हैं. उनके पास सुपरस्टार्स की तरह बड़ी गाड़ियां नहीं हैं. ब्रांडेड जूते भी नहीं हैं और न ही ब्रांडेड जूते.  लेकिन फिर भी वह आम गलियों के सुपरस्टार हैं, क्योंकि बस एक चीज है. जो सुपरस्टार और उनके बीच मिलती है. वह है उनकी शक्ल. और उसी एक वजह से वे अपनी पूरी जिंदगी किसी सुपरस्टार को समर्पित कर देते हैं. कितने लोग जानते होंगे कि अमिताभ बच्चन के हमशक्ल में नजर आनेवाले व्यक्ति का वास्तविक नाम फिरोज है. आरिफ खान को लोग जाने या ना जाने लोग उन्हें जूनियर अनिल कपूर के नाम से जरूर जानते हैं. अनिल कपूर के हमशक्ल व जूनियर अनिल कपूर के नाम से विख्यात आरिफ से जब मैंने एक सवाल किया कि ऐसी कौन सी चीज है जो आप कर सकते हैं, अनिल नहीं. उन्होंने इसका बहुत सटीक जवाब दिया. मैं अनिल कपूर बन सकता हूं. लेकिन अनिल कपूर आरिफ नहीं बन सकते. आरिफ की यह बात दर्शाती है कि वे जानते हैं कि शक्ल पा लेने से कोई सुपरस्टार नहीं हो जाता. लेकिन इसके बावजूद वे खुश हैं कि उन्हें अनिल कपूर की शक्ल की वजह से ही एक पहचान मिली. रोजी रोटी मिली. वरना, वे वर्धा के आम फैन में से ही एक थे. वे शुरुआती दौर में अनिल कपूर की फिल्में देखते थे और फिर उनकी कॉपी किया करते थे. धीरे धीरे उनकी तरह बाल रखने लगे. मोहल्ले की लड़कियां उनके पीछे दीवानी हो गयीं, क्योंकि उनकी शक्ल अनिल से मिलती थी. इस चक्कर में जेल भी गये. सो, बाद में एक परिचित ने उन्हें समझाया कि उन्हें मुंबई जाना चाहिए. और वहां किस्मत आजमाना चाहिए. यह अनिल कपूर की मिलतीजुलती शक्ल पाने का ही नतीजा था कि उन्होंने अनिल कपूर के नाम पर कई अनिल कपूर नाइट शो किये. खुद माधुरी पहली बार जब आरिफ से मिली तो वह कंफ्यूज हो गयी थीं. मुंबई के विले पार्ले में खेल फिल्म की शूटिंग हो रही थी.  और वहीं पास में मैं अपने शो की तैयारी कर रहा था. वहां माधुरी भी थीं. तो सारे बच्चे माधुरी से आॅटोग्राफ लेकर मेरे पास आ जा रहे थे. माधुरी को वाकई लगा कि अंदर अनिल हैं. बाद में माधुरी को जब पता चला कि मैं अनिल नहीं हूं तो उन्होंने अनिल को ये बात बतायी. अनिल आये और उन्होंने मुझे गले लगा लिया. बोला जो भी काम करो अच्छा है. मैं अनिल कपूर को अपना गुरु मानता हूं. मैं जानता हूं कि मैं 100 करोड़ की फिल्म नहीं बना सकता. अनिल बना सकते हैं. बस यही एक काम है, जो मैं अनिल की तरह नहीं कर सकता...वरना( अनिल के अंदाज में बात करते हुए) अपुन राम लखन वाला लखन ही तो हैं. आरिफ मानते हैं कि वे लुकलाइक होने के बावजूद केवल अनिल कपूर के जूनियर के रूप में नहीं जाने जाते हैं. भले ही वह परदे के सामने आकर कोई अलग काम न कर सकें. लेकिन परदे के पीछे वे पुकार किसान की नामक फिल्म का निर्देशन कर रहे हैं. वह मानते हैं कि अनिल कपूर का नाम उनके लिए अन्नदाता रहा. इसलिए वे उसकी इज्जत करते हैं. लेकिन वे साथ ही यह कहना नहीं भूलते कि मैं अपनी पहचान बना रहा हूं. इससे स्पष्ट होता है कि आरिफ में अपनी पहचान बनाने की भूख आज भी जिंदा है. वही फिरोज जो जूनियर अमिताभ बच्चन के रूप में विख्यात हैं खुद को आम जिंदगी में जूनियर अमिताभ नहीं मानते. उनका कहना है कि अगर वे बिना गेटअप के किसी के सामने आ जायें तो लोग कभी उन्हें अमिताभ नहीं मानेंगे. दरअसल, वह परफॉरमर हैं. और अमिताभ की तरह एक्टिंग करते हैं. हां, जब वह उनके गेटअप और मेकअप में होते हैं सिर्फ उसी वक्त वह अमिताभ के डुप्लीकेट होते हैं. वरना, वे आमतौर पर एक सामान्य जिंदगी जीते हैं. उन्होंने खुद को अमिताभ की छवि में कैद नहीं कर रखा है. फिरोज को जब अमिताभ से  फिल्म कोहराम के दौरान पहली बार अमिताभ से मिलने का मौका मिला तो अमिताभ ने फिरोज से कहा कि अच्छा काम करते हो. करते रहो...फिरोज के लिए अमिताभ के यही दो शब्द उनके लिए हौंसला बन गये. फिरोज बताते हैं कि आज कई हमशक्ल आ चुके हैं. और उन्हें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता.चूंकि उनकी एक अलग दुनिया है. वे साउथ की फिल्मों में मुख्य विलेन का किरदार निभाते हैं और वे वहां जूनियर अमिताभ नहीं फिरोज होते हैं. सो, वे अपने काम से संतुष्ट हैं.  जूनियर नाना पाटेकर उर्फ केटी अनानाड़ा राव के जूनियर नाना पाटेकर बनने की कहानी औरों से बेहद अलग है. वे व्यवसायी थे. लेकिन उनके बिजनेस पार्टनर ने उन्हें धोखा दे दिया. गम में दाढ़ी बढ़ा ली. गांव वालों से चिढ़ाना शुरू कर दिया कि नाना नाना...फिर राव की पत् नी ने भी यकीन दिलाया कि वह नाना की तरह दिखते हैं. उस वक्त राव को गुस्सा भी बहुत आता था. सो, इस तरह उनके गम ने उन्हें जूनियर नाना बनाया. और मुंबई पहुंचा दिया. राव इन दिनों सीआइडी समेत कई फिल्मों में काम करते हैं. जहां वे राव के रूप में ही काम करते हैं. देव आनंद के हमशक्ल माने जानेवाले किशोर भानुशाली की सोच इन सबसे बेहद अलग हैं. वे मानते हैं कि वे खुशनसीब हैं कि उन्हें देव आनंद साहब की शक्ल मिली. लेकिन कई बार यह उनके लिए परेशानी का ही सबब बनती है, क्योंकि उन्हें कोई दूसरे किरदार नहीं मिलते. लोग उन्हें देव आनंद की मिमिकरी तक ही सीमित रखना चाहते हैं. कई फिल्मों में उन्हें छोटे मोटे किरदार मिले हैं, जिन्हें करना उन्हें पसंद नहीं हैं. वे मानते हैं कि कभी कभी हमशक्ल होना कैद भी बन जाता है. ताउम्र. कई बार लोगों के उपहास का कारण बनना होता है. इनसे ठीक विपरीत शत्रुघ्न सिन्हा के हमशक्ल बलबीर सिंह राजपूत अपने अभिनय को एंजॉय करते हैं. वे पार्लियामेंट वाला वाक्या याद दिलाते हुए कहते हैं कि अगर हम जैसे हमशक्ल नहीं होते तो कैसे पता चलता कि संसद में कितनी चौकसी है कितनी नहीं. उस दिन तो खुद शत्रुघ्न सिन्हा ने भी माना था कि जो काम हम नहीं कर पाये, हमारे हमशक्ल ने की. इसी तरह अहमदाबाद में एक बार ट्रैफिक रुल को समझाने के लिए ट्रैफिक पुलिस ने स्टार्स के डुप्लीकेट्स की मदद ली थी.  बलबीर मानते हैं कि हम में से कई लोग ऐसे थे जिन्हें शायद कोई नहीं जानता. इतनी बड़ी आबादी में कौन सा आम आदमी पहचान बना पाता है. लेकिन अगर हम उस भीड़ में भी अलग हो पाये तो यही खास बात है. दरअसल, यही हकीकत भी है कि सुपरस्टार्स के हमशक्ल होने की वजह से भले ही उन्हें वही किस्मत न मिली हो. कई बार उपहास का सामना करना पड़ा हो. मजाक बनना पड़ा हो. एक ही सीमा में कैद होने का दर्द हो. लेकिन इन तमाम बातों के बावजूद वे इस बात से खुश भी हैं और नाखुश भी कि वे सुपरस्टार नहीं. उनके चेहरे पर कहीं संतुष्टि है तो कहीं दर्द है. कहीं पहचान न बना पाने का तो उधार की जिंदगी जीने का दुख भी. कुछ ने इसे अपनी किस्मत मान लिया है तो कुछ इसे अपने किस्मत का चमकता सितारा. तमाम बातों के बावजूद वे इस बात से भी वाकिफ हैं कि हां, वे जानते हैं कि वे भी स्टार्स हैं...भले ही उनका आशियाना आसमां नहीं. मगर ठिकाना जमीन तो है. चलते चलते एक बात गौर करनेवाली है कि जिस तरह हिंदी सिनेमा में पुरुष सुपरस्टार्स को कॉपी कर या उनकी शक्ल या नकल करने की होड़ रही. वैसी महिला  सुपरस्टार्स में नहीं रहीं. जिस तरह पुरुष सुपरस्टार्स के डुप्लीकेट्स को आज सभी पहचानते हैं. महिला सुपरस्टार्स की डुप्लीकेट न के बराबर हैं या कोई हैं भी तो उतनी लोकप्रिय नहीं.सो, इससे दो बातें स्पष्ट होती हैं कि यहां भी पुरुषों को ही दबदबा है. या फिर हिंदुस्तानी लड़कियां कट्रीना, करीना जैसी सुंदर, सुडौल तो दिखना चाहती हैं . लेकिन कट्रीना-करीना-सी दिखना उन्हें मंजूर नहीं.

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