20130408

दो बहनों का मिलन



लता मंगेशकर ने हाल ही में अपनी बहन आशा भोंसले को अपने पिता के नाम पर आधारित सम्मान हृदयनाथ मंगेशकर पुरस्कार से सम्मानित किया. आशा भोंसले के लिए यह पहला मौका था, जब उन्हें यह सम्मान मिल रहा और वे इस बात से बेहद खुश थीं. चूंकि उन्होंने ताउम्र जो शोहरत हासिल की. वह आज भी अधूरी थी, क्योंकि उन्हें इस बात का दुख था कि उन्हें उनके पिता के नाम पर आधारित यह सम्मान अब तक नहीं मिला है. गौरतलब है कि लता मंगेशकर ने ही अपने पिता के नाम पर इस पुरस्कार की शुरुआत की थी और प्रत्येक वर्ष वे उन शख्सियत को इससे नवाजती हैं जिन्हें वह योग्य समझती हैं. लता और आशा के बीच के मतभेद के बारे में पूरी दुनिया वाकिफ है. आशा का मानना था कि लता उन्हें बढ़ावा नहीं देना चाहतीं. कई बार सार्वजनिक समारोह में भी दोनों बहनों की आपसी रंजिश सामने आती रही है. लेकिन अब लता ने आशा भोंसले को यह सम्मान देकर साबित कर दिया है कि छोटी बहन छोटी ही होती है. लेकिन बड़ी बहन का यह फर्ज है कि वह अपने छोटों पर प्यार बरसाये. हिंदी सिने जगत में ऐसे कम ही उदाहरण देखने को मिलते हैं. जहां एक बार मनमुटाव हो जाने के बाद फिर से परिवार एक हो जाते हैं. लता ने अपने परिवार का ख्याल एक सुरक्षा कवच की तरह किया. लेकिन इसके बावजूद उनके भाई बहनों को उनसे शिकायत रही. शिकायत की वजह लता की बेइतहां कामयाबी. ऐसा नहीं है कि आशा या लता के अन्य भाई बहनों ने वह मुकाम हासिल नहीं किया. लेकिन जो शीर्ष स्थान लता ने हासिल कर लिया था. लोग वहां नहीं पहुंच पाये. और इसी ने ईर्ष्या का रूप ले लिया. दरअसल, हकीकत ही यही है कि परिवार में अगर कोई एक सदस्य सबसे कामयाब हो जाये तो पूरे परिवार को उनकी कामयाबी का खामियाजा और मुनाफा दोनों ही भुगतना होता है.

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