20130322

फिल्म रिव्यू : जॉली एलएलबी




कलाकार : अरशद वारसी, बोमेन ईरानी, अमृता राव, सौरभ शुक्ला
निर्देशक : सुभाष कपूर
रेटिंग : 4 स्टार
सुभाष कपूर ने जॉलीएलएल बी से पहले फिल्म फंस गये रे ओबामा का निर्देशन किया था. फंस गये रे ओबामा ही बेहतरीन व्यंगात्मक फिल्म है. प्राय: निर्देशक पहली कामयाबी के बाद भटक जाता है. लेकिन पहली कामयाबी के बाद आयी दूसरी फिल्म में अगर वह खुद को साबित कर देता है और कहीं भी भटकाव नजर न आये तो आप मान लें कि निर्देशक में वह बात है. शायद यही वजह है कि सुभाष कपूर को ही विधु विनोद चोपड़ा की पसंदीदा मुन्नाभाई सीरिज निर्देशित करने का मौका मिल रहा है. सुभाष ने जॉली एल एलबी से साबित कर दिया है कि उनकी कहानी ही हीरो है और उन्हें अपनी कहानियों को कहने के लिए किसी भी बड़े स्टार्स की जरूरत नहीं, बल्कि हो सकता है कि भविष्य में उनकी फिल्मों के कलाकार स्टार्स बन जायें. सुभाष कपूर ने इंडियन ज्यूडीशरी को लेकर एक बेहतरीन कहानी कही है जॉली एलएलबी के माध्यम से. हो सकता है कि आपको जॉली एल एल बी के प्रोमोज लुभावने न लगे और यह भी हो सकता है कि आपको ऐसा लगा कि शायद फिल्म में अरशद व बोमन हैं तो यह आम हास्यपद फिल्मों से एक होगी. अगर आप ऐसा सोचेंगे तो यह आपकी भूल होगी. क्योंकि जॉली हर मायने से खरी उतरती है. सुभाष कपूर ने फिल्म में जिस बारीकी से पूरे सिस्टम को दर्शाया है. खासतौर से भारतीय न्यायालय की खूबियों और कमियों को सामने दर्शाया है. वह उल्लेखनीय है. फिल्म की कहानी की चर्चा होने के बजाय बेहतर हो कि आप खुद यह फिल्म देखें. सुभाष कपूर ने आम आदमी के जीवन की भावनाओं को जोड़ते हुए एक अच्छी कहानी कहने की कोशिश की है. अरशद वारसी के रूप में एक स्टार लॉयर बनने का ख्वाब और फिर धीरे धीरे सच्चाई का सामना करनेवाले इस लॉयर के राह में आनेवाले रोड़े को मेरठ की भाषा के माध्यम से दर्शकों तक सार्थक रूप से पहुंचाया गया है. एक स्टार लॉयर पैसे और शोहरत के लिए किस हद तक जा सकता है. इसका स्पष्ट उदाहरण एडवोकेट राजपाल के रूप में दर्शाया गया है. किस तरह भारतीय न्यायलय में केस पर तारीख पर तारीख देकर कई मुद्दे पेंडिंग कर दिये जाते हैं, कैसे पैसे के दम पर और वकील की वजह से मुजरिम बाहर और गुनहगार अंदर चला जाता है. यह सारी गुत्थियां बखूबी दर्शकों के सामने आयेंगी. कानून अंधा होता है. जज नहीं जज की भूमिका निभा रहे सौरभ शुक्ला इस एक संवाद में न्यायलय के हालात को पूरी तरह दर्शा जाते हैं. इश्किया, मुन्नाभाई के बाद अरशद की यह अब तक का सबसे बेहतरीन किरदार है. बोमन ईरानी ने भी उम्दा अभिनय किया है. अमृता राव के पास विशेष कुछ खास करने के मौके नहीं ेथे. सौरभ शुक्ला जज के रूप में जंचे हैं. आनेवाले सालों में सुभाष कपूर हिंदी सिनेमा के शीर्ष व समझपरक, वैचारिक निर्देशकों में से एक होंगे. और एक बात अमूमन फिल्मों के द एंड पर दर्शकों की तालियां नहीं बजती. लेकिन यह फिल्म तालियों की हकदार होगी. कहानी के साथ पूरी तरह से न्याय करती है यह फिल्म. जरूर देखें.


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