20130108

जवां हैं गुलजार के नगमें



हाल ही में मुंबई में आयोजित एक लिटरेचर महोत्सव में गुलजार साहब से मुलाकात हुई. अमूमन गुलजार साहब कम ही कार्यक्रमों का हिस्सा बनते हैं. लेकिन इस कार्यक्रम में गुलजार ने पूरा वक्त दिया. महोत्सव के दौरान वे प्रमुखता से सारे अलग अलग तरह के आयोजनों का हिस्सा बने. सबसे पहले उन्होंने केजरीवाल पर आधारित पैनल डिस्कशन का न सिर्फ हिस्सा बने. बल्कि प्रमुखता से आम आदमी की परेशानी पर अपनी बात रखी. गुलजार मानते हैं कि अन्ना का आंदोलन उनकी नजर में सफल हमेशा इसलिए रहेगा, क्योंकि यह अरसे बाद हुआ था जब किसी आंदोलन में नौजवानों ने प्रमुखता से हिस्सा लिया था. इसके बाद गुलजार मंटो पर आयोजित कार्यक्रम जिसके मुख्य वक्ता प्रसून जोशी और जावेद अख्तर थे. उसके भी हिस्से बने. गुलजार ने मंटो के जीवन से संबंधित कई पहलुओं पर प्रकाश डाला. उन्होंने बताया कि किस तरह मंटो पांच शब्दों में भी अपनी पूरी बात कह जाते थे. इस सभा में बैठे जितने दर्शक थे. वे सभी गुलजार की बातों पर बार बार तालियां बजा रहे थे. दरअसल, गुलजार साहब उन हस्तियों में से एक हैं, जो स्वयं भले ही उम्रदराज हो गये हों.लेकिन उनकी रचनाएं और उनके बोलने का अंदाज आज भी जवां है. शायद यही वजह है कि गुलजार को चाहने वालों में युवाओं की संख्या भी काफी है. इसी महोत्सव में गुलजार की किताब दिल ढूंढता है का लोकार्पण भी हुआ. इस महोत्सव में किसी ने गुलजार साहब से जानना चाहा कि अब वह पाकिस्तान क्यों नहीं जाते, क्या अपने देश की याद नहीं आती. उन्होंने इस सवाल का सटीक जवाब अपने अंदाज में यह दिया कि वे चाहते हैं कि वे जिस पाकिस्तान जिस लाहौर को छोड़ कर आये थे, उनकी यादें वैसी ही रहे. वे यादें ही उनके लिए लिखने की प्रेरणा है और वे उन्हें धूमिल नहीं करना चाहते. स्पष्ट है कि गुलजार आज भी प्रासंगिक हैं

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