20130118

उम्मीदों-आशाओं का कैलेंडर


नये वर्ष की शुरुआत हो चुकी है. नये वर्ष के उपलक्ष्य में लगभग हर कॉरपोरेट हाउस से लेकर सामान्य कार्यालयों तक में कैलेंडर की लेन देन होती है. मेरे दफ्तर में भी कई ऐसे कैलेंडर आये हैं. लेकिन नजर जाकर टिकी तो सिर्फ एक कैलेंडर पर. आरुषि नामक एनजीओ के वार्षिक कैलेंडर पर. इस कैलेंडर की खासियत इसमें इस्तेमाल किये गये कागज नहीं हैं.बल्कि इसे आम से खास बना दिया है गुलजार साहब के 12 नगमों में. दो पंक्तियों के इन 12 नगमों में आरुषि की सोच झलकती है. आरुषि भोपाल की एक ऐसी संस्था है, जो अंधे बच्चों के लिए कार्य करती है. इस कैलेंडर में गुलजार साहब ने जो पंक्तियां लिखी हैं, वह इसलिए भी खास है, क्योंकि वे सारी पंक्तियां इन बच्चों की बेबसी नहीं दर्शाती, बल्कि उन्हें आम जिंदगी से जोड़ती है, जो सकारात्मक ऊर्जा देती है. गुलजार लिखते हैं मेरे पीछे पीछे आओ लोगों, मैंने छड़ी में आंखें रखी हैं...इन चंद शब्दों में गुलजार ने इनकी छड़ी को इनका सहारा नहीं, बल्कि इनकी आंखों का दर्जा दिया है. गुलजार साहब आगे लिखते हैं चश्मा अपनी नाक पे रखो तुम मेरी तो उंगलियां लिखती पढ़ती हैं...इन पंक्तियों में गुलजार साहब ने उन पर कटाक्ष किया है, जो इन बच्चों को हीन दृष्टि से देखते हैं. जागा तो सपना देखा जैसी पंक्तियों के माध्यम से गुलजार ने इन बच्चों की आंखों में सजते सपने का जिक्र किया है. तिरंगा कहीं भी हो...मेरा सलाम पहुंचा दो...ये दर्शाती हैं कि ये  बच्चे  कितनी शिद्दत से उस देश को चाहते हैं. दरअसल, वर्तमान में ऐसे बच्चों को गुलजार सरीखे शख्सियत के साथ की खास जरूरत है, क्योंकि यही इनकी बात, इनकी सोच को लोगों तक पहुंचा सकते हैं और लोगों को जागरूक कर सकते हैं. इस संस्था को आगे बढ़ाने की सोच में जुड़े अशोक बिंदल जैसे लोगों की इस संस्था को जरूरत है और हमारे देश को भी.

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