20130113

मेरी फिल्म मेकिंग को सभी पागलपंथी समझते हैं



‘नेमसेक’, ‘सलाम बॉम्बे’, ‘मानसून वेडिंग’ जैसी लोकप्रिय हिंदी फिल्में बना चुकी मीरा नायर अपनी नयी फिल्म ‘द रिलक्टेंट फंडामेनटलिस्ट’ को लेकर फिर से सुर्खियों में हैं. यह फिल्म अब तक भारत में रिलीज नहीं हुई है, लेकिन इफ्फी महोत्सव में फिल्म की स्क्रीनिंग की जा चुकी है. हाल में मीरा नायर मुंबई के एक लिटरेचर फेस्टिवल का हिस्सा बनीं, जहां उन्होंने अपने फिल्मी सफर पर विस्तार से बातचीत की.

मीरा नायर अपनी अलग सोच और अलग ट्रीटमेंट से बनायी गयी फिल्मों के लिए जानी जाती हैं. श्याम बेनेगल से लेकर गुलजार तक सभी मीरा की फिल्मों के कायल हैं. जल्द ही उनकी फिल्म ‘द रिलकटेंट फंडामेंटलिस्ट’ रिलीज होने वाली है. इस बार फिर मीरा ने एक बार फिर गंभीर मुद्दे की फिल्म चुनी है. इस विषय पर मीरा से हुई बातचीत के प्रमुख अंश..
मीरा, आप भारत बहुत कम आती हैं. अब से दो साल पहले भी आप इफ्फी गोवा में शामिल हुई थीं. जब ‘सलाम बॉम्बे’ की स्क्रीनिंग की गयी थी. भारत से दूरी की कोई खास वजह?
कोई खास वजह नहीं है, बल्कि मैं तो भारत को अपना दिल मानती हूं. तभी तो जब भी यहां से बुलावा मिलता है, मैं चली आती हूं. हां, यह जरूर है कि साल के चार महीने मैं कभी अफ्रीका में रहती हूं, कभी चार महीने यूएस में, तो कभी कहीं और रहती हूं. इस दौरान फिल्मों और इंस्टीट्यूट पर काम होता रहता है. लेकिन जब भी मुझे भारत आने का मौका मिलता है मैं जरूर आती हूं. आखिर भारत ही मेरा जन्मस्थान है.
अपनी नयी फिल्म ‘द रिलकटेंट..’ के बारे में बताएं?
हम सबके मन में हमेशा लाहौर या पाकिस्तान की यही छवि रहती है कि पाकिस्तान बुरा है. वहां के लोग अच्छे नहीं है. इस फिल्म से मैंने लोगों की इस धारणा को बदलने की कोशिश की है. एक पाकिस्तानी कैसे यूएस से उतना ही प्यार करता है, जैसे कोई अमेरीकी अपने संघर्ष को जीता और झेलता है. इसमें उन पहलुओं पर प्रकाश डालने की कोशिश की गयी है.
फिल्म एक उपन्यास पर आधारित है. किसी उपन्यास पर फिल्म बनाने में कितनी कठिनाइयां होती हैं?
मुझे लगता है कि फिल्म बनाना, खासतौर से फीचर फिल्म बनाना किसी भी फिल्मकार के लिए एक स्टोरी टेलिंग करने जैसा ही है. फिर चाहे आपकी कहानी कहीं से भी ली गयी हो. हां, यह जरूर है कि जब आप एडप्टेशन पर काम करते हैं, तो आपको इन बातों का ख्याल रखना पड़ता है कि उपन्यास का दिल खो न जाये. फिल्म बनाते वक्त पूरे उपन्यास से कहीं अधिक वक्त, किरदार, प्रीमाइसेज और नजरिये पर ध्यान देने की जरूरत होती है. वीडियो बनाना हमेशा कठिन काम होता है. आप यहां अचानक से न कुछ जोड़ सकते हैं, न ही मिटा सकते हैं.
हमने सुना आप ‘मॉनसून वेडिंग’ को री-लांच करेंगी.
सच कहूं मैं अपनी फिल्मों में या किसी की भी फिल्म में म्यूजिक की भूमिका को बेहद अहम मानती हूं. इसीलिए मैंने तय किया है कि मैं मॉनसून वेडिंग को कई गानों के साथ म्यूजिकल फिल्म के रूप में फिर से लाऊंगी. म्यूजिक तैयार करने की जिम्मेदारी विशाल भारद्वाज की है. विशाल ने कहा है कि वह ‘मटरू..’ का काम पूरा करते ही इसमें जुटेंगे.

मुझे लगा कि मैंने अपने कैरियर में अब तक म्यूजिक के क्षेत्र में कुछ अलग नहीं किया है. इसीलिए यह एक नया एक्सपेरिमेंट होगा. मेरे दोस्तों ने तो अभी से कहना भी शुरू कर दिया है कि वाह मीरा फिर से एक और पागलपन! दरअसल, मैं जब भी कोई प्रोजेक्ट शुरू करती हूं. मेरे दोस्त मुझे यही बोलते हैं कि यह मेरा पागलपन ही है. मेरे सारे प्रोजेक्ट आम नहीं होते और रिस्की तो होते ही हैं.
आज आप किसी भी निर्माता के साथ काम कर सकती हैं. फिर भी आप जिस तरह की फिल्में बनाती हैं, उसके लिए क्या आपको कभी बजट से जुड़ी परेशानियों का सामना करना पड़ता है?
एक नहीं, कई परेशानियों का सामना करना पड़ता है. यह सोचियेगा भी मत कि मुझे फिल्म के बजट से जुड़ी परेशानी नहीं होती. सबसे पहले लोग यही पूछते हैं कि फिल्म का कमर्शियल आस्पैक्ट कितना है. दिक्कत आती है, तो मैं खुद ही प्रोड्यूस करती हूं या कुछ को फिल्म समझ में आती है, तो वह हिम्मत दिखाते हैं.
आज तक आपने ओड़िया सिनेमा के लिए कुछ भी नहीं किया? इच्छा नहीं हुई या कोई विषय जेहन में नहीं आया?
हां, यह सच है कि मैंने अब तक ओड़िया फिल्म जगत के लिए कुछ नहीं किया है, लेकिन 2-4 सालों में वहां के लिए कुछ-न-कुछ करूंगी. मुझे जानकारी मिलती रहती है कि वहां क्या हो रहा है. मैं जड़ से अलग नहीं. वहां के लिए कुछ अच्छा और अलग जरूर करना चाहूंगी.

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