20121127

सोशल नेटवर्किंग पर मौत का जश्न


विगत 23 नवंबर को हिंदी सिनेमा जगत के लींजेडरी अभिनेता प्राण साहब की तबियत बेहद गंभीर थी. 92 वर्षीय प्राण साहब उधर जिंदगी और मौत से लड़ रहे थे और इधर खबरें आनी शुरू हो चुकी थी कि प्राण साहब नहीं रहे. कई लोगों ने धराधर अपने सोशल नेटवर्किंग साइट पर स्टेटस डालना शुरू कर दिया कि नहीं रहे शेर खान...प्राण साहब को श्रद्धांजलि और इन दिनों अंगरेजी का एक नया शब्द जो काफी प्रचलन में है. वह है आर आइ पी यानी रेस्ट इन पीस... मुझे मुंबई से बाहर के कई मित्रों व आम मित्रों के टेलीफोन आये. प्राण साहब नहीं रहे न...जब मैंने कहा कि अभी वह ठीक हैं. तो लोगों ने कहा अच्छा, ऐसा कुछ हो तो प्लीज बता दीजियेगा. आखिर स्टोरी तो बनानी पड़ेगी न. कुछ ऐसा ही अभिनेता दारा सिंह के निधन पर भी हुआ था. अभी दारा सिंह अस्पताल में थे और लोगों ने उनके मौत का प्रचार शुरू कर दिया था. कुछ दिनों पहले ही मैंने एक व्यक्ति के फेसबुक स्टेटस पर पढ़ा कि हाइ फ्रेंड्स मेरे  ब्रदर इन लॉ का निधन हो गया है. सो, मैं कुछ दिनों के लिए फेसबुक पर नहीं रहूंगा. दरअसल, यह सोशल नेटवर्किंग साइट्स भी दर्शाते हैं कि वर्तमान में हमारी मानसिकता क्या है. हमारे समाज की मानसिकता. आज हम किसी की मौत का मातम नहीं, जश्न मनाते हैं. हम कितने असंवेदनशील हो चुके हैं, यह हमारे स्टेटस से ही पता चल जाता है. जरा सोच कर देखें दुनिया के किसी भी व्यक्ति के लिए उसकी मौत से पहले ही उसका मातम मनाया जाना, क्या बीतती होगी उस व्यक्ति पर. ऐसे में प्राण साहब की बेटी ने मीडिया पर अपने कड़े शब्द से ऐतराज जताया तो क्या बुरा किया. उधर बेटी पिता की लंबी आयु की कामना कर रही है और दुनिया के लोग उनकी मौत का जश्न मना रहे हैं. सच्चाई यही है कि आज हम खुद को सबसे पहले और सबसे तेज बनने की होड़ में खुद को असामाजिक प्राणी बना चुके हैं.

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