20121015

Amitabh special(4)- अमिताभ एक परिघटना


  रॉफ अहमद, फिल्म क्रिटिक
कभी बेहद शर्मिले अमिताभ हिंदुस्तान के दर्शकों के दिलों में राज करेगा. यह शायद उस वक्त कभी तेजी बच्चन और हरिवंशराय बच्चन ने सोचा भी न होगा. हां, मगर यकीनन उन्हें इस बात का अनुमान जरूर होगा कि उनके बड़े बेटे के चेहरे पर कुछ तो अलग तेज है और उसका वही तेज उसे आम से खास बना देगा. माता-पिता का आत्मविश्वास ही था, जो उन्होंने 11 अक्तूबर 1942 में जन्में बेटे का नाम अमिताभ रखा. मतलब आंतरिक रोशनी. जिस वक्त अमिताभ का जन्म हुआ था. उस वक्त इलाहाबाद के कई इलाकों में भारतीय स्वाधीनता का संघर्ष चल रहा था. हर तरफ इंकलाब का नारा था. उस वक्त एकबारगी तेजी और  हरिवंशराय के मन में यह बात आयी कि क्यों न बेटे का नाम इंकलाब राय रखें. उन्होंने कुछ दिनों के लिए रखा भी. लेकिन बाद में उन्होंने इसे बदल कर अमिताभ कर दिया. अमिताभ की परवरिश भी ठीक उसी तरह हुई, जैसे किसी आम साहित्यकार के बेटे बेटियों की होती है. हां, एक खास बात यह रही थी कि ंिपता हरिवंशराय से लगाव होने के कारण अमिताभ भी साहित्य में बेहद रुचि लेते है. बचपन में मिली अपने पिता की साहित्य समृद्धि की ही यह देन है कि आज भी अमिताभ न सिर्फ साहित्य की अच्छी समझ रखते हैं, बल्कि वे साहित्य का सम्मान भी करते हैं. और कहीं न कहीं से उनकी शख्सियत व जो उनका स्वभाव है. उनमें साहित्यिक सोच जरूर नजर आती है. अमिताभ खुद को कभी परिघटना नहीं मानते. लेकिन हकीकत यह है कि  अमिताभ के बाद किसी दूसरे अमिताभ का आना संभव नहीं है. जो आॅरा अमिताभ का है. वह कई पीढ़ियों तक कम से कम किसी हिंदी सिने जगत के लिए बनाना मुश्किल होगा. अमिताभ ने शुरुआती दौर से नाकामायबी और रिजेक् शन का दौर झेला. लेकिन फिर भी बार बार रुक कर, गिर कर वह आगे बढ़ते रहे हैं. ऐसा केवल किस्से कहानियों में ही होता और 100 में से एक लोग ही कर पाते हैं कि वे बार बार नाकामयाब होकर भी चलते रहे और राह बनाते रहे. निश्चित तौर पर युवाओं को उनसे प्रेरणा लेनी चाहिए और मुझे लगता है कि आज अमिताभ इसलिए भी हर वर्ग को कनेक्ट कर पाते हैं, क्योंकि उनकी जिंदगी का सफर कई लोगों की प्रेरणा है. कई लोग उनमें अपना सपना देखते हैं कि अगर अमिताभ इलाहाबाद शहर से आकर मुंबई में अपना साम्राज्य स्थापित कर सकता है तो फिर हम क्यों नहीं. आज भी अमिताभ के घर पर रविवार के दिन लाखों लोगों की भीड़ होती है. उस भीड़ में अधिकतर वे लोग हैं, जो अमिताभ को अपना आदर्श मानते हैं. किसी दौर में राजकपूर ने आम लोगों से अपना जुड़ाव किया था. इसके बाद जो भी अभिनेता आये. वे एक वर्ग के अभिनेता बने. लेकिन अमिताभ ने जनमानस का अभिनेता बन कर दिखाया. वे आॅटो चलानेवाले एक व्यक्ति के भी चहेते हैं तो दूसरी तरफ इंटरनैशनल कंपनियों के भी ब्रांड एंबैस्डर. किसी व्यक्ति के लिए हर वर्ग के साथ मास अपील कर पाना इतना आसान नहीं. लेकिन अमिताभ इसमें माहिर हैं.
शुरुआती दौर में लगातार उनकी 12 फिल्में  लगातार फ्लॉप रहीं. उस वक्त उन्होंने अभिनेता से लेकर विलेन हर तरह के किरदार निभाये. लेकिन अमिताभ की प्रतिभा को लोगों ने नोटिस नहीं किया. लेकिन फिर भी अमिताभ डटे रहे. जबकि शुरुआती दौर की उनकी फिल्में सात हिंदुस्तानी, सौदागर, परवाना हर फिल्म में अमिताभ ने अपना बेस्ट देने की कोशिश की. आनंद में वे सेकेंड लीड में रहे. लेकिन फिर भी लोगों ने उनके किरदार को पसंद किया. इसके बाद लगातार अमिताभ ने बेहतरीन किरदार निभाये. अमिताभ को दर्शकों का प्यार आज भी मिल रहा है. उसकी एक खास वजह यह भी है कि उन्होंने कभी खुद पर स्टारडम हावी नहीं होने दिया. उन्होंने अपने स्टारडम को एक धरोहर की तरह संभाला. शायद इसकी वजह यह थी कि उन्होंने जो मुकाम हासिल की वह कई नाकामयाबियों के बाद उन्हें मिली थी.

निस्संदेह वह लार्जर देन लाइफ के अभिनेता हैं. लेकिन वह लोगों के सामने कभी एक सुपरस्टार की तरह नहीं, बल्कि आम लोगों की तरह मिलते हैं. उनके स्टारडम में एक विनम्रता है. अमिताभ ने एक बार अपनी बातचीत में मुझे बताया कि  शुरुआती दौर में वे किस तरह अपना वक्त स्टूडियो में शूटिंग देखने में गुजारा करते थे. एक बार जब उन्होंने मनोज कुमार को पहचान फिल्म के लिए डांस नंबर करते हुए देखा था. उस वक्त वह घर जाकर कितने नर्वस थे कि क्या एक अभिनेता को डांस भी करना पड़ता है. जब फिर अमिताभ ने शूटिंग शुरू की और परवाना से उन्हें सिर्फ इसलिए हटाया जा रहा था क्योंकि वह डांस नहीं कर पा रहे थे. उस वक्त उन्होंने तय किया था कि वह एक्टिंग के लिए सबकुछ करेंगे और डांस भी सीखेंगे. यह अमिताभ की तत्परता थी कि वे जूझारू होकर लगातार नाकामयाबी के बाद भी हर संभव प्रयास कर रहे थे. उन्होंने आज तक स्टारडम के आड़ में कभी कोई गलत निर्णय नहीं लिया. राजेश खन्ना सुपरस्टार रहे. लेकिन बाद के दौर में उन्होंने अपनी छवि बेहद बिगाड़ ली थी. अमिताभ उस लिहाज से काफी बौद्धिक, धैर्य और समझदारी से आगे बढ़ते रहे. 1973 के बाद 1980 तक लगभग उस दौर में उन्होंने 80 फिल्मों में काम किया और केवल पांच फिल्में ही फ्लॉप रहीं. बाकी सभी कामयाब रहीं. यह दर्शाता है कि उस दौर में किस तरह दर्शक इस अभिनेता को दिल से स्वीकार चुके थे. यह सच है   कि उन्हें कई निर्देशकों ने ंिनखारा. कई लोग उनकी कामयाबी में उनके साथ रह.े लेकिन एक सच्चाई यह भी है कि अमिताभ में अगर टैलेंट न होता तो वह किसी के सहारे इतना लंबा सफर तय नहीं कर पाते. हिंदी सिनेमा को अनुशासन और सिलसिलेवार तरीके से काम करने की आदत अमिताभ ने लगायी. बीच में अमिताभ के कदम लड़खड़ाये. लेकिन फिर अमिताभ उठ कर खड़े हुए. जीरो से शुरुआत की. और फिर वे कामयाब हुए,आज अमिताभ बोलते हैं तो लोग सुनते हैं. उन्हें मानते हैं.क्योंकि अमिताभ और दर्शकों का रिश्ता अटूट हो चुका है. यह विश्वास उन्हें अमिताभ ने दिलाया है. वे असफल रहे. फिर कोशिश की. फिर सफल रहे. फिर 80 के दशक के बाद कई सालों तक अपनी कंपनी एबीसीएल के कर्ज में डूबे. उस वक्त अमिताभ छोटे परदे पर आ गये. वहां आकर उन्होंने अपना दर्शक वर्ग तैयार किये और फिर एक बार वे कामयाब रहे. गिरना, संभलना, फिर गिर कर संभलना. शून्य से शिखर. शिखर स फिर शून्य. और शून्य से फिर शिखर तक सफर तय करना कोई वही व्यक्ति कर सकता है, जिसका सबसे अटूट विश्वास खुद पर हो. उनका आत्मविश्वास ही आज उनकी सबसे बड़ी पूंजी है. और इसी के सहारे वे आज भी 70 की उम्र में हर वर्ग के चहेते हैं. आनेवाली पीढ़ी भी अपनी पहली पीढ़ी से अमिताभ के संघर्ष व सफलता के बारे में इतना कुछ सुन चुकी है कि वह भी अमिताभ से प्रभावित है.
अमिताभ की पर्सनैलिटी की कुछ खास बातें
अमिताभ पुराने लोगों के साथ साथ नये टैलेंट, निर्देशकों का भी प्रोत्साहन बढ़ा रहे हैं. उनके साथ काम करने की इच्छा जाहिर कर रहे हैं. चूंकि वे आनेवाली पीढ़ी के साथ भी कदमताल करते चलना चाहते हैं.
अनुशासन, धैर्य और लगातार काम की भूख उन्हें आज भी फर्स्ट च्वाइस बना रही है.
अभिनेता के साथ साथ एक सुखद परिवार का वाहन करने वाले अमिताभ को आज भी परिवार आदर्श मानते हैं. चूंकि हिंदी सिनेमा में कम ही उदाहरण रहे हैं जो सफल अभिनेता होते हुए भी सफल फैमिली मैन भी हों.
एक्सट््रा शॉट
फिल्म डॉन के गाने खइकेपान बनारस वाला के लिए लगभग हर शॅट के लि 20 बार रिहर्सल किया था  अमिताभ ने. चूंकि वे अभिनय के साथ साथ डांस में भी परफेक्ट होना चाहते थे.
प्रस्तुति : अनुप्रिया

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