20120719

परदे के उठते ही परदे के गिरते ही



किसी भी कलाकार की जिंदगी कैमरे के ऑन होते ही बदल जाती है. परदे के उठते ही एक कलाकार किरदार बन जाता है. और वह अपनी वास्तविक जिंदगी से परे बिल्कुल अलग दुनिया की जिंदगी जीने लगता है. तो जरा सोचिए, किसी भी कलाकार के लिए कितना कठिन होता होगा. पूरी जिंदगी दो जिंदगी जीना. यही वजह है कि हिंदी सिने जगत में कलाकारों के अभिनय करने का अंदाज हमेशा अलग अलग रहा है. कुछ कलाकार कई बार रिहर्सल करते हैं तो कुछ बिल्कुल स्पोनटेनियस होते हैं. लंबे अनुभव के बावजूद आज भी कई कलाकार शॉट देने से पहले नर्वस हो जाते हैं. दरअसल, सेट पर आने के बाद कलाकारों को अपने किरदारों के मुताबिक पूरा माहौल तैयार करना ही पड़ता है. सदी के महानायक अमिताभ बच्चन आज भी लगभग 7-8 कुर्सियां लगा कर सेट पर किसी कोने में बैठ कर रिहर्सल करते रहते हैं. उस दौरान वे बेहद गंभीर होते हैं. तो वही श्रीदेवी हमेशा से स्पानटेनियस रही हैं. निजी जिंदगी में उन्हें कितने भी गम हों. वे सेट पर आने के साथ वाकई बिजली बन जाती है. राजू बताते हैं कि संजय दत्त सिर्फ 2 घंटों में स्क्रिप्ट के कई पन्ने याद कर जाते हैं. फिल्म पिंजर के दौरान मनोज बाजपेयी सेट पर लोगों से कम बात करते थे. लोगों को लगता था वह खड़ूस हैं. लेकिन उन्होंने बाद में बताया कि वे किरदार में ढलने के लिए ऐसा माहौल तैयार करते हैं. राज कपूर की आदत थी कि वे सेट पर एक्टिंग करते वक्त और निर्देशन दोनों वक्त हंसी मजाक का माहौल बनाये रखते थे. जबकि बलराज साहनी अपने हर टेक पर एक सिगरेट पिया करते थे.जबकि ऋषि कपूर, शशि कपूर स्पॉनटेनियस एक्टर रहे. प्राण साहब हमेशा पूरे मेकअप के साथ रिहर्सल किया करते थे. मीना कुमारी भी मेकअप करवाते हुए रिहर्सल करती रहती थीं.

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