20120602

ek kamre mei light camera, action

in दिनों टेलीविजन पर प्रसारित हो रहे एक विज्ञापन पर आपने शायद गौर किया हो, जिसमें एक लड़का और लड़की अपने स्टूडियो के बारे में बताते हैं कि कैसे उनका एक कमरा ही स्टूडियो है. वही ऑफिस भी है. यह किसी कंप्यूटर की कंपनी का विज्ञापन है. इस विज्ञापन की परिकल्पना से स्पष्ट है कि अब किसी भी काम के लिए क्रिएटिविटी ही अहम है. अगर हम चाहें तो एक कमरे में भी कुछ नायाब गढ. सकते हैं. कुछ ऐसा ही कमाल कर दिखाया है निर्देशक करण गौर और उनके दोस्त अभिनय खोपराजी ने  क्षय   नामक एक इंडिपेंडेंट फिल्म के जरिये. यह फिल्म केवल इन दोनों ने मिल कर बनायी है. करण ने जहां क्रिएटिव कार्यभार संभाला. वहीं अभिनय ने कैमरा व तकनीकी विभाग. मुंबई के गोरेगांव में इन्होंने अपने घर को ही स्टूडियो का रूप दे डाला और यहीं अपने सोच को आकार भी दिया. करण तमिलनाडु से हैं और फिल्मों को लेकर उनका रुझान हमेशा रहा है. करन का सोच है कि अगर आप फिल्में बनाना चाहते हैं तो आपको तकनीकी स्किल्स जानने की जरूरत नहीं, आपको कहानी कहने की कला आनी चाहिए. कुछ इसी सोच के साथ उन्हें अपने दोस्त अभिनय का साथ मिला. फिल्म की कहानी छाया नामक हाउसवाइफ की जिंदगी के इर्द-गिर्द घूमती है. करण और अभिनय ने इस फिल्म में अपनी इंजीनियरिंग की पढ.ाई का भी इस्तेमाल किया है. आप फिल्म देखेंगे तो शायद ही अनुमान लगा पायें कि इसकी साउंड डिजाइनिंग कम लागत में की गयी है. फिल्म की शूटिंग सामान्य डिजिटल वीडियो कैमरे से की गयी है. इस फिल्म को अनुराग कश्यप ने भी देखा और इसकी सराहना की है. उनका मानना है कि लंबे अरसे के बाद उन्होंने क्वालिटी इंडी फिल्म देखी है. दरअसल, इन दिनों युवा फिल्मकार कुछ ऐसे ही प्रयोग लगातार कर रहे हैं. वे अपनी शुरुआत ब.डे बजट की फिल्मों की बजाय एक छोटे बजट की फिल्मों से कर रहे हैं. यह भी स्पष्ट है कि हिंदी सिनेमा में कुछ सालों में इंडिपेंडेंट फिल्म मेकर्स की संख्या बढ.ते जा रही हैं. ‘ क्षय  ’ जैसी फिल्मों का निर्माण यह साबित करता है कि फिल्म बनाने में सोच की जरूरत है. निश्‍चित तौर पर ऐसे प्रयासों में परेशानियां आती हैं. क्योंकि यह सच है कि फिल्में कम बजट में नहीं बन सकती. इसके बावजूद लोग नये प्रयोग कर रहे हैं और उसे अंजाम भी दे रहे हैं.  भी जल्द ही दिल्ली और मुंबई में रिलीज होगी. दरअसल, ऐसी फिल्मों को बढ.ावा मिलना चाहिए. इसे ज्यादा से ज्यादा जगहों पर रिलीज करनी चाहिए ताकि ऐसी पहल और हों और नये लोग नयी सोच के साथ फिल्म मेकिंग में आयें.

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