20120613

लट्टू की तरह नाचता भग्गू


फिल्म  शंघाई का ओपनिंग शॉट, एक ऑटो पर लेटा एक लड़का, पहला संवाद ऐ मामा मटन को अंगरेजी में क्या कहते हैं? पहले शॉट, संवादों के आदान-प्रदान व उस किरदार के हावभाव से यही लगता है कि वह फिल्म में कोई कॉमिक किरदार निभाने जा रहा है, लेकिन अचानक एक बच्ची बाल्टी थमाती है. उस बाल्टी को लेकर शहर नहीं शांघाई का मोरचा निकालता वह लड़का गली-गली में लोगों के मुंह पर कालिख पोतता है और यही दर्शक चौंकते हैं. दर्शक यह सोचने पर अचानक मजबूर हो जाते हैं. कॉमिक से दिखनेवाला यह किरदार अचानक खूंखार रूप कैसे धारण कर लेता है? दर्शक तब और भी चौंकते हैं, जब हंसी ठिठोली करनेवाला और मोहल्ले का हरफनमौला कुछ ऐसा कर जाता है, जो अपराध है. दर्शकों के चौंकने की एक खास वजह यह भी थी, चूंकि अब तक उन्होंने जिन फिल्मों में भी इस कलाकार को देखा था. उन फिल्मों में उन्होंने हास्य किरदार ही निभाया था. लेकिन अचानक शांघाई में उन्हें एक ऐसे किरदार में प्रस्तुत किया जाता है, जो अब तक निभाये गये उनके शेष किरदारों से बेहद अलग थी. ओड़िशा से संबंध रखनेवाले पिटोबाश त्रिपाठी इस फिल्म में केवल फीलर किरदार नहीं हैं. और न ही भीड़ के एक चेहरा मात्र हैं. बल्कि इस फिल्म में वह भग्गू के अहम किरदार में हैं. विकास की लालसा रखनेवाले व अपने शहर की प्रगति की मनसा रखनेवाले भग्गू का किरदार उन तमाम आम लोगों का प्रप्रतिनिधित्व करता है, जो किसी राजनीतिक दांव पेंचों को नहीं समझता. वह सिर्फ वही देखता है, जो उसे दिखाया जाता है. वह यह समझ ही नहीं पाता कि जिसे वह दोस्त समझ रहा है, वे ही उसके वास्तविक दुश्मन हैं. एक पार्टी के नेता को वह इस कदर देवता की तरह पूजता है कि जब वह किसी की हत्या के लिए जा रहा है, तब भी वह उस नेता का आशीर्वाद लेना चाहता है. भग्गू का यह किरदार दरअसल वास्तविक में ठगे जानेवाले उन तमाम लोगों की मानसिक स्थिति को दर्शाता है, जिसमें वे नेताओं की भक्ति में इस कदर लीन हो जाते हैं कि उन्हें सही और गलत की समझ ही नहीं होती, लेकिन वे इस हकीकत को नहीं समझ पाते कि दरअसल, वह इस राजनीतिक भंवर में महज एक  लट्टू  है.

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