20120508

राजसी ठाठ बनाम राह में काटें

सैफ अली खान व अमृता सिंह की 16 वर्षीय बिटिया पहली बार एक मैगजीन के कवर पेज पर नजर आयीं. पारंपरिक लिबाज में सजी धजी बिटिया सारा अली खान ने शायद ही यह परिकल्पना की होगी कि इस महज एक झलक को देख कर उनके पास हिंदी फिल्मों की बौछार हो जायेगी. या यूं कहें कि उन्होंने कभी इस ओर ध्यान भी नहीं दिया होगा. चूंकि वे अभी बेहद छोटी हैं, इसलिए फिल्मों के ऑफर मिलना उनके लिए खास अहमियत नहीं रखती होगी. अमृता सिंह ने तो साफतौर पर कह दिया है कि वे नहीं चाहतीं कि उनकी बेटी फिल्मों में आये. उन्होंने कहा कि सारा अपनी पढ.ाई ही पूरी करेंगी. दरअसल, यह हिंदी सिनेमा की भेड़चाल है. यहां हर दिन नये और आकर्षक चेहरे (खासकर अभिनत्रियों के लिए) की तलाश जारी रहती है. ऐसे में जब वह नवाब की बेटी हो, तो उनके लिए रास्ते और साफ होते जाते हैं. यहां अफसोसजनक बात यह है कि हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में स्थापित कलाकारों के बेटे-बेटियों की पहली लांचिंग उनके माता या पिता के स्तर को देख कर किया जाता रहा है. सैफ की बेटी, संजय दत्त की बिटिया को अपनी फिल्मों में लेने की चाहत हर निर्देशक दिखा रहे हैं, क्योंकि वर्तमान में ये दोनों शीर्ष पर हैं. लेकिन वहीं गोविंदा की बेटी नर्मदा कपूर जो पिछले कई सालों से संघर्ष कर रही हैं. अब तक लांच नहीं हो पायी हैं. कई निर्माताओं ने उन्हें लांच करने की बात की, लेकिन उन्हें मौके मिल नहीं पाये. अब खुद गोविंदा उन्हें लांच कर रहे हैं. किसी दौर में गोविंदा भी सुपरसितारा हैसियत रखते थे, लेकिन आज वे ढलान पर हैं. यकीन मानें कुली नंबर व यूपी के ठुमके लगानेवाले दौर में अगर नर्मदा इस इंडस्ट्री में कदम रखतीं तो निश्‍चिततौर पर उन्हें परेशानियां नहीं होतीं. कुछ इसी तरह मशहूर हास्य अभिनेता मेहमूद के बेटे मंसूर को अपने पहले एल्बम को तैयार करने व उसे रिलीज करने में बहुत परेशानियां झेलनी पड़ी. उस लिहाज से जैकी श्राफ के बेटे टाइगर लकी रहे कि उन पर आमिर खान की नजर पड़ गयी. वरना, शक्ति कपूर की बेटी श्रद्धा कपूर को भी शुरुआती दौर में परेशानियां झेलनी पड़ी. लेकिन सैफ, शत्रुघ्न सिन्हा या धर्मेंद्र जैसे सितारों को अपनी बेटियों को लांच करने में कभी संघर्ष करने की नौबत नहीं आयी, क्योंकि ये हस्तियां सिर्फ फिल्मी हस्तियां नहीं, बल्कि राजसी हैसियत वाले लोग हैं. सो, इनके आनेवाली पीढ.ियां भी शायद ही कभी किसी परेशानी से जूझना प.डे. लेकिन हिंदी सिनेमा के निर्देशकों द्वारा खानदान देख कर लार टपकाने की आदत सरासर गलत है. पक्षपात है

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