20120508

सिनेमा सदी और किरदार



तारीख 3 मई 1913. परदा उठता है और लोगों के सामने इतिहास रच जाता है. यही वह दिन था, जब भारत में दर्शक पहली बार चलती-फिरती फिल्म देख रहे थे.
लोगों के लिए यह हैरतअंगेज लम्हा था, लेकिन उन्होंने इस प्रयोग को स्वीकारा और हरी झंडी दिखायी. अब चलचित्र की यह अनोखी दुनिया किसी एक्सप्रेस ट्रेन की तरह नित-नये प्रयोगों के साथ अपने 99वें पड़ाव पूरे कर 100वें पड़ाव की ओर बढ़ चुकी है. दादा साहेब फाल्के का सपना आज 99 वर्ष का हो चुका है. भारतीय सिनेमा के इस ऐतिहासिक दिन को समर्पित है रंग का यह परिशिष्ट, जिसे प्रस्तुत कर रही हैं उर्मिला कोरी और अनुप्रिया अनंत..
हिंदी सिनेमा के 100वें वर्ष में प्रवेश करने के बहाने कुछ ऐसे किरदारों पर प्रकाश डालते हैं, जिन्होंने आम व्यक्ति को कलाकार की श्रेणी में लाकर खड़ा कर दिया. उन किरदारों ने अपने अभिनय की जिंदगी को सार्थक कर दिया.
दादा साहेब फाल्के ने जब परिकल्पना की कि वह एक चलचित्र बनायेंगे, तो उनके जेहन में सबसे पहली बात ये आयी कि आखिर इसके किरदारों को कौन निभायेगा. किसी भी कहानी की सार्थकता उसके किरदारों से ही होती है. उन्हें कुछ कलाकार तो मिले, लेकिन महिला किरदार निभाने के लिए जब कोई कलाकार नहीं मिली, तो उन्होंने एक चाय बेचने वाले लड़के में ही अपने किरदार को तलाश लिया और उसे अपनी फिल्म में अभिनेत्री के रूप में पेश किया.
हकीकत यही है कि कलाकारों को उनके किरदारों ने ही कलाकार बनाया है. हर व्यक्ति उस वक्त तक आम व्यक्ति होता है, जब तक वह कोई किरदार न निभा ले, किरदार निभाते हुए ही वह कलाकार हो जाता है. यही वजह है कि आज भी कई कलाकार अपनी जिंदगी में अपने किरदारों को अहमियत देते हैं. हर कलाकार अपने अभिनय सफर में एक बार ऐसा किरदार जरूर निभाना चाहता है, जिसमें उसके कलाकार की सारी खूबियां निखरकर सामने आ सकें. हिंदी सिनेमा में किरदारों ने कई कलाकारों को संजीवनी दी है.
पृथ्वीराज कपूर में नजर आया असली सिकंदर
थिएटर के महारथी कलाकार पृथ्वीराज कपूर पर पहली बार आर्देशर ईरानी की नजर पड़ी और उन्हें भारत की पहली बोलती फिल्म आलम आरा से फिल्मी दुनिया में प्रवेश मिला. इसके बाद उन्होंने अपने विलक्षण अभिनय से साबित कर दिया कि वे बेहतरीन कलाकार हैं. उनके अभिनय का वास्तविक रूप निखरकर दर्शकों के सामने आया फिल्म सिकंदर व मुगल-ए-आजम में. पृथ्वीराज कपूर इन दोनों फिल्मों में निभाये गये किरदार को अपनी जिंदगी का सबसे अहम किरदार मानते थे.
दरअसल, इन्हीं फिल्मों ने उन्हें स्थापित किया और वह हिंदी सिनेमा की विधा को समझ पाये. पृथ्वीराज उन शुरुआती सशक्त व बेहतरीन कलाकारों में से एक थे, जिन्होंने बिना किसी प्रशिक्षण के सिर्फ रंगमंच के अनुभव से अपने किरदारों को जीवंत बनाया. आज भी दर्शक मुगल-ए-आजम के अकबर की बुलंद आवाज को भूल नहीं पाते.
बलराज साहनी को मिली दो बीघा से पहचान
बलराज साहनी उन बेहतरीन अभिनेताओं में से एक थे, जिनमें अभिनय की विशेष कला का समागम था, लेकिन उनकी अभिनय क्षमता का सही तरीके से इस्तेमाल नहीं किया जा रहा था. उन्होंने बतौर कैरेक्टर आर्टिस्ट कई किरदार निभाये, लेकिन उन्हें नायक के रूप में स्थापित किया फिल्म दो बीघा जमीन ने. बिमल रॉय ने इस फिल्म से बलराज साहनी को बतौर अभिनेता स्थापित किया और यहीं से बलराज की जिंदगी बदल गयी.
राजकपूर ने जोकर बनकर दुनिया को हंसाया
राजकपूर ने अपनी जिंदगी में कई बेहतरीन व महत्वपूर्ण फिल्में ही नहीं बनायीं, बल्कि कई यादगार किरदार भी निभाये. लेकिन वे मेरा नाम जोकर के राजू को अपना सबसे पसंदीदा किरदार मानते थे. भले ही यह फिल्म असफल रही, लोगों ने राज कपूर को जोकर के रूप में नहीं स्वीकारा, इसके बावजूद राज कपूर मानते थे कि यह उनके जीवन का सबसे अहम किरदार था. क्योंकि उन्होंने इस एक फिल्म में राजू के किरदार के रूप में अपनी जिंदगी के अहम पहलुओं को जिया था.
मदर इंडिया बनीं नरगिस
मदर इंडिया से पहले नरगिस की पहचान हमेशा रोमांटिक नायिकाओं के रूप में होती थी, लेकिन इस फिल्म से उन्होंने इस छवि को तोड़ा और एक मां का गंभीर किरदार निभाया. इस एक फिल्म से उन्हें पूरे देश की मदर इंडिया बनने का मौका मिला.
मधुबाला ने पायी अनारकली की पहचान
किशोर कुमार की हास्य फिल्मों में नजर आनेवाली मधुबाला जब मुगल-ए-आजम में अनारकली के रूप में दर्शकों से रूबरू हुईं, तो उनका व्यक्तित्व एक अलग ही रूप में सामने आया. इस फिल्म के बाद वह सशक्त और अलग तरह की फिल्मों के किरदार निभाने वाली नायिका के रूप में स्थापित हुईं.
जब गाइड बने देव आनंद
फिल्म गाइड से पहले देव आनंद थ्रिलर फिल्मों में नजर आते थे, लेकिन फिल्म गाइड में उन्होंने राजू गाइड और संत के किरदार को बखूबी निभाया. इसी के बाद देव आनंद की गिनती अलग तरह के किरदारों को निभाने वाले नायक के तौर पर होने लगी.
परिणीता और सिल्क के रूप में सराही गयीं विद्या बालन
विद्या बालन मानती हैं कि उन्होंने फिल्म परिणीता के किरदार में पूरी दुनिया जी ली. उस एक किरदार में उन्होंने शादीशुदा महिला, चुलबुली लड़की और प्यार करने वाली लड़की जैसे अनेकों रूप को जी लिया था. फिल्म द डर्टी पिर की सिल्क से उन्होंने डांस के मर्म को समझा. इसलिए यह दोनों ही किरदार उनके जीवन को साकार करते हैं. वे मानती हैं कि परिणीता से लेकर सिल्क तक के किरदारों ने उन्हें परिणीता से पूर्णत: बनाया है.
पा के ऑरो की खोज पूरी की अमिताभ ने
अमिताभ बच्चन कई दशकों से हिंदी सिनेमा में सक्रिय हैं. उन्होंने दीवार, मुकद्दर का सिकंदर और कई ऐसी सुपरहिट फिल्मों में अभिनय किया, जिनमें उनकी एकल भूमिकाएं थीं. लेकिन स्वयं अमिताभ मानते हैं कि फिल्म पा उनके लिए जिंदगी का सबसे अहम किरदार है. वे मानते हैं कि यह किरदार निभाना न केवल उनके लिए सबसे कठिन था, बल्कि नामुमकिन-सा था. लेकिन इसे सार्थक किया आर बाल्की ने. एक लंबे चौड़े, सशक्त व्यक्ति को प्रोजोनिया बीमारी से ग्रसित बच्चे ऑरो के किरदार में संजोना एक रोमांचकारी सोच थी.
इस फिल्म में अमिताभ ने दोबारा अपने बचपन को जिया. अमिताभ इस किरदार को अपनी जिंदगी में सबसे अहम किरदार इसलिए भी मानते हैं कि क्योंकि इस फिल्म में उन्होंने खुद को भुला कर ऑरो को जिया

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