20120528

बोले तो..लौट रहे हैं रोडछाप


टिकट की खिड़की पर राउड़ी बोल. बाकी काम मुझ पर छोड़..फिल्म ‘राउड़ी राठौड़’ के प्रोमोशनल पोस्टर्स पर इन दिनों यह संवाद खूब नजर आ रहे हैं. आम लोगों में यह बेहद लोकप्रिय हो रहा है. दरअसल, जब से फिल्म ‘राउड़ी राठौड़’ की चर्चा शुरू हुई है, उस वक्त से ही इसकी पंचलाइन बेहद पसंद की जा रही है. इसकी खास वजह यह है कि यह दो पंक्तियों की पंचलाइन बेहद सामान्य से शब्दों में लिखी गयी है और लोगों को इससे अपनापन लग रहा हैं. दूसरे शब्दों में कहें तो राउड़ी के संवादों में फिर से टपोरी अंदाज के नायकों की वापसी हो रही है. यह टपोरी अंदाज नायक का अपना स्टाइल है. वह डिजाइनर कप.डे नहीं पहनता. ब्रांडेड चश्मे नहीं लगाता, लेकिन फिर भी उसके स्टाइल की अपनी दुनिया है. लोग उसे उसी अंदाज में पसंद करते हैं. खुली शर्ट, गले में रूमाल और डुप्लीकेट सनग्लासेज उसकी पहचान हैं. और बोले तो, टेंशन, ठोक डाल उसकी डिक्शनरी के शब्द. इन सब के बावजूद वह लोकप्रिय है. हिट है. हिंदी सिनेमा में टपोरी अंदाज के नायकों को लोकप्रिय बनाने का मुख्य श्रेय अनिल कपूर को जाता है. फिल्म ‘राम-लखन’ में वन टू का फोर करनेवाले अनिल ने इस फिल्म से टपोरी अंदाज के नायकों को मुख्यधारा की फिल्मों का नायक बना डाला था. ये टपोरी, बिंदास अंदाज में बोलते हैं. चलते हैं. लोगों की मदद करते हैं. रफ एंड टफ रहनेवाले इन टपोरियों से पूरी दुनिंया डरती है. लेकिन वह हंसमुख भी होते हैं और भावनात्मक भी. अनिल के बाद फिल्म मुत्राभाई सीरीज में टपोरियों का अलग रूप दर्शकों के सामने आया. एक लंबे अंतराल के बाद एक बार फिर से रूपहले परदे पर ऐसे किरदारों की लोकप्रियता बढ. रही है. फिल्म ‘इशकजादे’ में अर्जुन का किरदार भी अनपढ. टपोरी का ही है. ‘गैंग ऑफ वसैपुर’ में भी टपोरी अंदाज को अहमियत दी गयी है. हाल में दिखायी जा रही फिल्मों में टपोरियों के किरदारों में अलग-अलग राज्यों की झलक है. गौर करें तो ‘गैंग ऑफ वसैपुर’ में बिहार-झारखंड के टपोरियों का अंदाज नजर आ रहा है, तो राउड़ी में साउथ का. ‘इशकजादे’ में यूपी के टपोरी का तो अन्य फिल्मों में मुंबई के टपोरियों का. दरअसल, रोडछाप, रोमियो, टपोरी, छोकरा जैसे नामों से विख्यात यह किरदार भारत के राज्यों के एक ऐसे युवा वर्ग से परिचय कराता है, जो ऐसी जिंदगी जीते हैं और इनकी जिंदगी बेहद दिलचस्प भी होती है. आम युवा वर्ग उनमें अपनी छवि को तलाशता है. इसलिए फिल्मों में वे हमेशा लोकप्रिय रहे हैं और लोकप्रिय होते रहेंगे.

1 comment:

  1. आम आदमी को ही इन महानगरों की भाषा में टपोरी की संज्ञा दी गई है
    शायद परदे पर यही हम सब जी लेते हैं . चाहे वो फिल्म हो या सच्ची जिंदगी ......
    खुबसूरत सीरत के साथ सुन्दर समीक्षा ..........

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