20120314

मटरू और बिजली का रोमांच



विशाल भारद्वाज की नयी फिल्म है मटरू की बिजली का मंडोला. फिल्म का शीर्षक आम फिल्मों के शीर्षक से बिल्कुल अलग है.इस फिल्म की चर्चा जोरों से हो रही है. न सिर्फ इसके शीर्षक की वजह से बल्कि इस फिल्म में उन्होंने लीड किरदारों के साथ साथ अपने दो पसंदीदा कलाकारों को भी आमने सामने ला खड़ा किया है. शबाना आजमी और पकंज कपूर. दोनों ही अपनी अपनी विधाओं के माहिर कलाकार हैं. कई सालों पहले दोनों ने साथ में फिल्म एक डॉक्टर की मौत और मंडी में काम किया था. एक बार फिर दोनों साथ हैं. शबाना से विशाल के संबंध फिल्म मकड़ी के दौरान से हैं और पंकज कपूर उस वक्त से विशाल के साथ जुड़े रहे हैं, जब विशाल ने फिल्मों में शुरुआती की थी. फिल्म ब्लू अंब्रैला व मकबूल दोनों ही फिल्मों में पंकज ने विशाल का पूरा सहयोग किया था. भले ही विशाल की इस फिल्म में मुख्य कलाकार आज के स्टार्स हों. लेकिन फिल्म का दिलचस्प पहलू शबाना आजमी व पंकज कपूर जैसे दक्ष कलाकारों को एक साथ फिर से एक मंच पर अभिनय करते देखना होगा. विशाल वाकई बधाई के पात्र हैं कि उन्होंने अपने संबंधों का उचित इस्तेमाल किया है. चूंकि यह दोनों ही मंझे कलाकार हैं. दोनों ने अपना अपना मुकाम हासिल कर लिया है. जिस दौर में मंडी और एक डॉक्टर की मौत जैसी फिल्में बनी थी.वे अलग दौर था. अब वर्तमान में ऐसे कलाकारों के साथ फिल्मों की परिकल्पना करना और फिर उन्हें ऐसे प्रोजेक्ट के लिए तैयार करना एक मुश्किल काम रहा होगा. दरअसल, वर्तमान दौर में ऐसे ही कलाकारों को जेहन में रख कर फिल्मों की परिकल्पना की जा सकती है. हां, ऐसी पटकथा लिखना व सोचना मुश्किल जरूर है. ऐसी फिल्में बनें तो इसका सबसे बड़ा फायदा यह होगा कि हिंदी फिल्मों के वे वरिष्ठ कलाकार जो इन दिनों न चाह कर भी वैसी फिल्मों में नजर आते हैं, जिन किरदारों में वह फिट नहीं बैठते. हिंदी सिनेमा जगत में ऐसे कई कलाकार हैं. ओम पुरी, परेश रावल, अनुपम खेर, शबाना आजिमी, पंकज कपूर, नसीरुद्दीन शाह, दीप्ति नवल, सुप्रिया पाठक व कई ऐसे वरिष्ठ कलाकार हैं, जिन्हें ध्यान में रख कर स्क्रिप्ट लिखी जा सकती. आज भी इनका अभिनय किसी बिजली की चमक से कम नहीं. निश्चित तौर पर ये कलाकार भी इस बात से वाकिफ हैं कि इन्हें अब लीड किरदारों में नहीं दर्शाया जा सकता. लेकिन विशाल की तरह ही ऐसी स्कि्रप्ट लिखी जा सकती है. जिनमें इन कलाकारों की प्रतिभा का सही इस्तेमाल हो. ताकि फिर से हिंदी सिनेमा में भावनात्मक, महत्वपूर्ण, विषयपरक फिल्में बन सकें. जैसा किसी दौर में हुआ करता है. जिस तरह विशाल ने पंकज कपूर को केंद्र में रख कर ब्लू अंब्रैला बनायी व शबाना को मकड़ी में केंद्रीय भूमिकाएं दीं. ऐसी और भी फिल्में बननी चाहिए. यह सभी कलाकार अभी सक्रिय हैं इसलिए यह बेहतरीन मौका है कि इनकी प्रतिभा का सही इस्तेमाल कर कुछ क्लासिक फिल्में बना ली जायें, ताकि इस दौर में भी व्यवसायिक सिनेमा से अलग कुछ कंट्रीब्यूटिंग फिल्में बन जायें. तो, क्या इन्हें ध्यान में रख कर कुछ ऐसी फिल्मों की परिकल्पना नहीं की जा सकती?

No comments:

Post a Comment