20120312

प्रकृति की गोद में फिल्मोत्सव

कला किसी सीमा तक सीमित नहीं रहती. और फिल्में कला हैं. कला बगैर जुनून के नहीं बनती. और फिल्में बनाना जुनून का ही दूसरा नाम है. फिल्में बनाने के साथ साथ उसे सही दर्शकों तक पहुंचाना भी एक अहम जिम्मेदारी बन जाती है.इन दिनों भारत के कई भागों में कुछ ऐसा ही हो रहा है. जहां एक तरफ बॉलीवुड व देश विदेश में होनेवाले फिल्मोत्सव का आयोजन होता रहा है. वही उत्तराखंड के कुछ गांवों में इन दिनों फिल्मों को लेकर एक अलग ही तरह के आयोजन का माहौल है. उत्तराखंड राज्य के ही कथागोडम से लगभग 70 किलोमीटर दूर इन दिनों सोनपानी फिल्म फेस्टिवल का आयोजन किया जा रहा है. इस फिल्मोत्सव की खास बात यह है कि इसका आयोजन स्थल ऐसे स्थान पर किया गया है , जहां चारों तरफ आपको एपिरीकोट व सेव के पेड़ नजर आयेंगे. प्राकृतिक अंदाज में फिल्मोत्सव आयोजन का यह अलग ही अनुभव है. वाकई, प्रकृति की गोद में यह फिल्मोत्सव कितना आनंदायी अनुभव प्रदान करेगा. जानकर आश्चर्य होगा कि इस फिल्मोत्सव के आयोजक दिल्ली निवासी हैं. आशीश अरोड़ा. उनके जेहन में इस फिल्मोत्सव की बात उस वक्त आयी. जब आज से 9 साल पहले उन्होंने तय किया था कि वे अपने पूरे परिवार के सात पहाड़ी इलाके में बस जायेंगे. उन्होंने दिल्ली से रवानगी भरी. और अपने 12 सिंगल रूम के कॉटेज को थियेटर में बदल डाला. साथ ही ऑरगेनिट वेजिटेबल गाडर्ेन की शुरुआत कर दी.उन्होंने उन लोगों को दोस्त बनाया. जो इस तरह की सोच रखते थे. लेकिन पहाड़ी इलाके में अब भी फिल्मों का माहौल नहीं बन पाया था. इसलिए अरोड़ा ने तय किया कि वह पहाड़ी इलाके में ही थियेटर व फिल्मों के एक गुप्र की शुरुआत करेंगे. पिछले साल उन्होंने हिमालयन विलेज म्यूजिक फेस्टिवल से शुरुआत की. और फिर उन्हें जब गुरपाल सिंह से मिलने का मौका मिला तो उन्होंने इस सोनपरी नामक फिल्मोत्सव का आयोजन करना शुरू किया. दरअसल, यह सच है कि प्रकृति की गोद से अधिक आनंद व सुख कहीं नहीं मिल सकता. फिल्में मनोरंजन का ही माध्यम है. और अगर ऐसे में प्रकृति के साथ इस मनोरंजन का साथ मिले, तो मनोरंजन का इससे बेहतरीन फ्यूजन और क्या हो सकता है. इस तरह के फिल्मोत्सव की परिकल्पना ही अपने आप अलग उत्साह व ऊर्जा जगाती है. साथ ही यहां उस तरह की फिल्मों का चुनाव किया गया है. जो अच्छी होने के बावजूद रिलीज नहीं हो पाती. इस फिल्मोत्सव के माहौल को देख कर आप तंबू सिनेमा कल्चर की परिकल्पना कर सकते हैं कि पहले किस तरह गांव में लोग इक्ट्ठे होकर चौपाल लगा कर तंबू गाड़ कर फिल्में देखा करते थे. अब भी बॉलीवुड के कई कलाकार हैं, जो चकाचौंध की जिंदगी से तंग आकर प्रकृति की गोद में कुछ दिनों के लिए समय बिताते हैं. लगभग हर सेलिब्रिटिज के फार्म हाउस हिल स्टेशन पर ही स्थित है. इसकी वजह यह है कि इन स्थानों पर भले ही चकाचौंध जिंदगी न हो, लेकिन सूकून जरूर है और इसी खोज में तमाम लोग ऐसे स्थानों पर आते हैं. ऐसे में सोनपरी जैसी फिल्मोत्सव का आयोजन सराहनीय प्रयास हैं. देखें, तो मनोरंजन का यह बेहतरीन संगम है.

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