20120208

जंजीर रिलीज के 20 साल बाद देखी थी प्राण साहब ने ःअमिताभ बच्चन







अमित, तुम अगर मेरे घर पर सुबह आओगे, तो तुम्हें भरपेट खाना खिलाऊंगा, दोपहर में आओगे तो थोड़ा कम और शाम में मैं तुम्हें खाने पर नहीं, बल्कि पीने पर बुलाऊंगा. चूंकि प्राण साहब शुरू से अपने सेहत के प्रति सजग रहते थे. सो, वह नाश्ता भरपूर खाते थे, उसके बाद दिन भर की उनकी खुराक बेहद कम थी. शाम के वक्त वह केवल कुछ पेय पध्दार्थ लेना ही पसंद करते थे. अमिताभ को कुछ इसी अंदाज में दावत देते थे प्राण साहब. शायद यही वजह है कि उनके इसी निराले अंदाज अंदाज की वजह से आज भी वह 92 वर्ष में दिल व दिमाग से दुरुस्त हैं. जंजीर में प्राण साहब के सहयोग से ही पहली बार अमिताभ बच्चन को ख्याति मिली. सो, अपने जीवन में अमिताभ उन्हें अपना मार्गदर्शक मानते हैं. प्राण साहब के 92वें जन्मदिवस पर अमिताभ बच्चन ने प्राण के साथ बिताये कुछ लम्हों को साझा किया.

प्राण साहब अच्छी तसवीरें लेते थे. वे बनना तो चाहते थे फोटोग्राफर. लेकिन किस्मत ने उन्हें बना दिया कलाकार. अमिताभ बच्चन उस वक्त सुपरस्टार नहीं थे. एक फैन की तरह ही वह जब पहली बार प्राण से मिले, तो वह डरे थे कि प्राण जिस तरह खलनायक के रूप में डरावने नजर आते हैं, सच में भी वैसे ही होंगे. लेकिन पहली बार ही मिल कर उन्हें लगा कि खलनायक भी भले आदमी होते हैं क्या
उनसे पहली मुलाकात
वर्ष 1960 में मैं पहली बार प्राण साहब से मिला. उस वक्त मैं मुंबई में स्थाई रूप से नहीं रहता था. मैं मुंबई आया था तो मैंने अपने परिवारवालों से कहा कि मैं आरके स्टूडियो जाना चाहता हूं. वहां प्राण साहब शूटिंग कर रहे थे. प्राण साहब वहां एक कुर्सी पर बैठे थे. मैंने उनसे ऑटोग्राफ मांगा तो उन्होंने विनम्रता से मेरा नाम पूछा और ऑटोग्राफ दिया. ऑटोग्राफ लेने के बाद मैंने खुद से यही प्रश्न पूछा था कि क्या वाकई खलनायक भी अच्छे आदमी हो सकते हैं क्या. कुछ सालों के बाद जब मैंने अपने फिल्मी करियर की शुरुआत की.
जंजीर में मिला उनका साथ
मैं प्राण साहब के बेटे सुनील सिकंद से मिला. वह मेरे भाई अजिताभ के करीबी दोस्त थे. उनसे जानकारी मिलती रहती थी प्राण साहब के बारे में. लेकिन मेरा उनका पहला आमना सामना हुआ फिल्म जंजीर के दौरान. उस वक्त उन्होंने अपना रूप बदला था. वह विलेन से सकारात्मक किरदारों में नजर आने लगे थे. मैं नया था. लेकिन प्राण साहब ने मेरी इसमें बहुत मदद की थी. उन्होंने मुझे बताया कि किस तरह लुक भी अभिनय का अहम हिस्सा होता है. प्राण साहब खुद अपने कॉस्टयूम, मेकअप का खास ख्याल रखते थे. जंजीर में मैंने उनके साथ आज तक जितने भी सीन फिल्माये हैं. मेरे जीवन के वह सबसे कठिन दृश्य थे. एक दृश्य में हमें दीवार पर चढ़ना था. वह एक्शन दृश्य था. मेरे लिए मुश्किल शॉट था. चूंकि मैं थोड़ा डरा सा था. लेकिन प्राण साहब वह पहले व्यक्ति थे. जो उस दीवार पर चढ़ गये थे. यह मैं पूरी ईमानदारी से कह सकता हूं कि मैंने जिंदगी में सेट पर सही वक्त पर पहुंचना उनसे ही सीखा है. न सिर्फ वह सेट पर वक्त पर पहुंचते थे. बल्कि साथ ही साथ वह पूरे मेकअप, कॉस्टयूम व अपने रिहर्सल के साथ वक्त से पहले तैयार हो जाते थे. मैं खुशनसीब हूं कि उनके साथ की गयी हिंदी सिनेमा की यादगार फिल्मों में से एक रही. खासतौर से मेरे लिए मील का पत्थर साबित हुई.
सेट पर प्राण साहब
फिल्मों केसेट पर शूटिंग खत्म हो जाने के बाद भी वह घंटों निदर्ेशक के साथ रहते और आगे की प्रोसंसिंग देखते. मुझे आज भी याद है. यारी है ईमान मेरा गाने की रिकॉर्डिंग में उन्होंने पूरे सेट की साज सज्जा पर, सबके कॉस्टयूम पर भी विशेष रूप से ध्यान दिया था, और प्रकाश मेहरा की मदद की थी. प्राण साहब की एक खास बात यह भी थी कि वह कभी किसी से भी किसी भी बात पर कोई बहस नहीं करते थे. गुस्सा उनके स्वभाव में था ही नहीं. गंगा की सौगंध की शूटिंग के दौरान मुझे इस बात की जानकारी मिली कि वह कविताएं भी लिखते हैं और साहित्य लिखने में भी उनकी बहुत रुचि है.

हरफनमौला प्राण
वे खेल के भी शौकीन थे. सो, अगर फिल्म के दौरान कोई मैच होता रहता तो वह उसकी जानकारी जरूर लेते रहते थे. वह शिकार के भी शौकीन थे. उनकी एक और खास बात थी कि उन्हें ढेर सारे चुटकुले आते थे. और वह समय समय पर मौके देख कर बेहतरीन चुटकुले सुनाते रहते थे. प्राण साहब की एक और खास बात जो मुझे आकर्षित करती थी, वह यह थी कि वह जिंदगी को जीना जानते थे. वे केवल काम में ही नहीं डूबे रहते थे. जब काम करते थे. तो दूसरा कोई काम नहीं करते थे. लेकिन जब काम नहीं करते थे. तो वह हर शौक को पूरा करते थे. जैसे उन्हें शाम में स्कॉच का बहुत शौक था. उन्हें सिगरेट से ज्यादा सिगार पीना पसंद था. और वह इसे इस अंदाज में पीते थे कि कई फिल्मों में दर्शकों को उनका यह अंदाज बेहद पसंद आया..यह उनका स्टाइल स्टेटमेंट बन चुका था.
ंशरीर का हर अंग एक भाषा की तरह
अपने पूरे अभिनय करियर के दौरान उन्होंने अपनी आंखें, अपने चेहरे के भाव, होंठ घुमा कर संवाद बोलना, हाथों को अलग अंदाज में दिखाना. हर तरह से वे सारी क्रियाएं कीं, जिनसे अभिनय किया जा सकता था. वाकई, इससे कहा जा सकता है कि प्राण साहब दब अभिनय करते थे, तो दरअसल, उनकी आत्मा भी किरदार में तब्दील हो जाती थी. उनकी एक और खास बात यह भी रही कि वे हमेशा स्क्रिप्ट अपने साथ घर लेकर जाते थे. और निदर्ेशक को कभी उनसे शिकायत नहीं रहती थी. लोगों को यह जान कर आश्चर्य होगा, मगर यह सच है कि हमेशा खलनायकों की भूमिका निभानेवाले प्राण साहब केवल उन्हीं संवादों को बोलने में हिचकिचाते थे और निदर्ेशक से बात करते थे. जिन संवादों में वह महसूस करते थे कि वह अश्लील हैं.
हर मजहब में किरदार
प्राण साहब धर्म निरपेक्ष व्यक्ति थे. वे हमेशा सबका ख्याल रखते थे. वे अपने स्पॉट ब्वॉय से भी सलीके से पेश आते थे. उन्हें इस बात से कभी फर्क नहीं पड़ता था कि कौन किस मजहब से हैं. वे सबके साथ समान व्यवहार करते थे. शायद यही वजह रही कि वे उन अभिनेताओं में से एक हैं, जिन्होंने अपने अभिनय करियर में हर मजहब के किरदार निभाये. फिर चाहे वह मजबूर का माइकल हो, पठान शेर खान का हो, उपकार में एक हिंदू का ही क्यों न हो. हर किरदार को वह बखूबी निभाते थे.
मुझे गलत मत समझना
प्राण साहब जब भी कुछ सिखाते थे. उनका एक अलग अंदाज था. जब भी उन्हें लगता कि मुझे कुछ अलग करना चाहिए तो वह हमेशा कहते, अमित मुझे लगत मत समझना. लेकिन मुझे लगता है. अगर तुम इस अंदाज में करोगे, इस संवाद को ऐसे बोलोगे तो ज्यादा बेहतर होगा. वे अपनी फिल्में नहीं देखते थे. जंजीर के रिलीज होने के 20 साल देखी थी. देखने के बाद उन्होंने मुझे बुलाया और कहा. अमित अच्छा काम किया है तुमने.

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