20120126

देश नहीं, समुदायप्रेम सर्वेपरि

वर्ष 1962 में महबूब खान ने फ़िल्म बनायी थी सन ऑफ़ इंडिया. शांति माथुर के सुर में सजे गीत नन्हा मुन्ना राही हूं.. देश का सिपाही हूं.. भारत के लोकप्रिय देशभक्ति गीतों में से एक है. फ़िल्म में यह गीत एक छोटे बच्चे ने गुनगुनाया है. इस गीत की हर पंक्ति, हर शब्द और फ़िल्मांकन से बच्चों से बुजुर्ग तक प्रभावित हुए.
बच्चे के हाव-भाव में देशभक्ति झलकती थी, गीत आज भी सदाबहार है. हालांकि, फ़िल्म की कहानी पूरी तरह देशभक्ति पर आधारित नहीं थी. इसके बावजूद फ़िल्म के गीत ने दर्शकों के दिलों में जगह बनायी. आज भी गणतंत्र दिवस या स्वतंत्रता दिवस पर यह गीत जरूर गुनगुनाये जाते हैं. महबूब खान ने वर्ष 1957 में मदर इंडिया का निर्देशन किया. वे चाहते थे कि जो कहानी कहना चाहते हैं, उसका संदर्भ व उसका प्रभाव पूरे भारत से हो.
यही वजह है कि आगे भी वह अपनी कई फ़िल्मों में इंडिया शब्द का इस्तेमाल करते रहे. मदर इंडिया आजादी पर आधारित कहानी नहीं थी. लेकिन फ़िल्म ने भारत में महिलाओं की छवि व उनकी स्थिति का सजीव चित्रण किया. ये फ़िल्में उस दौर में बनीं, जब निर्देशक देश को अहमियत देते थे.
तब जाति, धर्म या समुदाय महत्वपूर्ण नहीं था. देश महत्वपूर्ण था. यही वजह रही कि उस दौर की कई फ़िल्में पूरे भारत के संदर्भ में बनायी जाती थी. यह सिलसिला चक दे इंडिया, फ़िर भी दिल है हिंदुस्तानी व स्वदेश जैसी फ़िल्मों तक चला. लेकिन धीरे-धीरे फ़िल्मों से देश की बात खत्म होती जा रही है.
अब देश के बजाय किसी खास समुदाय की बात होती है. उस समुदाय के नायक को देश का नायक बना दिया जाता है. हम गणतंत्र के 63वें साल में प्रवेश कर रहे हैं. एक देश के गणतंत्र होने का अहम पहलू देश की अनेकता में एकता है. आज यह सोच बदल चुकी है. तब सन ऑफ़ इंडिया बनती थी, आज सन ऑफ़ सरदार बन रही है. सिंह इज किंग व स्पीडी सिंह जैसी फ़िल्में भी बन रही हैं. गीतों के बोल में भी हम हिंदुस्तानी.. या देश-स्वदेस जैसे शब्दों का इस्तेमाल नहीं होता. अपने-अपने क्षेत्र की खूबियां गिनानेवाले शब्दों का इस्तेमाल होता है.
दरअसल, हकीकत यही है कि अब हम एकता में नहीं, एकल जीवन में जीना चाहते हैं. हमें किसी देश का नागरिक नहीं, खास समुदाय का राजा बन कर, सिर ऊंचा कर जीने में अधिक खुशी मिलती है. इससे जाहिर है कि आज गणतंत्र शब्द की प्रासंगिकता गौण हो चुकी है.
डीप फ़ोकस
अमेरिकन निर्देशक फ़ेयडर ने भी वर्ष 1931 में सन ऑफ़ इंडिया बनायी. बाद में महबूब खान ने इसी शीषर्क से हिंदी फ़िल्म बनायी.

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