20120123

जमीनी सोच, विश्वव्यापी सफलता



इन दिनों सोशल नेटवर्किंग साइट्स व विश्व स्तरीय फिल्मों की जानकारी देनेवाले साइट्स व अखबारों में bगातार एक फिल्म पर चर्चा हो रही है. फिल्म है बुशांगो. फिलीपिंस के निर्देशक आरियस सोलेटो ने यह फिल्म बनाई है. फिल्म फिलिपिंस के एक आइलैंड पालावान पर आधारित है. वर्ष 2011 के प्रतिष्ठित कान फिल्मोत्सव में आफिशियल सेलेक्शन फॉर डायरेक्टर्स फोर्टनाइट में इसकी स्क्रीनिंग की गयी. वहां मौजूद दर्शकों फिल्म देख कर भावुक हो गये थे. यह फिल्म अब तक कई प्रतिष्टित फिल्मोत्सव में सराही जा चुकी है. बुशांग का संदर्भ यहां निर्देशक ने पालावान आइलैंड के भाग्य से जोड़ा है. इस फिल्म के माध्यम से उन्होंने अपने जनजाति की बहुमूल्य सभ्यता व संस्कृति को धरोहर के रूप में संजोने की कोशिश की है. चूंकि निर्देशक सोलेतो जानते हैं कि उनका आइलैंड व वहां रहनेवाले लोग प्राकृतिक संपदा के धनी है. लेकिन इसकी देख रेख सही तरीके से नहीं हो रही और धीरे धीरे लोग अपनी संस्कृति से कट रहे हैं. सो, उन्होंने बतौर फिल्मकार तय किया कि वह bगातार अपनी जमीन से जुड़ी फिल्में बनायेंगे. चूंकि वे जानते थे कि कहानी भले ही उनके गांव की हो. लेकिन इसका असर पूरी दुनिया पर होगा, क्योंकि पूरे विश्व में कमोबेश यही स्थिति है. लोग व्यवसायीकरण व चमकती दुनिया के बीच अपनी जमीन ही भूलते जा रहे हैं. जबकि वे नहीं जानते कि उनकी जमीन किसी सोने से कम नहीं.बतौर फिल्मकार वाकई उन्होंने एक अहम जिम्मेदारी निभाई है. दरअसल , सच्चाई भी यही है कि वर्तमान दौर में सिनेमा के माध्यम से ही सबसे बड़ी क्रांति जाई जा सकती है या फिर अपनी सांस्कृतिक धरोहर को बचाया जा सकता है. लेकिन ग्लैमर व व्यवसायीकरण के इस दौर में ऐसी फिल्मकारों की प्रासंगिकता नहीं रह जाती. विशेषकर अगर हिंदी सिनेमा के संदर्भ में बात की जाये, तो ऐसे फिल्मकार लगभग गौन ही हैं जो अपनी जमीन से जुड़ी कहानी का साहस फीचर फिल्म के माध्यम से करें. ऐसा नहीं है कि भारत में संस्कृति या फिर जमीनी सच्चाई व उनकी परेशानियों को लेकर फिल्में नहीं बनाई जा रही हैं. फिल्में बन रही हैं. लेकिन उनमें अधिकतर वृतचित्र फिल्में ही होती हैं. चूंकि हिंदी फिल्मों में ऐसे विषय चुनना किसी हिंदी फिल्मकार के लिए एक रिस्क की तरह है. और वे रिस्क लेना नहीं चाहते.ऐसे विषयों पर फीचर फिल्म की परिकल्पना करना भी मुश्किल है. बुशांग ने जिस तरह लगातार अपनी फिल्मों से अपने ही आइलैंड की परिस्थिति, वहां के लोगों की मासूमियत व वहां की प्राकृतिक संपदा, संस्कृति का बखान किया है. आज पालावान विश्व में चर्चा का विषय है. वहां की प्राकृतिक खूबसूरती देखने के बाद धीरे धीरे वहां फिल्मों की शूटिंग की गुंजाइश हो रही है. वहां रोजगार की संभावनाएं हो रही हैं. कई एनजीओ व संस्थाओं की इस आइलैंड पर नजर गयी है. किसी फिल्म की यही कामयाबी है. यह संभव हो पाया. क्योंकि सोलेतो ने इसे अपनी जिम्मेदारी समझा. भारत में बांगला , मराठी, अस्मिया व दक्षिण भारत में कुछेक फिल्मकार ने इस तरह की पहल की हैं. जहानु बरवा उनमें से एक हैं. लेकिन हिंदी सिनेमा में ऐसे फिल्मकार न के बराबर हैं.

1 comment:

  1. और मैं गधा, अब तक इतने शानदार ब्लॉग से दूर था.

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