20120126

25 निर्देशक, 14 देश, एक फिल्म

आगामी 25 मई को 13 देशों के 19 शहरों में एक ऐसी फिल्म रिलीज होने जा रही है. जिसकी कहानी तो एक है. लेकिन उसे कहने वाले २५ लोग हैं. अर्थात ओनर नामक १०० मिनट की यह फिल्म 14 देशों के 25 चुनिंदा निर्देशक बना रहे हैं. सिनेमा के इतिहास में ऐसा पहली बार होगा. जब किसी फिल्म की क्रेडिट लाईन में पूरे 25 निर्देशकों का नाम जायेगा. जिस तरह यह फिल्म अपने आप में एक चौंकानेवाली है. इसके क्रेडिट भी आश्चर्य में डाल देंगे. अच्छी बात यह है कि इन 14 देशों के निर्देशकों में भारत के पांच फिल्मकार भी शामिल हैं. विशेष मनकल , नेहा रहेगा ठक्कर, अस्मित पथारे, वरुण माथुर व प्रशांत सेहगल मिल कर इस फिल्म के लिए भारत का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. इस फिल्म पर चर्चा इसलिए भी जरूरी है क्योंकि भारत जहां सिनेमा एक सक्रिय संचार माध्यम है, जहां कई फिल्म मेकिंग के संस्थान हैं और हर वर्ष कई विद्यार्थी सिनेमा को एक विषय के रूप में पढ़-समझ रहे हैं. ऐसे में उन्हें सिनेमा की दुनिया में हो रहे ऐसे प्रयोगों से जरूर वाकिफ रहना चाहिए. ताकि वे खुद भी ऐसे प्रयास कर सकें. भारत में जहां हिंदी सिनेमा के मुख्यधारा स्ट्रीम में अपनी जगह बनाने में कई प्रतिभाएं नाकामयाब हो जाती हैं. उनके लिए इस तरह के प्रयोग व प्रयास सार्थक साबित हो सकते हैं. चूंकि सिनेमा ही वह सशक्त माध्यम है, जिसमें लोग बिना एक दूसरे से मिले भी एकजुट होकर काम कर सकते हैं और अपनी बातों को लोगों तक भी पहुंचा सकते हैं. किसी एक स्थान पर बैठे अपनी कहानी से वह पूरी दुनिया को कई चीजों से अवगत करा सकते हैं. जागरूक कर सकते हैं. कोलैबफीचर गुप्र की यह पहल काबिलेतारीफ है. उन्होंने अपने इस पहल से साबित कर दिया है कि सिनेमा को किसी बंधन में बांधने की जरूरत नहीं है. सराहना करनी होगी, फिल्ममेकर मार्टी शिआ ईयान बोनर, जेवियस अगुड, टॉम किंगस्ले ने की, जिन्होंने इस प्रोजेक्ट की परिकल्पना की. न सिर्फ परिकल्पना की, बल्कि इसे साकार भी कर दिखाया. उन्होंने एक इंटरनेशनल फीचर गुप्र की स्थापना की कोलाबफीचर के रूप में. उन्होंने आनलाईन माध्यम से चुनिंदा लेखकों को चुना, क्योंकि वे जानते हैं कि वर्तमान में ओनलाईन संचार का सबसे उत्तम तरीका है. इस फिल्म एक खास बात यह भी होगी, कि इस फिल्म की कहानी एक ही है. एक बैग की इर्द-गिर्द ही पूरी कहानी घूमेगी. गौरतलब है कि इस फिल्म का बजट भी बहुत अधिक नहीं है. कम संसाधन लेकिन हर निर्देशक कहानी अपने तरीके से कहेगा. और उसके पोस्ट प्रोडक्शन का काम भी वे खुद ही करेंगे. लेकिन फिर भी कहानी का नैरेशन एक दूसरे से जुड़ा रहेगा. तकनीकी क्रांति के इस दौर में जहां विकीपिडिया जैसे साइट भी आर्थिक रूप से परेशानियां झेल रहे हैं. सरकार द्वारा फेसबुक पर लगातार प्रतिबंध bगाने की बात की जा रही है. ऐसे में दुनिया में लोग केवल सोच के दम पर कमाल दिखा रहे हैं. भारतीय सिनेमा की दुनिया में ऐसे प्रयोगात्मक कदम उठाने की सख्त जरूरत है. चूंकि यहां ऐसी कई प्रतिभाएं हैं, जो उचित अवसर न मिलने के कारण खोती जा रही हैं. चूंकि यह भी सत्य है कि सोच ही सिनेमा का सबसे महत्वपूर्ण तत्व है.

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