20111214

अपनी मिट्टी, अपने राज्य को तवज्जो देने की मुहिम है देसवा


अपनी मिट्टी, अपने राज्य को तवज्जो देने की मुहिम है देसवा

बिहार-झारखंड राज्य के सुदूर इलाकों में आज भी लोग कई ऐसी परेशानियों का सामना कर रहे हैं, जिसकी चर्चा कहीं नहीं होती. खासतौर से युवाओं के लिए रोजगार एक बड़ा मुद्दा है. बिहार से ताल्लुख रखनेवाली अभिनेत्री नीतू चंद्रा व उनके भाई निदर्ेशक नितिन चंद्रा ने 9 दिसंबर को रिलीज हो रही फिल्म देसवा से बिहार से जुड़े कुछ ऐसे ही जमीनी मुद्दों पर प्रकाश डालने की कोशिश की है.

भोजपुरी फिल्मों के बारे में आम अवधारणा कुछ ऐसी है कि भोजपुरी फिल्मों का मतलब है अश्लील गाने व फुहड़ दृश्य. ऐसी फिल्में परिवार के साथ नहीं देखी जा सकती. भोजपुरी इंडस्ट्री ने 50 साल पूरे कर लिये हैं. इसके बावजूद अब तक भोजपुरी फिल्मों में सामाजिक मुद्दों पर कम ही फिल्में बनी हैं. शुरुआती दौर में पारिवारिक मूल्यों पर आधारित कुछ फिल्में बनती थीं. लेकिन पिछले कई सालों से पारिवारिक फिल्में भी नहीं बन रहीं. उस लिहाज से हाल ही रिलीज हुई फिल्म सैयां ड्राइवर से उम्मीद इसलिए बंधी. चूंकि यह फिल्म साहित्यिक कृति पर आधारित थी. भोजपुरी फिल्मों को स्तरीय पहचान दिलाने में एक और मुहिम फिल्म देसवा में दिखाई दे रही है. फिल्म में बिहार के कई समस्याओं पर प्रकाश डालने की कोशिश की गयी है. निश्चित तौर पर फिल्म में दिखाये गये मुद्दों का निदर्ेशक के व्यक्तिगत अनुभव से सीधा नाता रहा होगा. तभी उन्होंने बारीकियों से इन मुद्दों को दर्शाने की कोशिश की है.फिल्म में मुख्य किरदार निभानेवाले सभी कलाकार क्रांति प्रकाश झा, आशीष विद्यार्थी, पंकज झा, दीपक सिंह व अजय कुमार मूलतः बिहार से ही हैं.

जातिवाद

जातिवाद को लेकर अब तक कई फिल्मों का निर्माण हो चुका है. भोजपुरी फिल्मों में भी इस मुद्दे को उठाया गया है. लेकिन सिर्फ प्रेम विवाह के प्रसंग में. देसवा इस मुद्दे को सामाजिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए जातिवाद के मुद्दे को उकेरने की कोशिश की गयी है.

युवाओं के लिए रोजगार का मुद्दा

बिहार झारखंड के गांवों में रोजगार का मुद्दा एक अहम मुद्दा है. फिल्म देसवा के तीन मुख्य किरदारों के माध्यम व उनकी परिस्थिति के आधार पर फिल्म में रोजगार के मुद्दे को भी दर्शाया गया है. रोजगार न मिलने पर मजबूर होकर पढ़े लिखे युवाओं को भी किस तरह के काम करने पड़ते हैं. इस पर प्रकाश डालने की कोशिश की गयी है.

अन्य राज्यों में बिहारियों की स्थिति

भारत के कई राज्यों में बिहारियों के साथ कई बार बदसलूकी की जाती है या उनका मखौल उड़ाया जाता है. इस बारे में नितिन कहते हैं कि इससे बिहार की छवि खराब हुई है. क्योंकि लोगों ने बिहार को आंखों से नहीं देखा है. कानों से सुना है. इसलिए यह जरूरी था कि वास्तविक तसवीर प्रस्तुत की जाये.

दहेज प्रथा

दहेज प्रथा आज भी एक बड़ा मुद्दा है. आम व्यक्ति अपनी बेटी की शादी में धन न जुटा पाने की वजह से कई आर्थिक परेशानियों से जूझता है. फिल्म में इस मुद्दे पर भी प्रकाश डालने की कोशिश की गयी है.

क्यों बनी देसवा और किसके लिए है देसवा ः नितिन चंद्रा, निदर्ेशक

देसवा शायद इसलिए बनी क्योंकि बदलते बिहार और बिहार के सुधरती परिस्थिति को एक माध्यम चाहिए था. सिनेमा से बड़ा माध्यम कोई नहीं. भोजपुरी सिनेमा जिन्होंने अपने ही राज्य की उस पहचान को तवज्जो नहीं दिया. देसवा उस ओर एक पहले हैं. देसवा भाषा और क्षेत्र के बंधन को तोड़ती है. जैसे माजिद मसिज या विटोरिया डासिका की फिल्में तोड़ती हैं. मैंने इस फिल्म से सिर्फ और सिर्फ भोजपुरी वर्ग को टारगेट किया है. अगर उन्हें यह फिल्म समझ में आ जाती है तो मैं समझूंगा फिल्म का उद्देश्य पूरा हुआ. भोजपुरी सिनेमा के 50 साल पूरे होने पर यह फिल्म इस इंडस्ट्री को ही समर्पित है. कोशिश है कि यह एक माहौल तैयार करेगा.

एक शुरुआत है देसवा. साथ दें ः पद्मभूषण शारदा सिन्हा, सुप्रसिध्द लोकगायिका

देसवा फिल्म भोजपुरी में एक नयी शुरुआत कर रहा है. एक पहल है. नितिन ने लौ जलाई है और हम सबको इसका स्वागत करना चाहिए. मैं जल्दी किसी भी भोजपुरी फिल्म में नहीं गाती. लेकिन इस फिल्म के गीत के बोल और फिल्म की पूरी कहानी हमारी अपनी मिट्टी से जुड़ी है. वहां के लोगों से जुड़ी है. भोजपुरी में अपने किस्म की पहली फिल्म है. इसके बाद निश्चित रूप से भोजपुरी सिनेमा में भी एक नयी सोच आयेगी कि केवल मसाला या फुहड़ चीजों की अनुपस्थिति के बावजूद फिल्में स्तरीय हो सकती हैं. मैंने कई बार भोजपुरी के फिल्मकारों से सुना है कि जब तक मसाला नहीं होगा. ऐसे गाने नहीं होंगे. फिल्म पसंद नहीं की जायेगी. लेकिन देसवा ने एक क्रांति लायी है. इसलिए मैं तहे दिल से चाहूंगी कि दर्शक एक बार जरूर देखें देसवा.

पहली बार किसी भोजपुरी फिल्म के गीत के बोल समझ में आये ः सोनू निगम, गायक

मैं प्रायः हिंदी फिल्मों में ही गाता रहा हूं. लेकिन देसवा में मैंने दो गीत गाये और गाने में भरपूर आनंद भी उठाया, क्योंकि यह पहली बार था, जब किसी भोजपुरी फिल्म के गीत के बोल मुझे समझ आये. गाने फिल्म की स्क्रिप्ट के मुताबिक हैं और इस बात से बेहद खुशी है कि एक अच्छी फिल्म के साथ मैं जुड़ा.

देसवा एक नयी सोच है ः स्वानंद किरकिरे, लेखक, गीतकार, गायक

देसवा एक नयी सोच है. भोजपुरी सिनेमा में देसवा के बाद निश्चित तौर पर लोग यह सोचने पर मजबूर होंगे कि भोजपुरी फिल्में भी स्तरीय हो सकती हैं. चूंकि फिल्म में फुहड़ता नहीं एक विषय परोसा गया है. मुद्दों को उठाया गया है, जिससे वाकई बिहार, झारखंड के लोग जूझ रहे हैं. निश्चित तौर पर लोग इस फिल्म से खुद को जोड़ने की कोशिश करेंगे.

एक ईमानदार कोशिश ः आशीष विद्यार्थी, वरिष्ठ रंगकर्मी व अभिनेता

मैं बेहद आश्चर्यचकित था, जब मुझे नितिन ने यह स्क्रिप्ट सुनाई थी. चूंकि इससे पहले तक भोजपुरी सिनेमा की स्क्रिप्ट में कभी इस तरह की स्क्रिप्ट नहीं सुनी थी. मैं देसवा की सराहना इसलिए नहीं कर रहा, क्योंकि मैंने इस फिल्म में एक्टिंग की है. बल्कि इसलिए क्योंकि यह एक ईमानदार कोशिश है. देसवा में अपनी ही मिट्टी की कहानी है. वहां जाकर शूटिंग की गयी है और वहीं की समस्याओं और वास्तविक तसवीरों को दर्शकों तक पहुंचाने की कोशिश की गयी है. इसमें कुछ भी बनावटी नहीं हैं. खासतौर से भोजपुरी सिनेमा को इस तरह की शुरुआत की जरूरत है.


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