20111229

युवाओं के आदर्श क्यों हैं अनुराग कश्यप




ेमुंबई के वर्सोवा इलाके में आरामनगर में एक गैरेज से मिलती जुलती छोटी सी जगह है. अगर आप यह सोच कर चलें कि उस इलाके के किसी व्यक्ति से पूछने पर आप उस जगह को आसानी से तलाश सकते हैं, तब भी आपको वहां पहुंचने में परेशानी होगी.और अगर पहुंच भी जायें तो वहां की माहौल को देख कर अनुमान नहीं लगा सकते कि उस छोटी सी जगह पर बैठ कर ही देवडी, शैतान, गैंंग ऑफ वसीपुर जैसी फिल्मों की नींव रखी जाती है. पहुंचने पर आप और भी चकित रह जायेंगे. दरवाजे पर पहुंचते ही अगर आपने बोर्ड पर लिखी चेतावनी नहीं पढ़ी, तो निश्चित तौर पर आप गिर सकते हैं. यह पूरा दृश्य लीक से हटकर इंडस्ट्री में अपनी पहचान स्थापित करनेवाले निदर्ेशक अनुराग कश्यप के दफ्तर का है. यहां उनके ऑफिस का विवरण देना लाजिमी इसलिए है, चूंकि वाकई अनुराग जिस प्रवृति के निदर्ेशक हैं. उनके दफ्तर का माहौल भी उनके व्यक्तित्व की झलक दे जाता है. प्रवेश द्वार पर लिखी यह चेतावनी कि संभल कर चलें, वरना आगे ठोकर है. दरअसल, अनुराग कश्यप की अलग व अनोखी दुनिया की एक छवि प्रस्तुत करता है. एक ऐसी दुनिया की झलक जहां अगर आपने खुद सतर्कता नहीं बरती. तो ठोकर लगना लाजिमी है. उनके दरवाजे पर लिखी गयी चेतावनी के माध्यम से शायद अनुराग सजग करना चाहते हैं कि वाकई अगर आप ध्यान से आगे नहीं बढ़े तो आप ठोकर खाकर गिर सकते हैं. जहां मुंबई के हर बड़े निदर्ेशक अंधेरी के पॉश इलाकों में वेल फर्निस्ड स्थानों पर अपने दफ्तर का संचालन करते हैं. वही अनुराग गैरेज सी दिखनेवाली जगह का भी सही इस्तेमाल कर रहे हैं. उनका यह व्यक्तित्व व जिंदगी के प्रति उनकी वास्तविकता उनकी फिल्मों में नजर आता है. यही वजह है कि उनकी फिल्में दिखावटी नहीं होती. उनके किरदार भारी भरकम कपड़ों में नजर नहीं आते. कामयाब होने के बाद आज बी अनुराग ने मुंबई में अपना मकान नहीं खरीदा. जबकि यह सपना मुंबई आये हर व्यक्ति का होता है. इस बात पर वह अपनी बेबाक राय देते हैं कि उन्हें फिल्में बनाना है. वही उनका सपना है.अलग तरह की फिल्में. औरों से अलग और अन्य लोगों को भी मौके दिलाने हैं. वे साफ कहते हैं कि घर नहीं खरीद सकता. फिर फिल्में नहीं बना पाऊंगा. उन्हें अपने दोस्तों पर पूरा भरोसा है. उनका कहना है कि जरूरत पड़ने पर वे मेरा साथ दे देंगे. और भाई अभिनव तो ही. आर्थिक स्थिति बुरी हो जायेगी तो अभिनव साथ दे देगा. यही हैं अनुराग कश्यप. और शायद यही वजह है कि किसी फिल्मी खानदान से न होने के बावजूद उन्होंने अपनी जिद्द व जूनून से इंडस्ट्री में अपनी पहचान ही नहीं बल्कि धाक स्थापित कर ली है. वे फिल्मों में ही जीते हैं. उठते बैठते उनकी जिंदगी में फिल्में ही सबकुछ हैं. वे मीडिया से. आमलोगों से आमलोगों के बीच जाकर बात करते हैं.खासतौर से युवाओं से बात करने में उन्हें बड़ा मजा आता है. वे दो टूक बात करते हैं और दार्शनिक बातों की बजाय फिल्मी जगत की सच्चाई से लोगों को रूबरू कराते हैं. सबकुछ बेबाकी से कहते हैं. जरूरत पड़ने पर इंडस्ट्री के किसी भी व्यक्ति के हक के लिए खड़े हो जाते हैं.फिर चाहे वह उनके दोस्त विक्रमादित्य मोटवाने हों, या संजय बाजपेयी या फिर महानायक अमिताभ बच्चन के खिलाफ बयानबाजी ही क्यों न हो. वे चुप नहीं बैठते. वे निडर हैं. निर्भीक हैं. बेबाक हैं. वे बेबाकी से बिना किसी फिक्र के कहते हैं कि उनकी फिल्म की यही यूएसपी है कि उनकी फिल्म में आमिर नहीं है. कहानी है. वे कहानी को यूएसपी मानते हैं न कि किसी सितारे को. चूंकि वे जानते हैं कि उन्होंने किसी और के दम पर अपनी पहचान नहीं बनायी. देवडी, नो स्मोकिंग, ब्लैक फ्राइडे, उड़ान, दैट्स गर्ल इन यलो बुट्स जैसी प्रयोगात्मक फिल्मों का निदर्ेशन कर उन्होंने साबित कर दिया है कि वे सिर्फ मसाला नहीं परोसेंगे. उन्होंने कई युवाओं को भी मौका दिया. अनुराग उन निर्माताओं में से एक हैं, जिन्हें अपनी फिल्मों के निर्माण के लिए कई निर्माताओं के दरवाजों पर नकारा जा चुका था. लेकिन अनुराग ने छोटे छोटे प्रयास कर आज अपनी वह जगह बनायी. यही वजह है कि आज वह युवा सिनेमा व युवा निदर्ेशकों के मार्गदर्शक माने जाते हैं. वर्तमान में कोई भी युवा अगर मुंबई आकर निदर्ेशक बनने का ख्वाब देखता है तो वह अनुराग कश्यप को ही अपना आदर्श मानता है. हर युवा निदर्ेशक शान से कहता है कि वह अनुराग कश्यप बनना चाहता है.इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि वर्तमान में अनुराग जिस कदर बिना किसी पृष्ठभूमि के प्रतिभाशाली युवाओं को लगातार नया मंच देने की कोशिश कर रहे हैं. शायद ही कोई निदर्ेशक या निर्माता यह करने की हिम्मत रखता हो. उन्हें जब भी मौका मिलता है वे फिल्म इंस्टीटयूशन पर जाते हैं. एमटीवी पर उन्होंने अपने व्यवहारिक निदर्ेशन के अनुभवों को10 सेशन के माध्यम से सांझा किया है, जिसे हर फिल्मी विद्यार्थी को यूटयूब पर जरूर देखना चाहिए. उन्होंने तुम भी नामक संस्था का भी निर्माण किया है. जहां युवा फिल्मकारों की चयनित कहानियों को अनुराग फिल्म बनाने का मौका देंगे. इसके साथ ही हाल ही में उन्होंने अपने दोस्त विक्रमादित्य मोटवाने व विकास बहल के साथ मिल कर फानटॉम नामक कंपनी की शुरुआत की है. जिसमें युवा टैलेंट्स को मौके मिलेंगे. इतना ही नहीं अगर कोई युवा लेखक चाहे तो अपनी कहानी उनके व्यक्तिगत इमेल आइडी पर भी भेज सकते हैं. उनके यही सार्थक प्रयासों ने आज उन्हें भीड़ से अलग चेहरा बना दिया है. हर सफल व्यक्ति के पीछे उसका संघर्ष ही होता है. अनुराग इस लिहाज से अलग नहीं कि वह पहले व्यक्ति हैं, जिन्होंने संघर्ष से जूझते हुए मुकाम हासिल किया. लेकिन अनुराग की तरह इंडस्ट्री में कम ही लोग ऐसे हैं जो कामयाब हो जाने के बावजूद सिर्फ अपनी नहीं बल्कि समूह के बारे में सोचते हैं और नयेपन को मौके देना चाहते हैं. वह महान काम नहीं कर रहे तो कम से कम युवाओं के लिए रास्ते आसान जरूर कर रहे हैं, ताकि कम से कम औरों को उनकी तरह 17 साल का लंबा इंतजार न करना पड़े. और शायद यही वजह है कि वे इंडस्ट्री के कई लोगों के आंखों की किरकिरी हैं. चूंकि इस रूप में ही सही एक तरह की क्रांति तो ला ही दी है उन्होंने.

चलते चलते
अनुराग कश्यप की पहली फिल्म पांच आजतक रिलीज नहीं हुई. इसके बाद भी लंबे अंतराल के बाद ब्लैक फ्राइडे रिलीज हुई. उनकी फिल्में हमेशा विवादों में फंसी.
वास्तविक लोकेशन, सामान्य कैमरे व नये चेहरों, नये तकनीशियनों के साथ काम करना पसंद करते हैं अनुराग.
इम्तियाज, विक्रमादित्य, राजकुमार गुप्ता, विशाल भारद्वाज अनुराग के करीबी दोस्तों में से एक हैं.
विक्रामादित्य की फिल्म उड़ान की पटकथा बहुत साल पहले से तैयार थी. लेकिन निर्माता न मिल पाने के कारण विक्रमादित्य फिल्म नहीं बना पा रहे थे. अनुराग ने उनका साथ दिया.
शुरुआती दौर में अनुराग कश्यप ने मुंबई के फुटपाथों पर भी रात गुजार लेते थे. अभिनेता रघुवीर यादव ने उन्हें अपने घर के छत पर रहने की जगह दी थी.

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