20111014

बॉक्स ऑफिस पर उलझते रिश्ते, सुनहरे सपने और हंसी के ठहाके

इस हफ्ते बॉक्स ऑफिस पर एक साथ तीन फिल्में रिलीज हो रही हैं. उलझते-सुलझते रिश्तों के बीच, टूटते-बिखरते-बनते सपनों और हंसी के ठहाकों में क्या है दर्शकों के लिए बेहतर बता रही हैं अनुप्रिया अनंत

ब्रेक होती जिंदगी

फिल्म रिव्यू

फिल्म ः लव ब्रेक अप्स जिंदगी

कलाकार ः दिया मिर्जा, जायेद खान, साइरस, टिस्का चोपड़ा

निदर्ेशक ः साहिल संघा

रेटिंग ः 1.5 स्टार

दीया मिर्जा ने अपने अभिनय करियर अब तक ऐसी कोई भी हिट फिल्म नहीं दी. जिसमें वे एकल अभिनेत्री रही हों. सो, उन्होंने इस बार प्रोडक्शन की कमाल संभाली और अपने दोस्त जायेद के साथ वह पहली बार फिल्म लव ब्रेक अप्स जिंदगी लेकर आयीं. जिनमें उन्होंने खुद अभिनय भी किया है. हिंदी सिनेमा में इन दिनों प्यार और ब्रेकअप्स को लेकर कई कहानियां दिखाई जा रही हैं. उलझे रिश्तों पर आधारित कहानियां भी लगातार परोसी जा रही हैं. लव ब्रेक अप्स भी उनमें से अलग नहीं है. फिल्म में बनते बिगड़ते रिश्तों के बीच पनपते प्यार की कहानी है. जय और नैना अपनी जिंदगी से खुश हैं. लेकिन उन्हें लगता है कि इसके बावजूद उनकी जिंदगी में किसी तरह का सुनापन है. गोविंद बिंदास रहनेवालों में से हैं. लेकिन वह भी अपनी लव लाइफ लेकर परेशान है. कुछ इसी तरह सभी परेशान किरदार इकट्ठे होते हैं. हालात उन्हें सिखाते हैं कि वह किस तरह अपनी जिंदगी में प्यार को बरकरार रख सकते हैं. फिल्म की कहानी जबरन बढ़ती चली जाती है और अंततः फिल्म बिल्कुल आम कहानियों की तरह सुखद अंत के साथ समाप्त हो जाती है. फिल्म के संगीत को छोड़ दें, तो फिल्म में कुछ भी प्रभावित नहीं करता. शादी, व्याह के भव्य लोकेशन हमने कई और फिल्मों में भी देखा है और दर्शक अब ऐसी फिल्में देख कर भी बोर हो चुके हैं. निदर्ेशक के रूप में फिलहाल साहिल अपनी पहली फिल्म से तो निराश करते हैं.

2. टूटते-बिखरते सपने

फिल्म ः साउंडट्रैक

कलाकार ः राजीव खंडेलवाल, सोहा अली खान

निदर्ेशक ः नीरव घोष

ंरेटिंग ः 2.5

काफी अरसे से नीरव ने साउंडट्रैक की परिकल्पना की थी. लेकिन कुछ खास कारणों की वजह से फिल्म रिलीज नहीं हो पायी थी. लेकिन नीरव का सपना अब पूरा हो रहा है. फिल्म साउंडट्रैक संगीत के इर्द-गिर्द घूमती कहानी है. नायक रौनक कॉल अपने पिता की मृत्यु के बाद तय करता है कि वह अपने पिता का सपना पूरा करेगा और सपने को पूरा करने के लिए वह मुंबई आता है. वह मुंबई अपनी आंखों में सपना, हाथ में गिटार लेकर आया. उसे पता नहीं कि मंजिल कहां मिलेगी. अपने सपने को पूरा करने के लिए वह डीजे बनने का रास्ता चुनता है. धीरे धीरे वह वहां के माहौल से वाकिफ होता है और उसका हिस्सा बन जाता है. अचानक उसे एक ऑफर मिलता है. लेकिन हमेशा अधिक ध्वनि के बीच रहने की वजह से उसके कान खराब हो जाते हैं. जिस सपने को पूरा करने के लिए वह हमेशा तरसता रहा. वह उस वक्त पूरा होता है, जब वह सुन नहीं सकता. वह दुखी होकर एक ऐसा रास्ता चुनता है, जहां से लौट पाना मुश्किल हो जाता है.इसी बीच उसे संगिनी मिलती है गौरी. गौरी भी सुन नहीं सकती. दोनों संगीत को महसूस करते हैं और कहानी आगे बढ़ती है. फिल्म साउंडट्रैक निस्संदेह निदर्ेशक की मौलिक सोच का ही नतीजा है. सोच बेहतरीन है. लेकिन कहानी को भावना से जोड़ने में कमी रह गयी है. कहानी भावुक नहीं कर पाती. कई चीजें बनावटी और लाउड लगती है. राजीव ने हर बार की तरह इस बार भी बेहतरीन अदाकारी की है. सोहा ने अपनी बाकी फिल्मों की अपेक्षा इस बार बेहतरीन काम किया है. फिल्म अगर संगीत को समर्पित हो तो निश्चित तौर फिल्म के गीत से उम्मीदें की जा सकती हैं, लेकिन उस लिहाज से साउंडट्रैक के गाने कमजोर हैं.

3. पुरानी सी कॉमेडी रास्कल्स

फिल्म ः रास्कल्स

कलाकार ः संजय दत्त, अजय देवगन, कंगना

निदर्ेशक ः डेविड धवन

रेटिंग ः 1.5 स्टार

कई अरसे बाद फिर से डेविड धवन ने निदर्ेशन की कमान संभाली थी. लेकिन एक बार फिर वह निराश करते हैं. बावजूद इसके कि फिल्म में संजय दत्त और अजय देवगन जैसे दिग्गज अभिनेता है. फिल्म किसी भी रूप में प्रभाव छोड़ने में नाकामयाब रहती है. फिल्म में कहानी कहां से शुरू से कहां से खत्म होती है. इस बात का अनुमान लगा पाना दर्शकों के लिए कठिन होगा. डेविड की अन्य फिल्मों की तरह ही इस फिल्म के किरदार चेतन और भगत ठग हैं. वे लोगों को बेवकूफ बनाते हैं और उनसे पैसे ऐंठते थे. इसी क्रम में उनकी मुलाकात खुशी से होती हैं. वे दोनों खुशी को अपने प्यार में फंसाने की साजिश रचते हैं. दोनों एक दूसरे के दुश्मन बन जाते हैं. फिर बेतरतीब तरीके से कॉमेडी के सिचुएशन गढ़े गये हैं, जो हजम नहीं होते. फिल्म में निदर्ेशन, अभिनय,कहानी के आधार की बात की जाये, तो यह सारी चीजें फिल्म से नगन्य हैं. कंगना ने फिल्म में एक्टिंग की बजाय अंग प्रदर्शन पर अधिक ध्यान दिया है. फिल्म दर्शकों को एक ही तरह की कॉमेडी, पुराने फॉर्मूले वाली कॉमेडी से अधिक कुछ भी नया नहीं देती.

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