20111014

जादू नगरिया है बिहार ः प्रवीण कुमार



बिहार में अपहरण है, भ्रष्टाचार है, जूर्म करनेवाले लोग हैं. अब तक फिल्मों में बिहार की कुछ ऐसी ही छवि प्रस्तुत की जाती रही है. लेकिन फिल्म जो डूबा सो पार, इट्स लव इन बिहार के माध्यम से बिहार की सकारात्मक छवि को प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहे हैं डेरी ओनसोन से संबध्द रखनेवाले निदर्ेशक प्रवीण कुमार

अब तक हिंदी सिनेमा जब भी बिहार पर फिल्में बनाई जाती हैं. यही दिखाया जाता है कि यहां बलात्कार की संख्या, जूर्म, अपहरण जैसे वारदात अधिक होते हैं. लेकिन सच्चाई यह है कि बिहार में भी प्यारे लोग रहते हैं. मासूम रहते हैं. सारी बातों से इतर भी वे कुछ अलग सोचते हैं. फिल्म जो डूबा सो प्यार...के माध्यम से बस यही कोशिश है कि लोगों का भ्रम टूटे. उनकी गलतफहमी दूर हो बिहार के बारे में. कुछ ऐसी ही सोच रखते हैं फिल्म के निदर्ेशक प्रवीण कुमार. बिहार के डेरी ओन सोन के रहनेवाले प्रवीण मानते हैं कि छोटे शहरों में जिंदगी जीने का एक अलग ही अंदाज है. बकौल प्रवीण इस फिल्म से यही कोशिश है कि मैं बिहार की प्यारी सी जादूमयी दुनिया को लोगों के सामने दिखाऊं. मेरी कोशिश यही थी कि मेरी फिल्म में बिहार सिर्फ पृष्ठभूमि के रूप में नहीं बल्कि किरदार के रूप में स्थापित हो. इस कहानी को मैंने 2007 में पूरा किया था. फिल्म में नव युवक की प्यार भरी कहानी है. फिल्म के सभी किरदार बिहार के व्यक्तित्व को अलग अलग अंदाज में प्रस्तुत करेंगे. फिल्म की परिकल्पना इसलिए कर पाया चूंकि खुद यहां रहा हूं. तो इस बात से इत्तेफाक रखता हूं कि दोस्तों के बीच कैसी बातें होती हैं. उन बातों को ही जेहन में रखा था. तो लगा कि कोई कहानी कही जा सकती है. फिल्म की कहानी में बिहार के मिथिला प्रदेश की मधुबनी पेंटिंग की भी अहम भूमिका हैं. फिल्म की शूटिंग भोपाल समेत बिहार के बोध गया में भी की गयी है. फिल्म में प्रेम कहानी के साथ साथ हास्य तो है ही .एक संदेश भी है. मेरी कोशिश यही है कि न सिर्फ बिहार के लोग बल्कि बिहार से बाहर के लोगों को फिल्म से जोड़ पाऊं. ताकि बिहार के प्रति उनकी सोच बदल पाऊं. फिल्म में मुख्य भूमिका निभा रहे हैं अभिनेता विनय पाठक( विनय भी बिहार से ताल्लुक रखते हैं, आनंद तिवारी और रजीत कपूर. अभिनेता आनंद तिवारी मानते हैं कि ऐसी कहानियां जरूर बननी चाहिए, ताकि लोगों के सामने सही छवि प्रस्तुत हो पाये. बिहार बेहतरीन जगह है. खास बात यह है कि बिहार के लोग मासूम हैं. दिल के साफ हैं. इस फिल्म के माध्यम से एक अच्छी जगह देखने को मिली और वहां की संस्कृति को नजदीक से जानने का भी मौका मिला. निदर्ेशक प्रवीण का मानना है कि फिल्म में जिस हिंदी भाषा का इस्तेमाल किया गया है. वह पूरी तरह बिहार की भाषाओं से मेल खाता है.सो, वहां के लोग पूरी तरह फिल्म से खुद को भावनात्मक रूप से जोड़ पायेंगे. प्रवीण कुमार ने इससे पहले मधुबनी पेंटिंग पर नैना जोगन नामक बेहतरीन डॉक्यूमेंट्री का भी निर्माण किया है. इस फिल्म के लिए उन्हें राष्ट्रीय पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है. इसके अलावा उन्होंने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अब तक कई डॉक्यूमेंट्री फिल्मों का निर्माण किया है. उनके द्वारा बनाई गयी फिल्म कौन लगया रीत बेहद लोकप्रिय रही. साथ ही मंटो की कहानी पर आधारित फिल्म के लिए भी लेखन निदर्ेशन का काम किया है.

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