20110913

अनंथा के बहाने कठिनाईयों से भागने की बजाय हमने उनसे दोस्ती कर ली है ः जी सुब्रमण्यिम

नाम ः श्रीवलसन अनंथा नारायण

माता-पिता ः अनंतलक्ष्मी व केएन बालासुब्रमण्यिम.

जन्म ः 19 मई, 1988

फिलवक्त अनंथा के माता-पिता के नहीं होने के बाद अनंतलक्ष्मी के भाई जी सुब्रमणियम व मीरा ने अनंथा की पूरी जिम्मेदारी ली.

स्थान ः वसई, मुंबई

23 वर्षीय अनंथा सेरेब्रेल पैलसी से ग्रसित है. वह चल नहीं सकता. उसके दोनों हाथ काम नहीं करते. लेकिन इसके बावजूद वह दिमाग से बेहद तेज है. उसे कंप्यूटर में बेहद रुचि है. कढ़ी चावल दूध के डिश उसे बेहद पसंद है. हां, मगर सिर्फ दूध पीना वह बिल्कुल पसंद नहीं है. वह ईशारों में बात कर लेता है और वह हल्की बातचीत करने की कई बार कोशिशें करता है. उसके पूरे व्यक्तित्व की झलक उसकी नजर उसकी मुस्कान है, जिसे अगर कोई व्यक्ति ध्यान से देखे तो उसमें उन्हें सकारात्मक उर्जा नजर आयेगी और जिंदगी की परेशानियों से जूझने की ताकत.

वर्ष 1988 में जब अनंथा का जन्म हुआ. वह दस मिनट तक सांस नहीं ले पा रहा था. डॉक्टर ने जवाब दे दिया था कि वह मर चुका है. इससे पहले भी अनंतलक्ष्मी भी अनंतलक्ष्मी ने अपना बड़ा बेटा खोया था. वह केवल 6 मिनट तक ही जिंदगी जी पाया था. लेकिन फिर वह सांस नहीं ले पाया, इस बार भी अनंतलक्ष्मी को ऐसा ही लगा कि अनंथा मर चुका है. अपने ही बच्चे के लगातार मौत की खबर सुन अनंतलक्ष्मी सहन नहीं कर पायी. और उसने दम तोड़ दिया. उसकी हालत को देख कर उसके पति केएन बालासुब्रमण्यिम से दम तोड़ दिया. लेकिन मरने से पहले उन्होंने अनंथा की जिम्मेदारी मुझे दी.लेकिन ईश्वर को शायद कुछ और मंजूर था. जिंदगी में पता नहीं अच्छे लोगों की परीक्षा ईश्वर कितनी बार लेता है. अनंथा मरा तो नहीं. लेकिन उसकी जिंदगी में भगवान ने एक बहुत बड़ा कष्ट दे दिया. तब से मैं और मेरी पत्नी मीरा ने अनंथा का पूरा ख्याल रखा. अनंथा की जिंदगी व उसके परिवार की मार्मिक दास्तां सुनाते सुनाते फुट फुट कर रो पड़ते हैं जी सुब्रमण्यिम है. अपनी बहन व पति की मौत के बाद उनके बच्चे का पूरा ख्याल रख रहे हैं. अनंथा 23 साल का हो चुका है. लेकिन आज भी वह बच्चे की तरह ही है. चूंकि वह सेरब्रेल पैलसी से ग्रसित है. जरा सोचें, ऐसी जिंदगी जी रहे बच्चे, जो खुद से उठ कर सही तरीके से चल भी नहीं सकता. उसकी सारी जिम्मेदारी उसके माता पिता की मृत्यु के बाद उनके अपनों ने की. अनंथा ने अपने मां बाप को नहीं देखा. लेकिन उसे इस बात का एहसास नहीं. चूंकि उनके मामा जी सुब्रमण्यिम जो सायन के एक स्कूल में टीचर हैं, अनंथा को इस बात का एहसास होने नहीं देते. सुब्रमण्यिम व उनकी पत्नी को बच्चे नहीं हैं. उनके लिए पूरी दुनिया अनंथा के इर्द-गिर्द ही सिमटी हुई है. वे उसे अपने जिगड़ के टुकड़े से भी अधिक प्यार करते हैं. उन्हें फर्क नहीं पड़ता कि लोग उनके अनंथा को किस नजर से देखते हैं. किस तरह की बातें करते हैं. किस तरह से अफसोस जताते हैं. उन्हें इन सबसे ऊपर अपने अनंथा को खुशी प्रदान करने की है. अनंथा की मामी मीरा कहती हैं कि मुझे पता है कि अनंथा की परवरिश आम बच्चों की तरह नहीं. हमें कई परेशानियों का सामना करना पड़ा है. लेकिन बच्चे बच्चे होते हैं. हम इसे ऐसे कैसे छोड़ सकते थे. निस्संदेह इस तरह के बच्चों के लिए हिम्मत होनी चाहिए. तो, मैं इस बारे में यही कहना चाहूंगी कि वह हिम्मत मुझे अनंथा के चेहरे को देख कर आती है. मैं मानती हूं कि आम बच्चों की तरह अनंथा की जिंदगी में बहुत फर्क है. लेकिन मैं साथ ही यह बात मानती हूं कि इस तरह के बच्चों के साथ अपनी जिंदगी बिताने के लिए एक सकारात्मक ऊर्जा चाहिए, आपको अपने आप को बहुत मजबूत करना होगा. तभी आप इस तरह के बच्चों की जिंदगी को संवार सकते हैं. बीच में बात को और आगे बढ़ाते हुए जी सुब्रमण्यिम कहते हैं, भगवान ने हर किसी को एक तरह की जिंदगी नहीं दी है. निस्संदेह यह कष्ट है कि काश अनंथा भी बाकी बच्चों की तरह सामान्य होता तो वह सही तरीके से जिंदगी जी सकता था. कौन नहीं चाहता कि उनका बच्चा आगे बढ़े. लेकिन इसके बावजूद मैं मानता हूं कि जिंदगी में अगर सबकुछ नहीं मिला तो अफसोस से जिंदगी काटने की बजाय खुशी से जीनी चाहिए. सच कहूं तो मुझे अनंथा की मासूमियत बेहद आकर्षित और प्रभावित करती है. जिस तरह से वह उम्मीद की नजर से हमारी तरफ देखता है. हमें ऊर्जा मिलती है. लेकिन तकलीफ तब होती है, जब समाज के सामने अनंथा आता है और लोग उसके बारे में कई तरह की बातें बनाने लगते हैं. ऐसे कई हादसे हो जाते हैं जो हमें अंदर से टूटने पर मजबूर कर देते हैं. वही हमारी शक्ति खत्म हो जाती है. सच कहूं तो अब हर दिन जिंदगी से जीना सीखते हैं हम. चूंकि ऐसा अगर हम नहीं करेंगे तो वह टूट जायेगा. ऐसे कई मौके आये हैं, जब हमें समाज का डट के मुकाबला करना पड़ा है. मुझे याद है, हमें एक बार एक एयरलाइन से

ट्रैवल करने की इजाजत सिर्फ इसलिए नहीं मिली थी, क्योंकि हमारे साथ अनंथा था. दरअसल अनंथा के तकलीफ को देख कर उतना दुख नहीं होता. जितना समाज का उसके प्रति नजरिया देख कर होता है. हम कैसे यह बात भूल जाते हैं कि वह भी मासूम है. मैं तो यह सोचता हूं कि जब अनंथा को कंप्यूटर की तरफ बहुत दिलचस्पी लेते देखता हूं तो मुझे उसकी मासूमियत नजर आती है उसमें. वह भी आम बच्चों की तरह ही कई बार शरारतें कर जाता है. कभी दूध पीने की इच्छा नहीं होगी या फिर कुछ खाने की तो कुछ भी बहाना बना देता है. कुछ खाने की इच्छा होगी तो जबरदस्ती अपने इशारों, बातों में समझाने की कोशिश करेगा कि उसे वही चीजें खानी है. उसे रंगों में ब्लू व गुलाबी पसंद है. अगर उसे कोई कपड़े पहनने को दो और उसे पसंद नहीं आया तो वह अन्य बच्चों की तरह ही नाराज नजर आता है. कई बार दूसरों के ड्रेसेज देख कर इशारा करेगा कि उसे भी उसी तरह की चीजें चाहिए. कई बार उसकी शरारते व उसकी कोशिशें देख कर मेरी आंखों में आंसू आ जाते हैं. अनंथा आस्तिक है और हमने उसे कई प्रार्थना भी सिखाया है. और जब उन्हें अपने साथ प्रार्थना करते देखते हैं तो हम बेहद खुश होते हैं. इसके लिए. अनंथा को जिंदगी में साथ साथ लेकर चलना हमारे लिए आसान नहीं रहा था. मुझे याद है आज से कुछ सालों पहले मैंने अंबादी रोड के देवन पार्क सोसाइटी में घर खरीदने की सोची थी. चेतन परमार नामक व्यक्ति मुझे अपना फ्लैट बेचने को भी तैयार हो गये थे. मैंने टोकन के रूप में 60 हजार रुपये भी दे रखे थे. लेकिन सोसाइटी वालों को जब पता चला कि अनंथा सेरेब्रल पैलिसी से ग्रसित है तो उन्होंने एनओसी ( नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट देने से मना कर दिया. सोसाइटी के चेयममैन ने मना कर दिया था. चूंकि अनंथा मेंटली चैलेंड है. सुब्रमण्यिम ने उनसे गुजारिश की कि अनंथा पागल नहीं है. वह मेंटली चैलेंड है. लेकिन सोसाइटी का मानना था कि उनके बच्चे जब अनंथा को देखेंगे तो उन पर बुरा असर पड़ेगा. मैंने इस बारे में पुलिस स्टेशन में शिकायत दर्ज की थी. चूंकि सिर्फ इस आधार पर कोई भी किसी को किसी स्थान पर रहने से रोक नहीं सकता था. यहां तक कि टेलीविजन चैनल के लोगों ने भी इस पर बहस छेड़ी. और नतीजन लोगों को हमें उस सोसाइटी में रहने का मौका देना पड़ा. बात जहां तक हमारी है, हम अब तक तो अनंथा को साथ लेकर चल रहे हैं. लेकिन चिंता सिर्फ इस बात की है कि हमारे बाद अनंथा का क्या होगा. चूंकि उसकी जिंदगी हमारे बगैर कुछ नहीं. यही सोच कर मन अंदर से कचोट जाता है. हमें तो भगवान ने बच्चा नहीं दिया,. मीरा की गोद तो अनंथा से ही मिली है. तो हमारे लिए तो अनंथा उम्मीद की किरण है. मीरा की गोद को हरी भरी उसने ही किया है. लेकिन हमारे बाद उसका क्या होगा,. उसके भविष्य का क्या होगा. वह किस तरह से खुद को खड़ा कर पायेगा. यही वजह है कि हमारी हमेशा कोशिश रहती है कि हम उन तमाम खबरों पर ध्यान रखते हैं जिसमें सेरेब्रल पैलसी से ग्रसित बच्चों से जुड़ी कुछ भविष्य की बातें होती हैं. मुंबई में तो अब इस बीमारी से ग्रसित लोगों के लिए कई संस्थाएं खुल गयी हैं और वे अपने तरीके से उन्हें पढ़ना, खेलना, लिखना, खाना सिखाते हैं. अनंथा ब्रांदा रिक्लमेलेशन में स्थित सेरेब्रल पैलसी क्लीनिक का हिस्सा है. और वहां से जुड़ने के बाद उसके व्यक्तित्व का भी विकास हुआ है. यह मेरे और मीरा दोनों के लिए गर्व की बात है. मुझे याद है जब अनंथा बहुत छोटा था. वह हर बात के लिए हमारी तरफ देखता था. हमें उसे कई बातें समझाने में परेशानी होती थी. कई बार वह जिद्द पर अड़ जाता था. हम भी इंसान कभी कभी उसकी ऐसी हरकतें देख कर भगवान से प्रश्न पूछते थे कि उन्होंने हमारे साथ ऐसा क्यों किया. लेकिन अगले ही पल लगता कि हर व्यक्ति की जिंदगी एक सी नहीं होती. अनंथा तो कम से कम हमारे साथ हैं. कितने लोग तो ऐसी बीमारी होने पर बच्चों को पागल समझ कर उन्हें पागल खाने में भेज देते हैं. बिना यह सोचे कि दरअसल, सच्चाई यह है कि वह पागल नहीं है. उसे किसी अपने की जरूरत है. प्यार की जरूरत है. तिरस्कार की नहीं. मैं मीरा को इस बात का श्रेय देता हूं जिसने एक डॉक्टर की तरह उसकी देखभाल की है. अब तो तसल्ली के साथ कहता हूं कि हमने अनंथा की जिंदगी के साथ हाथ मिला लिया है. मैं उसे समझौता नहीं मानता. हमें इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि हमारी रुटीन लाइफ उसकी रुटीन लाइफ पर आधारित है. हम उसके साथ पूरी मस्ती करते हैं और खुश रहते हैं. सच कहू ं तो यही कह सकता हूं कि हमने अब हर दिन जिंदगी ने एक नया अध्याय सीख लिया है. मेरे लिए अनंथा एक पाठशाला है. जिससे मुझे यह सीखने का मौका मिल रहा है कि कैसे मैं कठिनाईयों से मुंह फेरने की बजाय उनसे हाथ मिला कर उसे हराता हुआ आगे बढ़ सकता हूं.

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