20110913

परदे के उठते ही इट्स मैजिक मैजिक ...


रा.वन में शाहरुख के जी.वन अवतार का हमें बेसब्री से इंतजार है.कृष के कारनामें, मिस्टर इंडिया का अंदाज, कोई मिल गया के रोहन के जादू का कमाल देखना हमें वाकई कितना रोमांचक लगता है न. लेकिन फिल्मों में उन विजुअल इफेक्ट्स को गढ़ने और उसे कल्पनाशीलता के माध्यम से तैयार करना एक बेहद ही चुनौतीपूर्ण और धैर्य का काम है. परदे के पीछे स्पेशल इफेक्ट्स पर आधारित फिल्मों को बनाने में कई तरह के मशक्कत करते हैं. हिंदी सिनेमा के कुछ ऐसी फिल्मों के परदे के पीछे की कहानियों की बारीकियों को दर्शा रही हैं अनुप्रिया अनंत

फिल्म कृष में देखते ही देखते जंगलों में घूमनेवाला कृष अचानक दीवारों पर चढ़ जाता है. और उसकी आंखें ब्लू हो जाती हैं. और अचानक वह हवा में उड़ने भी लग जाता है. कार हवा में तैरने लगती है और अचानक नायक की आंखों में एक अजीबोगरीब सी चमक नजर आती है. कार कभी पलट जाती है तो कभी नायक एक हाथ से पूरे ब्रह्मांड तक को रोक लेता है. एक इलियन किसी चमकती हुई शानदार सी दिखनेवाली चीज से बाहर निकलता है और अजीबोगरीब आवाज निकाल कर वह रोहन को शक्ति प्रदान कर देता है. कुछ इसी तरह फिल्म रोबोट में आप देखते रह जाते हैं और आपकी आंखों के सामने देखते ही देखते कई रजनीकांत के रोबोट की पूरी की पूरी इमारत खड़ी हो जाती है. कई रोबोट मिलकर कभी एक हो जाते हैं कभी अनेक. और आप सोचते रह जाते हैं कि आखिर यह हुआ कैसे. दरअसल, यह सारे कमाल स्पेशल इफेक्ट्स के हैं. और यह सारे कमाल करते हैं एक डेस्क पर बैठकर विजुअल इफेक्ट्स के तकनीशियन और एक्सपर्ट. फिल्म मिस्टर इंडिया में पहली बार जब सुपरनेचुरल पावर को दिखाया गया था और अनिल कपूर देखते ही देखते गायब हो जाते हैं. उस वक्त बिल्कुल नये तरीके से हिंदी सिनेमा के दर्शकों को नयी चीज दिखाई गयी. नतीजा इस तरह की कई और फिल्में बननी शुरू हुई और दर्शकों को उससे लगाव भी हुआ. धीरे धीरे तकनीके बढ़ीं और निदर्ेशकों की चाहत भी. यह संभव नहीं था अब कि अगर रात में मुंबई के भीड़ भाड़ और इमारतों को दिखाना है तो उन्हें कैमरे से ही शूट करना जरूरी है. अब क्रोमा पर शूटिंग कर डेस्क पर बैठकर सारी चीजें क्रियेट की जाने लगी. न सिर्फ ब्लिडिंग, बल्कि मकान, कार, दृश्य. यहां तक कि क्रॉकोज भी. फिल्म गुजारिश में रितिक के नाक पर बैठी मक्खी पर आपकी निगाह जरूर गयी होगी, दरअसल वह मक्खी असली नहीं. इफेक्ट्स द्वारा बनाई गयी है. उसी तरह फिल्मों में दिखाये जानेवाले आग भी इफेक्ट्स से क्रियेट किये जाते हैंं. यही वजह है कि इफेक्ट्स के इस्तेमाल ने हिंदी सिनेमा का काम और आसान कर दिया और इसका इस्तेमाल हर जगह किया जाने लगा. यही वजह है कि अब इस पर आधारित फिल्में भी बनने लगी. जिसमें अधिकतर सीन इफेक्ट्स के माध्यम से गढ़े जाने लगे. फिल्म शिवाजी, कृष, कोई मिल गया, रोबोट उन फिल्मों की श्रेणी की सर्वोत्तम फिल्में हैं. साथ ही आनेवाले समय में कृष 2 और रा.वन में हम इसका विस्तृत रूप देखेंगे. कृष ने भारतीय सिनेमा को पहला सुपरहिरो दिया है. और अब रा.वन में शाहरुख भी सुपरहिरो के रूप में नजर आनेवाले हैं. लेकिन परदे पर जो दिखता है. हमें अचंभित और उत्साहित करनेवाले यह सारे शॉट्स और इसका निर्माण इतना आसान नहीं होता. यह बेहद मेहनत, धैर्य और बारीकियों से संभव हो पाता है. कंप्यूटर पर बैठे बैठे ही हजारों तकनीशियन अपनी कल्पनाशीलता से यह कमाल दिखा देते हैं. उन्हें कई मुश्किलों का भी सामना करना पड़ता है. चूंकि विजुअल इफेक्ट्स गढ़ना बजट के तौर पर भी एक महंगा कार्य है.


राकेश रोशन, फिल्म निदर्ेशक

फिल्म में जैसे जैसे रीटेक्स होते हैं बजट बढ़ता जाता है

कृष के रूप में हिंदी सिनेमा को पहला सुपरहीरो मिला.

जब कृष बनाने का ख्याल मेरे मन में आया. उस वक्त बस इस बात का ख्याल था कि फिल्म कोई मिल गया का सीक्वल हो और वह वीएफएक्स पर आधारित है. साथ ही मैंने सोच लिया था कि फिल्म में अंतरराष्ट्रीय स्तर के इफेक्ट्स का इस्तेमाल करूंगा. कृष वह पहली फिल्म थी, जिसमें पहली बार अधिकतर वीएफएक्स का इस्तेमाल किया गया. फिल्म में कैमरा, लाइटिंग का इस्तेमाल खासतौर से किया गया. फिल्म में थ्री मॉडलिंग, एनिमेशम, 3 डी मॉडल के कार, बाइक, हेलीकॉप्टर, चिड़िया, जानवर दिखाये गये हैं. और इन्हें कोशिश की गयी है कि वास्तविक रूप दिया जाये. इस तरह की फिल्मों को बनाने में सबसे अधिक परेशानी यह आती है कि जैसे जैसे रीटेक्स होते हैंं, बजट बढ़ता जाता है. इसलिए ट्रायल एंड एरर का हमने कम से कम इस्तेमाल किया था. चूंकि कृष प्राकृतिक रूप से शक्तिशाली होता है. कई बार हमें आउटरडोर शूटिंग करनी पड़ती थी. कई बार बहुत अधिक बादल घिर जाते थे तो कभी बहुत ज्यादा धूप होती थी. जबकि हमें एक ही मौसम में शूट करना होता था. चूंकि हम ऑटोडेस्क लस्टर का इस्तेमाल कर रहे थे. बावजूद इसके हमने सबकुछ संभाला. इसके बाद परेशानी आती थी कि मौसम की वजह से कई बार हमें डेस्क पर बैठ कर बैकग्राउंड को ठीक करने में परेशानी होती थी. मैं मानता हूं कि कृष बारत में सुपरहीरो पर आधारित सिनेमा का ट्रेंड सेटर है. मुझे बेहद खुशी हुई थी जब लोगों ने मेरी फिल्म को देख कर बोला था कि यह फिल्म हॉलीवुड जैसी नहीं बनी. बल्कि हॉलीवुड की है. ऐसा लगता हैय.

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