20110913

रिश्तों का खूबसूरत-सा एलबम बबलगम

फिल्म ः बबलगम

निदर्ेशक ः संजीवन लाल

कलाकार ः देलनाज, अपूर्वा अरोड़ा, तन्वी आजमी, सचिन

रेटिंग ः 3.5 स्टार

आज के दौर में हमारे दिन की शुरुआत फेसबुक, मोबाइल, इंटरनेट से होती है. फेसबुक हमारे लिए दोस्ती करने का सबसे बेहतरीन जरिया है तो मोबाइल टाइम पास का महत्वपूर्ण साधन. कोई भी जानकारी चाहिए तो इंटरनेट है न. लेकिन जरा सोचें, उस दौर की बातें जब यह सारी चीजें हमारे पास नहीं थी. तब क्या था. दरअसल, जब यह सारी चीजें नहीं थी तो था वास्तविक बचपन. फिल्म बबलगम, उसी बचपन की कहानी है. जहां फेसबुक और इंटरनेट ने बचपन को जिंदगी से खदेड़ कर नहीं भगाया है. जहां, बच्चे प्ले ग्राउंड में आकर कबड्डी खेलते हैं. होली के दौरान होलिका की तैयारी करते हैं. एक दूसरे में प्यार भी है और लड़ाई भी. उस मोहल्ले में मजनू भी है. लैला भी. एक खलनायक भी है और एक नायक भी. फिल्म बबलगम बच्चों की नहीं बचपन की कहानी है. जहां किसी भी तकनीकी जिंदगी की दखलअंदाजी नहीं है.चूंकि फिल्म 80 के दशक की कहानी बयां करती हैं. बबलगम दरअसल एक परिवार की भी कहानी है, मोहल्ले की भी कहानी है. प्रेम कहानी भी है और दो भाईयों के रिश्तों की बारीकियों को दर्शाती ईमानदार कहानी है. फिल्म की पृष्ठभूमि छोटे से शहर जमशेदपुर के एक कॉलोनी की कहानी है. जहां कई परिवार रहते हैं. लेकिन फोकस मुख्यत ः विदुर-वेदांत नामक दो भाईयों के परिवार पर की गयी है. विदुर सुन नहीं सकता, बात नहीं कर सकता. लेकिन उसके परिवारवाले उसका साथ देते हैं. उसे कमजोर नहीं होने देते. लेकिन उसके अत्यधिक फिक्र से वेदांत उसके छोटे भाई को नाराजगी है. चूंकि उसे लगता है कि सभी सिर्फ बड़े भाई को ही प्यार करते हैं और उसे डांट मिलती है. बड़े भाई विदुर को इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता, वह जी जान से वेदांत को प्यार करता है और हर बुरे वक्त में उसका साथ देता है. वेदांत को जेनी नामक लड़की से बचपन का प्यार है. लेकिन बीच में रतन नाम का एक खलनायक है. बबलगम की कहानी आपके तकनीक मुक्त बचपन का साक्षात रूप प्रस्तुत करती है. फिल्म में होली के गीत हैं. होली का सेलिब्रेशन है. मोहल्ले की पार्टी है. वह सबकुछ है जो शायद बड़े शहरों में व औद्योगिकीकरण की वजह से कहीं खोता सा जा रहा है. निदर्ेशक संजीवन लाल ने एक बेहतरीन कहानी कहने की कोशिश की है. उन्होंने बबलगम जैसी कहानी कह कर साबित किया है कि रिश्तों की ऐसी कहानियों की भी हिंदी सिनेमा को जरूरत है. तन्वी आजमी और सचिन ने बेहतरीन अभिभावक का किरदार निभाया है. वह खड़ूस नहीं हैं. लेकिन बच्चे की गलती पर वह नाराज होने की बजाय उसे सही तरीके से सुलझाते हैं. इनका किरदार आज के अभिभावकों के लिए एक अध्याय की तरह भी है. जिनी और वेद का प्यार मासूमों के प्यार की तरह है. फिल्म हर लिहाज से खूबसूरती से प्रस्तुत की गयी है. कुछ भी दिखावा नहीं. अगर आप वापस अपने उसी बचपन को देखना चाहते हैं तो पुराने फोटो एल्बम की तरह ही नजर आयेगी आपको फिल्म.

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