20110913

मैट्रीमॉनियल में दिखता है असली भारत ः अली



ेकिसी युवाओं पर आधारित कहानी पर फिल्म का निर्माण किया जा रहा हो. और फिल्म में ऑन स्क्रीन व ऑफ स्क्रीन सभी कलाकार, निदर्ेशक व क्रू अगर युवा हो तो निश्चित तौर पर पूरा माहौल यंगीस्तान-सा एहसास दिलायेगा. कुछ ऐसा ही माहौल रहा फिल्म मेरे ब्रदर की दुल्हन की शूटिंग के दौरान. खुद कट्रीना व दर्शकों ने भी माना है कि इस फिल्म में पहली बार कट्रीना कैफ बेफिक्र व बिंदास नजर में आयी हैं. यह कमाल कर दिखाया है. फिल्म के युवा निदर्ेशक अली अब्बास जफर ने. फिल्म की मेकिंग व फिल्म से जुड़े कई दिलचस्प पहलुओं पर उन्होंने अनुप्रिया अनंत से बातचीत की.

मेरे ब्रदर की दुल्हन के निर्माण के साथ ही युवा निदर्ेशकों की पीढ़ी में एक और नाम जुड़ चुका है अली अब्बास का. अली अब्बास जब अखबार पढ़ते-पढ़ते बोर हो जाते थे, तो वे अखबारों में प्रकाशित मेट्रीमोनियल पढ़ने लगते थे. वही से उन्हें यह आइडिया आया और उन्होंने इसे फिल्म का रूप दिया. वाकई मानना होगा, अगर आपके पास विजन है तो आइडिया की खोज तो कहीं से भी हो सकती है. देहरादून के रहनेवाले अली ने दिल्ली के किरोड़ीमल कॉलेज से उच्च शिक्षा प्राप्त की. फिर मुंबई आये. लगभग पांच सालों की मेहनत और लगन के बाद बतौर निदर्ेशक उन्हें पहली फिल्म बनाने का मौका मिला. अली ने अब तक कई फिल्मों में बतौर अस्टिेंट के रूप में काम किया है. झूम बराबर झूम, न्यूयॉर्क, बदमाश कंपनी, टशन जैसी फिल्मों में जुड़े रहने की वजह से उन्हें फिल्मों की बारीकियों की जानकारी मिली. बेहतरीन गीत-संगीत व युवा कलाकारों के साथ फिल्म बन कर तैयार है. अब इंतजार है तो बस दर्शकों की प्रतिक्रिया की

वास्तविक भारत

बकौल अली मैं जब अखबार पढ़ते-पढ़ते बोर हो जाया करता था तो मैट्रीमोनियल पढ़ता था. वह मुझे बेहद दिलचस्प लगते थे. वहां जिस तरह लड़के व लड़कियों की तलाश के मापदंड दिये जाते थे. उसे देख कर मैं बहुत हंसता था. अब तक इस तरह किसी ने कहानी लिखी नहीं थी. मुझे यह आइडिया अच्छा लगा. मुझे मजा आया तो मैंने इस पर स्क्रिप्ट लिखी. इससे पहले दो और स्क्रिप्ट लिख चुका था. लेकिन जब मेरे ब्रदर के बारे में आदित्य को बताया तो उन्हें यही पसंद आयी. दो महीने में फिल्म की कहानी लिख दी. इस फिल्म की एक और खासियत यह भी है कि फिल्म के गीत जबरन नहीं डाले गये. वह स्क्रिप्ट व सिचुएशन के अनुसार लिखे गये हैं. और गीतों में भी ऐसे शब्दों का इस्तेमाल किया गया है. जिसे दर्शक बेहद पसंद भी कर रहे हैं. फिल्म सिचुएशनल कॉमेडी है. आपको चुपके-चुपके या ॠषिकेश मुखर्जी के अंदाज की फिल्मों की याद आ जायेगी. हमारी और आपके इर्द-गिर्द घूम रही कहानी है. मेरा तो मानना है कि जिस तरह अखबारों में मैट्रीमोनियल्स दिये जाते हैं, वह वास्तविक भारत है. जिस तरह हमारा देश विभिन्नताओं का देश है. यहां कितनी परंपराएं हैं. उन सभी की वास्तविक छवि तो यही मैटि्रमोनियल में झलकती है. जहां वर वधू की तलाश में कई मापदंड दिये जाते हैं. यही तो भारत की विभिन्न संस्कृति को दर्शाता है.

यंगीस्तान सा माहौल

इस फिल्म के गीत दर्शकों को शायद इसलिए भी पसंद आ रहे हैं, क्योंकि लंबे समय के बाद वह भांगवाली मस्ती व बिंदास गाने फिर से दर्शकों के सामने है. इसकी खास वजह यह रही कि इस फिल्म के सभी कलाकार इमरान, कट्रीना, अली( नायक) और मैं सभी युवा हैं. तो हमें एक दूसरे को सभी सर कहने की जरूरत ही नहीं हुई. एक तरह से दोस्तों की तरह बनी है फिल्म. आमतौर पर ंहिंदी सिनेमा में अभिनेत्रियों को फीलर के रूप में इस्तेमाल किया जाता रहा है. सो, मैंने कट्रीना को लिया. अब तक वह डॉल के रूप में लोगों के नजर में आयी थीं. लेकिन मैंने न्यूयॉर्क के दौरान कट्रीना का ऑफ स्क्रीन बिंदासपन, मस्ती करने का उनका अंदाज सब देखा था. तो मुझे लगा वही यह किरदार सही तरीके से निभा पायेंगी.

जो जिया, वही लिखा है

मैंने फिल्म में कुछ भी बनावटी नहीं किया. मैंने अब तक जो महसूस किया है. अपने इर्द-गिर्द की चीजों को उन्हें ही फिल्म का रूप दिया है. आप फिल्म के कई दृश्यों से खुद को जोड़ पायेंगे. चूंकि फिल्म की कहानी सामान्य है. उसमें हास्य रस है. लेकिन एक गंभीर बात भी है. यही वजह है कि मुझे मधुबाला गाने की शूटिंग में सबसे अधिक मजा आया. चूंकि इसमें हमने सभी कलाकारों को बस यही कह दिया था कि वह जैसे चाहे बस मस्ती करें. और उन्होंने वही किया. और नतीजा सबके सामने है.

परिवार में पहली बार

मैं देहरादून से हूं. और मीडिल क्लास से हूं. उसी परिवार से ताल्लुक रखता हूं. जो आज भी आइएस जैसी चीजों को करियर मानते हैं. ऐसे में मैं पहली बार फिल्म इंडस्ट्री का हिस्सा बना हूं. मां पापा को पहले नहीं समझा पाता था कि क्या कर रहा. लेकिन अब वे समझने लगे हैं. अच्छा लगता है जब अपने लोगों के बीच जाता हूं और फिल्मी दुनिया के लोगों से जुड़े उनके जागरूक सवालों का जवाब दे पाता हूं. उनकी जिज्ञासा के कुछ रूप को भी फिल्म की कहानी में उतारा है.

वास्तविक लोकेशन

मेरा मानना है कि वास्तविक लोकेशन में फिल्माने का मजा सबसे खास होता है. हमने दिल्ली, आगरा, मुंबई जैसे कई जगहों पर शूट किया. फिल्म के उस दृश्य को फिल्माने में बेहद मजा आया, जब कट्रीना को इमरान को थप्पड़ लगाने थे. उसे हमने 16 रिटेक में ओके किया था. बेचारे इमरान ने वाकई 16 बार कट्रीना के थप्पड़ खाये. उनका चेहरा सच में लाल हो गया था.

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