20110528

ये हैं असली माहिर कलाकार






वे फिल्मों की कहानियां भी लिखते हैं. और गीत भी. वे फिल्में बनाते भी है और अभिनय भी करते हैं. वे एंकर भी हैं. कलाकार भी. लेकिन इसके बावजूद वे खुद को तीस मार खां नहीं समझते. हिंदी सिनेमा जगत में इन दिनों ऐसे कई शख्सीयत हैं, जो एक साथ कई विधाओं में माहिर हैं. एक साथ कई काम करने के बावजूद इनकी रचनाओं को लोगों की सराहना मिल रही है. कुछ ऐसे ही परफेक्शनिस्ट से अनुप्रिया अनंत ने बातचीत की और जाना कि कैसे वे सभी कलाओं में हैं माहिर.

इन दिनों हिंदी सिनेमा में ऐसे कई नाम उभर कर सामने आ रहे हैं, जो एक साथ कई विधाओं में माहिर हैं. एक ही व्यक्ति बेहतरीन गीतों के बोल सजाने में माहिर है तो वह उतना ही अच्छा वक्ता भी है. गौर करें तो फिल्मों की क्रेडिट लिस्ट में इन दिनों एक ही व्यक्ति का नाम कई श्रेणियों में आता है. वजह है इन कलाकारों का काम के प्रति पागलपन. उनका जुनून. हिंदी सिनेमा भी ऐसे महारथियों को हर क्षेत्र में एक साथ अपना हुनर दिखाने का पूरा मौका दे रही है.

1. बांवरे मन हमेशा हजारों सपने देखता है

स्वानंद किरकिरे

गीतकार, नाटकार, अभिनेता, गायक, निदर्ेशक, लेखक, संगीतकार ( टेलीविजन व सिनेमा)

इंदौर जैसे छोटे शहर से मुंबई ेमें आकर इन्होंने अपनी पहचान बनायी. शुरुआती दौर में कई परेशानियों का सामना किया. शुरुआत में सुधीर मिश्रा का साथ मिला. फिल्म हजारों ख्वाहिश ऐसी के लिए गीत लिखा. फिर कई टेलीविजन शोज के लिए लेखन किया. अभिनेता के रूप में हजारों ख्वाहिशों ऐसी में ग्रामीण के किरदार में नजर आये, एकलव्य में हवलदार बाबू के रूप में, चमेली में सर्च पार्टी मेंबर का किरदार निभाया है. लगातार कई नाटकों का मंचन. बतौर संगीतकार इन्होंने स्ट्राइकर में काम किया. गायक के रूप में अजब तेरी करनी मौला, ऑल इज वेल, शेहर, उतरन का टाइटिल गीत, बावंरा मन देखने चला एक सपना, ऐ सजनी रे सजनी, पल्कें झुखाओं ना, जानू ना, खोया खोया चांद जैसी गीत में अपनी आवाज दी. बतौर गीतकार स्ट्राइकर, 3 इडियट्स, जय संतोषी मां, लगे रहे मुन्नाभाई, शेहर, कल, लागा चुनरी में दाग, एकलव्य, पा, लफंगे परिंदे, परिणिता जैसी फिल्मों के गीत लिखे. संवाद लेखक के रूप में उन्होंने चमेली, एकलव्य व शिवाजी जैसी फिल्मों का लेखन किया. असोसियेट निदर्ेशक पे के रूप में हजारों ख्वाहिशें ऐसी, चमेली व कलकाता मेल जैसी फिल्मों का निदर्ेशन.

बकौल स्वानंद ः शायद यह मेरे मन के बांवरे होने का ही नतीजा है. मन में हमेशा कोई न कोई नयी बात आती रहती है. अपने चारों ओर कुछ न कुछ खोजने की कोशिश करता हूं. शायद यही वजह है कि वे इन रूपों में नजर आती हैं. शुरुआती दौर से ही नाटक से लगाव रहा. नाटक से जुड़ाव होने की वजह से कई नाटकों के संवाद लिखने का मौका मिला. कीड़ा लगा रहा. मुंबई आया. लिखने लगा. लोगों को पसंद आया और काम मिलता गया. जो सोचता हूं. महसूस करता हूं. लिख देता हूं. शब्द मेरे प्रिय दोस्त बन गये हैं. बस चाहता हूं कि इसी तरह रचनाएं करूं और लोगों को वे सारी रचनाएं पसंद आये. मन बांवरा है. इसलिए शायद बांवरा गीत पसंदीदा रचनाओं में से एक है

2. आसमान में जब तक तारे रहें, कुछ रचता रहूं

अमोल गुप्ते

स्क्रीनराइटर, अभिनेता, निदर्ेशक.

फंस गये रे ओबामा का नेता धनंजय सिंह जब दर्शकों के बीच बिना किसी खास संवाद के भी लोकप्रिय है. वजह है अभिनेता के हाव भाव. अमोल गुप्ते ने बेहतरीन अभिनय शैली के माध्यम से इस किरदार को जीवंत बना दिया है. हाल ही में रिलीज हुई स्टैनली के डब्बा में भी वे लालची अध्यापक के रूप में बेहतरीन कलाकारी करते नजर आये हैं. दरअसल, अमोल गुप्ते भी उन कलाकारों में से हैं, जो अच्छे अभिनेता होने के साथ साथ अच्छे लेखक व निदर्ेशक भी हैं. तारे जमीन से की सोच में अमोल की खूबियां झलक जाती है. उसके संवाद, भाव सबकुछ यह दर्शाते हैं कि इस कहानी की सोच रखनेवाला कितना भावुक व्यक्ति है. अपनी इसी भावुक निदर्ेशन की क्षमता का प्रमाण वे स्टैनली जैसी भावुक फिल्म के निदर्ेशन से देते हैं. बकौल अमोल बस यही चाहत है कि नेक दिल के साथ कुछ न कुछ रचता रहूं. लोगों को काम पसंद आये और अच्छी कहानियों के साथ लोगों के सामने आऊं. बतौर लेखक अमोल ने अब तक स्टैनली का डब्बा और तारें जमीं की कहानी लिखी है. अभिनेता के रूप में वह उर्मि, प्लेयर्स, फंस गये रे ओबामा, कमीने, तारें जमीं पर, द हैंगमन, जो जीता वही सिंकदर और होली में नजर आये हैं.

3. शायद यह पागलपन का नतीजा है

नीलेश मिश्र

गीतकार, गायक, पत्रकार, फिल्म लेखन, पुस्तक लेखन, रेडियो एंकर

नीलेश मिश्र उन कलाकारों में से एक हैं, जो एक साथ एक ही वक्त में कई प्रोजेक्ट्स पर काम करते हैं. लेकिन सभी कामों में वे बारीकियों का ध्यान रखते हैं. उनके द्वारा लिखी गये गीतों की खास बात यह है कि वे बेहद भावुक और आस-पास की जिंदगी से लिये गये शब्द होते हैं. नीलेश के गीतों में बेहद कठिन शब्द नहीं होते.यही वजह है कि वह लोगों को बेहद पसंद आते हैं. बकौल नीलेश मैं चाहता हूं कि माध्यम कोई भी हो अच्छी कहानी कह सकूं. हमेशा मैं अपनी जिंदगी के इर्द-गिर्द ही सपनों को बुनता हूं. नीलेश ने हाल ही में बैंड कॉल नाइन नामक एल्बम का निर्माण किया, जिसमें वे बेहतरीन गीतों के माध्यम से किस्सागोई करते हैं. किस्सागोई के माध्यम से लोगों तक गीतों को पहुंचाने का यह अपने तरीके का अलग प्रयोग है. हाल ही में उन्होंने बिग एफएम रेडियो के लिए बेहतरीन कार्यक्रम याद शहर नामक एक शो का भी संचालन किया. जिसे पूरे भारत में बेहतरीन सफलता मिली. नीलेश ने कई फिल्मों के गीत भी लिखे हैं, जिनमें फिल्म जिस्म, वो लम्हे, रोग, गैंगस्टर, कृष्णा कॉटेज, फाइटक्लब, 13 बी, होलीडे, सिकंदर, वन्स अपन अ टाइम इन मुंबई, अंजाना-अंजानी, दिल तो बच्चा है जी व रेडी के गीत प्रमुख हैं. वे यशराज की बहुचर्चित फिल्म एक था टाइगर के लेखन से भी जुड़े हैं. आनेवाले समय उनके गीत बॉडीगार्ड में नजर आयेंगे. बतौर लेखक वे यशराज के लिए एक और फिल्म का लेखन कर रहे हैं. नीलेश का मानना है कि इन सभी रचनाओं की वजह है उनका पागलपन. नीलेश ने शुरुआती दौर में पत्रकारिता भी की है व कई किताबों का भी लेखन किया है.

4. शेर हूं इसलिए सबकुछ बिंदास रच डालता हूं ः

मनु ऋषि

नाट्य अभिनेता, फिल्म अभिनेता, गीतकार, स्क्रिप्ट व डायलॉग राइटर.( ओये लकी लकी ओये के लिए फिल्मफेयर व आइफा में बेस्ट डायलॉग अवार्ड प्राप्त.

मनु ऋषि चड्डा ने दिल्ली के अस्मिता गुप्र के थियेटर से शुरुआती की. कई नाटकों में अभिनय किया. फिर मुंबई आये. बकौल मनु ऋषि वर्ष 2001 में मुंबई आया. फिर मशक्कत के बाद रजत कपूर के एक नाटक में बैक स्टेज खड़ा होने का मौका मिला. उस दिन ऐन वक्त पर उस शो के साउंड रिकॉडिस्ट गायब हो गये. मैं बैक स्टेज से कूदा और साउंड का सारा काम संभाला. उस वक्त रजत को लगा कि बंदे में कुछ तो बात है. फिर रजत के साथ साथ काम करते करते कई चीजें सीखीं. लिखने का कीड़ा तो पुरानी दिल्ली से ही लग चुका था. चूंकि दिल्ली के हर मोड़ से वाकिफ हूं. सो, कभी किताबी लिखने की कोशिश नहीं की. जो देखता हूं,सुनता हूं लिख डालता हूं. इसी तरह सात साल की तपस्या के बाद एक दिन दिबाकर का फोन आया. दिबाकर ने बताया कि आठ लोगों ने मेरा नाम सुझाया है. उनमें पीयुष मिश्रा व रजत कपूर, विनय पाठक जैसे स्थापित नाम थे. दिबाकर से मिला. कहा दिल्ली की कहानी है. लेकिन कुतुबमिनार नहीं दिखाना. दिल्ली की गलियां और वहां की बोली दिखानी है. दिल्ली तो दिल में है. फिर क्या था. लिखा. दिबाकर को पसंद आयी स्क्रिप्ट और काम शुरू हुआ. इस फिल्म में बंगाली का किरदार पहले पवन मल्होत्रा निभानेवाले थे. लेकिन तारीख की कुछ परेशानी थी. दिबाकर ने कहा तू कर सकता है यह रोल. मैंने दिबाकर को दिल्ली के कुछ संवाद सुनाये. बस रच गया बंगाली का किरदार. और इस तरह फिर काम मिलता गया. अनिल कपूर को इस फिल्म में मेरा काम इतना पसंद आया कि उन्होंने आयशा फिल्म के लेखन का प्रस्ताव दिया. कुछ इस तरह बस लोगों को काम दिखता रहा. और काम मिलता रहा. मैं मानता हूं कि मैं शेर हूं. बिंदास कुछ भी कहता हूं रचता हूं. इसलिए लोग पसंद करते हैं. किताबी बातें नहीं कर सकता. मनु ऋषि ने बतौर अभिनेता ओये लकी लकी ओये, साथिया, बैंड बाजा बारात, फंस गये रे ओबामा, मिथ्या, एक चालिस की लास्ट लोकल, मिक्सड डबल्स में नजर आये हैं. गीतकार के रूप में ओये लकी के लिए गीत भी लिखे हैं. संवाद लेखक के रूप में ओये लकी, चांस पे डांस व आयशा जैसी फिल्में प्रमुख हैं. मनु आनेवाले समय में और भी कई फिल्मों का लेखन कर रहे हैं. भविष्य में निदर्ेशन के क्षेत्र में भी अपनी कला दिखाने की इच्छा रखते हैं.

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