20110528

राष्ट्रीय फलक पर झारखंड के फिल्ममेकर व कहानियां ...


लीड स्टोरी

58वें राष्ट्रीय पुरस्कार झारखंड के लिए ऐतिहासिक है. इस बार राष्ट्रीय पुरस्कार कई रूपों से झारखंड के लिए महत्वपूर्ण है. जहां राज्य के दो फिल्मकार मेघनाथ व बिजू टोप्पो का नाम विजेताओं में शामिल है, वही झारखंड के विषय पर बनी फिल्म को भी पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है. इन तीन विजयी फिल्मों की मेकिंग पर अनुप्रिया की रिपोर्ट

बिमल रॉय की फिल्म देवदास देख कर कभी वी शांताराम ने यह बात कही थी कि कोई शराब पीकर किसी लड़की के प्यार में दीवाना हो जाये तो उस पर फिल्में बना लेना ही सिर्फ सिनेमा का उद्देश्य नहीं. सिनेमा का सामाजिक उद्देश्य भी है. आम लोगों की जिंदगी के बारे में उनकी परिस्थिति को लोगों तक पहुंचाने का सार्थक प्रयास सिनेमा ही कर सकता है. इसी उद्देश्य के साथ वी शांताराम ने फिल्म आदमी का निर्माण किया था. वी शांताराम की जिंदगी व उनके फिल्मों की शैली से प्रभावित होकर फिल्मकार मेघनाथ भट्टाचार्य ने फिल्मों का ंनिर्माण प्रारंभ किया था. उन्होंने भी सिनेमा के गंभीर पक्ष को देखा और एक उद्देश्य के साथ फिल्मों का निर्माण करने लगे. कुछ ऐसी ही सोच रखते हैं मेघनाथ भट्ट्चार्य, जिनकी फिल्म को इस बार राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है. झारखंड में पिछले कई सालों से अपनी फिल्मों के माध्यम से वहां की आम जनता व विशेषकर आदिवासी समुदाय की समस्याओं को दर्शाने की कोशिश कर रहे हैं. इसी क्रम में आयरन इज हॉट एक प्रयास के रूप में लोगों के सामने आया. जिसमें स्पांच आयरन की फैक्ट्री की वजह से आम जीवन अस्त-व्यस्त होने की व्यथा है. मेघनाथ की इस फिल्म में निदर्ेशक व कैमरामैन के रूप में बिजू टोप्पो ने उनका साथ दिया. साथ ही फिल्म के संपादन में कोलकाता के देवकांत व रांची के अमित अर्ज बहादुर ने सहयोग किया. इन चारों लोगों की टीम व कुछ विशेषज्ञों की मदद से फिल्म बेहतरीन बनी और राष्ट्रीय पुरस्कार कमिटी द्वारा विजयी घोषित की गयी. इसी टीम द्वारा बनाई गयी फिल्म एक रोपा धान किसानों की व्यथा को दर्शाती है. फिल्म के निर्माण में हुई परेशानियों के बारे में मेघनाथ कहते हैं कि हमने जब यह क्षेत्र चुना तभी सोच लिया था कि परेशानी का सामना करना ही होगा. यह हमारी जिंदगी का हिस्सा है. इसलिए हम भी इससे भागते नहीं. फिल्म कार व मेघनाथ के सहयोगी बिजू बताते हैं कि इस तरह के विषयों पर फिल्में बनाने में बहुत परेशानी होती है.कई बार शूटिंग के दौरान उन्हें जेल भी जाना पड़ा. साथ ही माइनिंग माफियों ने भी उन्हें परेशान करने की कोशिश की.इन फिल्मों की शूटिंग छतीसगढ़, ओड़िसा, झारखंड में की गयी, जहां कई स्थानीय प्रशासन से भी परेशानी का सामना करना पड़ा. लेकिन इसके बावजूद बिजू मानते हैं कि अगर नीयत सही हो तो हल निकल ही आता है. यूं ही जूझते जूझते फिल्म का निर्माण हुआ. फिल्म में बतौर वीडियो संपादक अमित अर्ज बताते हैं कि इस फिल्म के संपादन में वक्त इस स्तर पर परेशानी आती थी कि हम एक ही फिल्म के माध्यम से कई बातें कहना चाहते थे. चूंकि मुद्दा इतना गंभीर था. अमित इस बात से बेहद खुश हैं कि उन्हें इस टीम का हिस्सा बनने का मौका मिला. वे इसका पूरा श्रेय मेघनाथ सर को देते हैं. राष्ट्रीय पुरस्कार की श्रेणी में एक और फिल्म झारखंड के लिए महत्व रखती है .जोहार. चूंकि इस फिल्म का विषय झारखंड की संस्कृति पर आधारित है. जिसे कोलाकाता के फिल्मकार नीलांजन ने बनाया है. इसे भी इस बार पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है. झारखंड, बिहार व पश्चिम बंगाल के लिए यह गौरव की बात है कि यहां की कहानियां व फिल्मकारों को सर्वश्रेष्ठ पुरस्कार से सम्मानित किया जा रहा है.

बॉक्स 1 ः

गैर फीचर फिल्म की श्रेणी में

58वें राष्ट्रीय महोत्सव में मिल रहा है सम्मान

सर्वश्रेष्ठ पर्यावरण फिल्म

आयरन इज हॉट

भाषा ः अंगरेजी

निर्माता ः मेघनाथ भट्टाचार्य, निदर्ेशक ः बिजू टोप्पो व मेघनाथ भट्टाचार्य

रजत कमल व 50, हजार के रूप में पुरस्कार राशि.

सर्वश्रेष्ठ प्रोमोशनल फिल्म ः एक रोपा धान( हिंदी)

निर्माता ः मेघनाथ

निदर्ेशक ः मेघनाथ व बिजू टोप्पो

बेस्ट नैरेशन ( नैरेशन लेखन के लिए पुरस्कार)

नाम ः निलांजन भट्टाचार्य,

फिल्म जोहार - वेलकम टू आवर वर्ल्ड ( हिंदी और अंगरेजी) के लिए रजत कमल व 50,हजार के रूप में पुरस्कार राशि.

बॉक्स 2 ः

फिल्मोग्राफीः संक्षिप्त परिचय

2. नीलांजन भट्टाचार्य ः

वर्ष 2005 में अंडर दिस सन के लिए राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त. इट्स ओपेन, व इफ इट इज रेन जैसी डॉक्यूमेंट्री का निर्माण. कोलकाता में रह कर फिल्मों का निर्माण. मशहूर फिल्मकार तपन्न सिन्हा के साथ बतौर सहायक निदर्ेशक के रूप में फिल्मों का निदर्ेशन.

मेघनाथ व बिजू टोप्पो

मेघनाथ पिछले 25 सालों से लगातार फिल्मों के माध्यम से झारखंड के विषयों को विश्व फलक पर लाने की कोशिश कर रहे हैं. बिजू टोप्पो पिछले कई सालों से अपनी फिल्मों के माध्यम से आदिवासी समुदाय की समस्या व उनकी स्थिति को दर्शाने की कोशिश कर रहे हैं.

अननोन मारटियर्स ः फादर एंथनी मुर्मू की हत्या पर आधारित.

यट अनदर एक्सिडेंट ः वर्ष 1997 में पलामू जिले में पड़े सूखे पर आधारित.

वेयर आंट्स आर फाइटिंग एलिफेंट्स ः बॉक्साइट माइनिंग से जूझ रहे आम लोगों पर आधाकित

ट्राइबल सेल्फ रुल ः पंचायती राज पर आधारित.

डेवलपमेंट फ्लोज फ्रॉम बैरल ऑफ गन्स ः विकास के मुद्दे पर आधारित. इन सभी फिल्मों का हिंदी, अंगरेजी व जापानी भाषा में भी निर्माण.

अवार्ड्स ः

वर्ष 2005 में स्टार बेस्ट डॉक्यूमेंट्री का अवार्ड.

फ्रॉम कलिंगा टू काशीपुर ः काशीपुर के अल्युमिनम फैक्ट्री पर आधारित.

कोरा राजी ः कुड़ुक भाषा में बननेवाली पहली फिल्म. फिल्म का विषय असम में रह रहे आदिवासियों पर आधारित.

मिफ 2006 में गाड़ी लोहरदगा, आयरन इज हॉट को अवार्ड, फिल्म स्टोरी ऑफ वाटर, पॉवर ऑफ चेंज, 100 डेज ऑफ वर्क फॉर यू व एक रोपा धान को आइडीपीए अवार्ड, वर्ष 2009 में मुक्ता ज्ञान कुटीर को आइडीपीए ज्ञाना कुटीर अवार्ड एनएसडीएफएफ नवतारगम अवार्ड

बॉक्स 3 ः क्या हैं फिल्म के विषय

एक रोपा धान ः जिंदगी में भोजन का सबसे अधिक महत्व है.लेकिन इसके बावजूद इन दिनों किसान कई तरह की परेशानियों से जूझ रहे हैं. जबकि किसान ही हमारे लिए सबसे महत्वपूर्ण काय करते हैं. उनकी सुविधाओं की अनदेखी की जा रही है. इसी विषय को गहराई से दर्शाने की कोशिश की गयी है और खासतौर से किसानों को कई तरीके सुझाये गये हैं.

जोहार ः वेलकम टू आवर वर्ल्ड

कई लोगों के लिए भोजन सिर्फ उनके जीवन निर्वाह का एक महत्वपूर्ण तत्व है. लेकिन कुछ ऐसे भी लोग हैं, जो आज भी इसे संस्कृति की मान समझते हैं. भारत में झारखंड उन्हीं राज्यों में से एक है, जहां आदिवासियों ने अपनी संस्कृति को सहेज कर रखा है. वे जंगलों में रहते हैं. वही का खाना खाते हैं. इस फिल्म में झारखंड के आदिवासियों व उनके जंगल प्रेम को दर्शाने की कोशिश की गयी है.

आयरन इज हॉट

कई राज्यों में स्पांज आयरन की फैक्ट्री की वजह से वहां बसे आस-पास के लोग किसी तरह परेशानियों व बीमारियों का सामना कर रहे हैं. इसी मुद्दे पर शोधपरक फिल्म है आयरन इज हॉट . इसी फिल्म का हिंदी संस्करण है लोहा गरम है.

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