20110411

क्लाइमेस से दर्शकों के ये फासले....


एक दौर था, जब दर्शक थियेटर में सीट पर बैठ कर बस यह सोचा करते थे यार अब क्या होगा. फिल्म का इंटरवल लोगों के मन में और उत्सुकता पैदा करता था. लेकिन हाल की फिल्मों पर गौर करें तो लगभग सभी फिल्में शुरुआत से बेहद अच्छे अंदाज में शुरू होती हैं लेकिन धीरे-धीरे क्लाइमेक्स आते आते कहानी दम तोड़ देती है. थियेटर से बाहर निकलने के बाद दर्शक मायूस हो जाते हैं कि उन्होंने देखा क्या. शुरुआत से अंत तक दर्शकों की उत्सुकता को बांधे न रख पाने वाली कहानियों पर अनुप्रिया अनंत की रिपोर्ट

अकिरा कुरसावा जब निदर्ेशक के रूप में बहत लोकप्रिय हो गये थे. इसके बाद वे कई कॉलेज में फिल्म मेकिंग की ट्रेनिंग देने जाया करते थे. उन्होंने अपने भाषण के दौरान बच्चों को सिखाया था कि किसी भी फिल्म की कहानी तभी बहुत प्र्रभाव छोड़ पाती है. जब वह बेहतरीन हो. उसकी शुरुआत उसका मध्यांतर और क्लाइमेक्स यानी अंत तक कहानी दर्शकों को बांध कर रख सकती है. उनका प्रभाव अब तक भारतीय निदर्ेशकों पर रहा है. बर्गमैन जैसे निदर्ेशकों ने भी इस ग्रामर को हमेशा फॉलो किया है. लेकिन हाल की फिल्मों में देखें तो जिस कदर नये निदर्ेशक व नये प्रयोगों के साथ कहानियां आ रही हैं. वे अपनी फिल्मों के क्लाइमेक्स के साथ बहुत न्याय नहीं कर पाते. गौर करें तो राजकपूर की फिल्मों ज्यादातर आम लोगों पर या लव स्टोरी हुआ करती थी. लेकिन फिल्म का क्लाइमेक्स बेहद दिलचस्प होता था. दर्शक यह अनुमान नहीं लगा पाते थे कि आगे क्या होगा. हमेशा उनकी सोच के विपरीत होता था क्लाइमेक्स. कुछ ऐसा ही उस दौर की थ्रीलर फिल्मों के साथ भी होता था. अंत तक लोगों को पता नहीं चल पाता था कि आखिरकार खुनी कौन है या किस तरह यह होगा. अच्छे किरदार बाद में जाकर खलनायक के रूप में जब लोगों के सामने आते थे. तो सभी यही सोचते थे अरे यह खूनी है. यस खलनायक है. यही वजह थी लोगों की उत्सुकता बरकरार रहती थी. लेकिन हाल की थ्रीलर फिल्मों की बात करें तो सभी फिल्मों में थ्रील जैसा कुछ भी नहीं होता. न ही रोमांच होता है और न ही कोई थ्रील. न ही कोई सस्पेंस जैसी चीजें.

तनु वेड्स मनु

तनु वेड्स मनु जिम्मी शेरगील ही कंगना रनाउत का ब्वॉयफ्रेंड होगा. यह अनुमान उस वक्त ही लोगों ने लगा लिया था जिस वक्त जिम्मी शेरगिल की दोबारा ट्रेन में एंट्री होती है. फिल्म वही से कमडोर पड़ जाती है और लोगों की रुचि घट जाती है. सभी ने इस फिल्म को अंतराल से पहले बेहद पसंद किया. लेकिन बाद में फिल्म कमजोर तो हुई ही. अंत भी बहुत जोरदार या प्रभाव छोड़नेवाला नहीं हुआ. नतीजन दर्शकों ने माना कि यह फिल्म अच्छी तो है लेकिन अंत कुछ खास नहीं रहा.

सात खून माफ

सात खून माफ में लगातार यह दिखाया गया है सुजैना यानी प्रियंका चोपड़ा बहुत क्रांतिकारी स्वभाव की है. वह अपने रास्ते के रोड़े को हटाना जानती थी. रास्ता बदलना उसे नहीं आता था. लकिन अंत में उसने अपनेआप को भगवान को समर्पित कर दिया. तो यह बेहद अटपटी सी समाप्ति हुई.

अज्ञात

फिल्म अज्ञात में लगातार अंत में नायिका को जंगल में रास्ता नहीं मिलता है. अचानक नायिका का पैरा रुक जाता है. और नीचे पानी है. और फिल्म अंत हो जाता है. यहां भी दर्शक रोमांचित होने की बजाय बोर हो जाते हैं.

ये फासले

हाल ही में रिलीज हुई फिल्म ये फासले में महाजार रेडी के आने के साथ ही दर्शक इस बात का अनुमान लगा लेते हैं कि फिल्म में वही खलनायक हैं. फिल्म लगातार खींची जाती है. लेकिन अंततः खलनायक बिल्कुल बेतरतीब तरीके से लोगों के सामने आता है. कहानी का कमजोर पहलू यही है.

कौन

फिल्म कौन नायिका खुद लोगों से डरती रहती हैं. और अंत में वह खुद मर्डरर निकलती हैं. दर्शक फिल्म की कहानी के बीच में ही इस बात का अनुमान लगा चुके थे कि फिल्म में उर्मिला ही खूनी हैं.

रावण

फिल्म रावण की कहानी जितनी कमजोर थी उतना ही उसका क्लाइमेक्स भी. वीरा मर जाता है. और फिल्म वही खत्म हो जाती है. फिल्म में दर्शकों को यही महसूस होता है कि उनके साथ कोई मजाक किया गया है.

अच्छी क्लाइमेक्सवाली फिल्में

गौर करें तो ऐसी भी कई फिल्में रही हैं जिनके क्लाइमेक्स शानदार रहे हैं

ज्वेल थीफ

फिल्म ज्वेल थीफ में लोगों को बहुत बाद में यह जानकारी मिलती है कि दरअसल अशोक कुमार खलनायक हैं.

जानी दुश्मन

गांव में हर दुल्हन का खून हो रहा है. लेकिन फिल्म के अंत में लोगों को यह जानकारी मिलती है कि दरअसल संजीव कुमार ही वह खून करते थे.

गुमनाम

फिल्म गुमनाम के अंत में लोगों को पता चलता है कि नायिका नहीं बल्कि नायक का दोस्त खलनायक है.

दबंग

फिल्म दबंग में अंत में लोगों को पता चलता है कि सोनू सुद ने सलमान खान की मां का खून किया था.

रेस

फिल्म रेस में बार-बार कट्रीना, सैफ, बिपाशा और अक्षय खन्ना एक दूसरे से प्यार का नाटक करते हैं. बाद में लोगों को पता चलता है कि सैफ व बिपाशा एक साथ हैं.

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