20110207

ऐसे मिलती थी एक्टिंग की क्लास


कभी नींद से अभिनेत्रियों को जगाना, कभी उन्हें लगातार शूटिंग कराना. उनके लिए रात क्या और दिन क्या. जब बुला लिया. सेट पर आ जाओ. 60-80 दशक की नायिकाओं व अभिनेता अभिनय के प्रति कुछ इस तरह समर्पित थे, कि अपने निदर्ेशक की हर बात उनके लिए गुरु की तरह होती थी. उन्हें अपने निदर्ेशकों की डांट-फटकार व नाराजगी का भी सामना करना पड़ता था. लेकिन वे इसे अभिनय सीखने का ही अध्याय मानते थे. कलाकारों के कुछ ऐसे ही अनुभव पर एक नजर

आंखों से मेरी नींद गायब हो गयी ः वहीदा

मुंबई के चर्चगेट स्टेशन पर गुरुदत्त की फिल्म की शूटिंग चल रही थी. देव साहब थे मेरे साथ. इतनी रात में शूटिंग करना जरूरी है क्या. हम सब कितने थक जाते हैं. यह शूटिंग सुबह में क्यों नहीं होती. उस वक्त हमारा मूड भी फ्रेश रहता है. कुछ ऐसे ही सवाल पूछे थे मैंने देव साहब से. तब उन्होंने मुझे समझाया था कि वहीदा सुबह में भीड़ अधिक रहती है. कंप्यूटर्स, गाड़ी की आवाज से सही तरीके से शूटिंग कैसे होगी. इसलिए हम रात में शूटिंग करते हैं. उस वक्त मुझे लगा कि मैंने कैसे बच्चों की तरह सवाल पूछे थे. कुछ ऐसा ही तब हुआ जब मैं कोलकाता में रात की शूटिंग कर रही थी. मुझे रात में शूटिंग करने में परेशानी होती थी. उस दिन भी मैं कुर्सी पर बैठे-बैठे सो गयी. अचानक मुझे लगा कि मेरे चेहरे पर किसी ने पानी डाला है. मैं जागी. सामने गुरुदत्त थे. उन्होंने मुझे देखा और कहा तुम चाय पीने की आदत डालो, वरना रात में शूटिंग करना तुम्हारे लिए मुश्किल होगा. डांट तो पड़ी, लेकिन मेरी नींद नहीं खुली. नींद में ही मैंने जाने क्या तूने कही, जाने क्या मैंने सुनी गीत शूट किया. आज वह गीत देखती हूं तो याद आता है कि कितनी डांट पड़ी थी. उसके बाद मैं रात में शूट के दौरान भी अलर्ट रहने लगी थी. मानो गुरुदत्त की डांट ने ऐसा असर दिखाया कि मैं सोना ही भूल गयी.

वह गलती दोबारा नहीं की ः हेमा मालिनी

सपनों का सौदागर मेरी पहली फिल्म थी. मुझे इससे पहले कभी सेट पर जाने का मौका नहीं मिला था. सो यह मेरे लिए यह पहला अनुभव था. मैं डरी-सी थी. समझ नहीं पा रही थी कि किससे क्या बात करूं, क्या करूं. राजकपूर साहब के बारे में सुन रखा था कि वह बेहद सीरियस डायरेक्टर हैं और सभी कलाकार उनसे दूरी बनाये रखते हैं. उस वक्त मुझे पता नहीं था कि हीरो हीरोइन के अलावा भी किसी और को शूट किया जाता है. अभी मेरा सीन नहीं था. मैं किनारे कुर्सी पर बैठ कर सीन देख रही थी. राजकपूर किसी दूसरे शॉट की शूटिंग कर रहे थे. अचानक उन्होंने कैमरा जूम करना शुरू किया तो मुझे लगा वह मेरी तरफ ही आ रहे हैं. मुझे लगा कि मुझे उतने बड़े कैमरे से चोट लग जायेगी. सो मैं वहां से उठ कर भागने लगी. अचानक राजकपूर ने कट कहा और कहा कि पागल हो क्या समझ में नहीं आता शूटिंग चल रही है. सारा सीन खराब हो गया. मुझे कुछ समझ में नहीं आया. लेकिन मेरी आंखों में आंसू थे. मुझे लगा कि राजकपूर साहब बाद में मुझे समझायेंगे. लेकिन वह नहीं आये. बाद में सेट के लोगों ने बताया कि राजकपूर नरम दिल के हैं. अगर उनसे कोई गलती होती है तो वह छोटे इंसान से भी माफी मांगने से पीछे नहीं हटते. लेकिन काम के मामले में वे कांप्रमाइज नहीं करते. उनकी यह सीख आज भी मुझे याद है. इसके बाद मैं सेट पर हमेशा इस बात का ख्याल रखने लगी थी कि कहीं मैं सीन के बीच में तो नहीं आ रही.

जब गब्बर सिंह को लगी थी डांट

अनुराधा चोपड़ा द्वारा लिखी गयी किताब द मेकिंग ऑफ शोले में अमजेद खान ने अपने अनुभव बयां करते हुए लिखा है कि फिल्म की शूटिंग के लिए उन्हें कर्नाटक जाना था. उस दिन किसी वजह से फ्लाइट कैसिंल हो गयी थी. संपर्क के लिए मोबाइल फोन खरीदना हर किसी के बस की बात नहीं थी. अमजेद परेशान थे कि वह कैसे पहुंचे या कैसे संपर्क करें. किसी तरह उन्होंने रमेशा को सारी स्थिति बतायी. रमेश ने अमजेद से सिर्फ एक ही पंक्ति में यह कहा कि इससे अच्छा तो डैनी को ही ले लेता. कम से कम उस पर स्टारवाले नखरे शोभा भी देते. तुम तो अभी से स्टार से नखरे दिखा रहे हो. अमजेद के लिए इशारा काफी था. उन्होंने किसी तरह ट्रेन पकड़ी और सेट पर पहुंचे. जिंदगी में फिर उन्होंने एक्सक्यूज देना छोड़ दिया. उन्होंने इस बात से यही सीख ले ली चाहे जो भी अगर काम हाथ में लिया है तो हर हाल में सेट पर पहुंचना होगा और वक्त पर पहुंचगा होगा.

बॉक्स में ः

न केवल कलाकार बल्कि गायक-गायिकाओं को भी अपने संगीत निदर्ेशकों के निदर्ेशानुसार ही काम करना पड़ता था. लेकिन बावजूद इसके वे पूरी शिद्दत से अपने काम को पूरा करते थे.

स्वर कोकिला लता मंगेशकर को खय्याम से पड़ी है कई बार डांट.

मुकेश के स, श के उच्चारण को सुधारने में अहम भूमिका निभाई शंकर जयकिशन की डांट ने.

ये मेरा दिल प्यार का दीवाना के लिए कई बार रिकॉर्डिंग की थी आशा भोंसले ने, क्योंकि कल्याणजी आनंद जी को संतुष्ट नहीं हो रहे थे. कल्याणजी प्यार से आशा से कहते कि तुम कर लोगी. ध्यान से गाओ. दिल से. आशा नर्वस हो जाती. लेकिन जब कल्याण ने यही बात थोड़ी कड़क आवाज में कही कि आशा बहुत हुआ. इस बार फाइनल करो. तो आशा ने वह गीत बखूबी गा लिया.

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